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मेरठ में आज भी मौजूद हैं, ब्रिटिश हुकूमत के अवशेष

ब्रिटिश हुकूमत के अवशेष मेरठ में आज भी मौजूद हैं, ब्रिटिश हुकूमत के अवशेष

नई दिल्ली।  ब्रिटिश हुकूमत की गुलामी से देश को आजाद कराने का सिलसिला यूं तो काफी पहले से ही शुरू हो चुका था लेकिन इसे सही रुप से सामने 1857 में तब लाया गया जब ब्रिटिश सरकार के खिलाफ 1857 में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की नींव रखी गई। जिसनें बाद में एक आग का रुप ले लिया और देखते ही देखते पूरे देश में ये आग फैल गई जो अंग्रेजो के पैर भारत से उखाड़ने में कामयाब रही। सन 1947 में भारत आजाद हुआ जिसकी शुरूआत मुख्य रुप से मेरठ में हुई। इस आजादी के लिए देश के तमाम वीरों ने अपने प्राणों को हंसते हंसते कुर्बान कर दिया जिसके अवशेष आज भी मेरठ में जिंदा है।

मेरठ में आज भी मौजूद हैं, ब्रिटिश हुकूमत के अवशेष
मेरठ में आज भी मौजूद हैं, ब्रिटिश हुकूमत के अवशेष

चर्बीयुक्त कारतूस का प्रयोग

देश में विद्रोह की चिंगारी उस समय सुलगी जब 23 अप्रेल 1857 को अंग्रेजी हुकुमत द्वारा भारतीय सैनिकों को चर्बीयुक्त कारतूस प्रयोग करने का आदेश दिया गया और 24 अप्रैल 1857 को फोजियों की एक परैड बुलाई गई थी, जिसमें अश्वरोही सेना को आदेश जारी किया गया था। जिसमें से 85 सैनिकों ने चर्बीयुक्त कारतूस को प्रयोग करने से मना कर दिया था, क्योंकि सेना में हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही समुदाय के लोग थे और करतुस में सूअर और गाय की चर्बी का इस्तेमाल किया जाता था तथा जिसको मुंह से खोलने के बाद ही बन्दूक में लोड किया जाता था।

मेरठ की चिंगारी आजादी के लिए बनी ज्वाला

इसलिए भारतीय सैनिकों ने इस आदेश को मानने से मना कर दिया था। जिसके बाद उनको अधिकारी के आदेशों की अवहेलना में दोषी करार दिया गया और फिर उनको गिरफ्तार कर उन पर जांच बैठा दी गई। 6,7 व 8 मई को लगातार उनका कोर्ट मार्शल किया गया। 9 मई को मेरठ में द्वारा पैरेड की गई, जिसमें उनको दण्डित किया गया और साथ ही उनकी वर्दियां उतरवाकर उनको बैड़ियां पहना दी गई तथा उसके बाद उनको विक्टोरिया पार्क स्थित जेल भी भेजा गया था। जिसकी चर्चा अगले दिन यानि 10 मई को पूरे जनपद मेरठ में आग की तराह फैल गई थी और उसके बाद जो हुआ और वो मेरठ से उठी चिंगारी जो भारत की आजादी के लिए एक ज्वाला बन गई थी।

भारतीय सेना का केन्द्र मंदिर

मेरठ में स्थित औघड़नाथ मन्दिर देश की आजादी में काफी महत्वपूर्ण हैं औघड़नाथ मन्दिर पर ही भारतीय सैनिकों ने अंग्रेजों से आजादी पाने के लिए रणनीति बनानी शुरू कर दी थी। उसके बाद इसी मन्दिर को भारतीय सेना का केन्द्र बना दिया गया और भारतीय सेना के जवान अंग्रेजों से छुप-छुपकर यहां पर मीटींग किया करते थे तथा सारी रणनीति यहीं बैठकर बनाया करते थे। इसलिए इस स्थान को काली पल्टन मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर मेरठ कैंट में स्थित है। ये सिलसिला देश के आजाद होने तक यूं ही चलता रहा। देश को आजाद कराने के लिए कई आंदोलनों का सहारा लिया गया लेकिन मुख्य रुप से देखा जाए तो मेरठ ही वो गढ़ था जहां से आजादी की नींव रखी गई थी जहां आज भी ब्रिटिश हकूमत के अवशेष मिलते हैं।

अगर आपको भी मेरठ में आजादी के समय को महसूस करना है या इसके बारें में अधिक जानना है तो मेरठ में मेरठ के संग्राहलय में जाकर देख सकते हैं जहां आजादी के समय के अवशेषों को आज भी सजोह कर रखा गया है।

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