भारत खबर विशेष featured देश

काकोरी कांड ने हिलाई ब्रिटिश हुकूमत की नींव, क्रांतिकारियों के प्रति बदला लोगों का नजरियां

काकोरी कांड में मिली फांसी काकोरी कांड ने हिलाई ब्रिटिश हुकूमत की नींव, क्रांतिकारियों के प्रति बदला लोगों का नजरियां

नई दिल्ली। भारत की आजादी के संघर्ष में ब्रिटिश हुकूमत की नींव को हिलाने में कई आंदोलन का सहारा लिया गया है जिसनें अंग्रजो को नाको चने चवबाने का काम किया। ऐसा ही एक कांड था काकोरी कांड जिसमें अग्रेजो के मन में डर को पैदा किया और लोगों के अंदर आजादी को लेकर एक मिशाल जलाई। काकोरी काण्ड जो कि नौ अगस्त 1925 को हुआ था। अदालत में इस काण्ड का मुकदमा 10 महीने तक चला था, जिसमें हमारे कई क्रांतिकारियों को फांसी की सजा सुनाई गई थी और वे शहीद हो गए थे। भारत के स्वाधीनता आंदोलन में काकोरी कांड की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। लेकिन लोगों को इसके बारे में ज्यादा जानकारी नहीं हैं जबकि इस काण्ड के बाद ही क्रांतिकारियों के प्रति लोगों का नजरिया बदलने लगा था। इसलिए आज हम आपको इस काकोरी काण्ड की जानकारी देने जा रहे हैं।

काकोरी कांड
काकोरी कांड

काकोरी कांड की मुख्य भूमिका

भारत के स्वाधीनता आंदोलन में काकोरी कांड की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। लेकिन इसके बारे में बहुत ज्यादा जिक्र सुनने को नहीं मिलता। इसकी वजह यह है कि इतिहासकारों ने काकोरी कांड को बहुत ज्यादा अहमियत नहीं दी। लेकिन यह कहना गलत नहीं होगा कि काकोरी कांड ही वह घटना थी जिसके बाद देश में क्रांतिकारियों के प्रति लोगों का नजरिया बदलने लगा था और वे पहले से ज्यादा लोकप्रिय होने लगे थे।

भारत के स्वतंत्रता आंदोलन पर शोध करने वाली डॉ. रश्मि कुमारी लिखती हैं, ‘1857 की क्रांति के बाद उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्ध में चापेकर बंधुओं द्वारा आर्यस्ट व रैंड की हत्या के साथ सैन्यवादी राष्ट्रवाद का जो दौर प्रारंभ हुआ, वह भारत के राष्ट्रीय फलक पर महात्मा गांधी के आगमन तक निर्विरोध जारी रहा। लेकिन फरवरी 1922 में चौरा-चौरी कांड के बाद जब गांधी जी ने असहयोग आंदोलन को वापस ले लिया, तब भारत के युवा वर्ग में जो निराशा उत्पन्न हुई उसका निराकरण काकोरी कांड ने ही किया था’।

असहयोग आंदोलन चरम पर

1922 में जब देश में असहयोग आंदोलन अपने चरम पर था, उसी साल फरवरी में ‘चौरा-चौरी कांड’ हुआ। गोरखपुर जिले के चौरा-चौरी में भड़के हुए कुछ आंदोलकारियों ने एक थाने को घेरकर आग लगा दी थी जिसमें 22-23 पुलिसकर्मी जलकर मर गए थे. इस हिंसक घटना से दुखी होकर महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन को वापस ले लिया था, जिससे पूरे देश में जबरदस्त निराशा का माहौल छा गया था। आजादी के इतिहास में असहयोग आंदोलन के बाद काकोरी कांड को एक बहुत महत्वपूर्ण घटना के तौर पर देखा जा सकता है. क्योंकि इसके बाद आम जनता अंग्रेजी राज से मुक्ति के लिए क्रांतिकारियों की तरफ और भी ज्यादा उम्मीद से देखने लगी थी।

नौ अगस्त 1925 को क्रांतिकारियों ने काकोरी में एक ट्रेन में डकैती डाली थी। इसी घटना को ‘काकोरी कांड’ के नाम से जाना जाता है। क्रांतिकारियों का मकसद ट्रेन से सरकारी खजाना लूटकर उन पैसों से हथियार खरीदना था ताकि अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध को मजबूती मिल सके। काकोरी ट्रेन डकैती में खजाना लूटने वाले क्रांतिकारी देश के विख्यात क्रांतिकारी संगठन ‘हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन’ (एचआरए) के सदस्य थे।

एचआरए की स्थापना 1923 में शचीन्द्रनाथ सान्याल ने की थी। इस क्रांतिकारी पार्टी के लोग अपने कामों को अंजाम देने के लिए धन इकट्ठा करने के उद्देश्य से डाके डालते थे। इन डकैतियों में धन कम मिलता था और निर्दोष व्यक्ति मारे जाते थे।  इस कारण सरकार क्रांतिकारियों को चोर-डाकू कहकर बदनाम करती थी। धीरे-धीरे क्रांतिकारियों ने अपनी लूट की रणनीति बदली और सरकारी खजानों को लूटने की योजना बनाई। काकोरी ट्रेन की डकैती इसी दिशा में क्रांतिकारियों का पहला बड़ा प्रयास था।

अल्लाह ही अब मेरा फैसला करेगा

जिस दिन अशफाक को फांसी होनी थी। अश्फाक ने अपनी जंजीरें खुलते ही बढ़कर फांसी का फंदा चूम लिया और बोले, मेरे हाथ लोगों की हत्याओं से जमे हुए नहीं हैं। मेरे खिलाफ जो भी आरोप लगाए गए हैं, झूठे हैं। अल्लाह ही अब मेरा फैसला करेगा। फिर उन्होंने वो फांसी का फंदा अपने गले में डाल लिया। अशफाक को फैजाबाद में और रोशन सिंह को गोण्डा में फांसी की सजा दी गई और इसी के साथ इस देश के वीर सपूत हंसते हंसते फांसी के फंदे पर चढ़ गए और हमेशा हमेशा के लिए अपना नाम देश के लिए अमर कर गए।

19 दिसंबर 1927 को काकोरी कांड को अंजाम देने वाले देश के तीन वीर सपूतों को अंग्रेजी हुकूमत ने फांसी के फंदे पर चढ़ा दिया था। आज ही के दिन ये दिनों देश की आजादी को समर्पित हो गए थे। रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्लाह खान और ठाकुर रौशन सिंह को लखनऊ के पास काकोरी में ट्रेन लूटने के आरोप में अंग्रजों ने फांसी की सजा दे दी थी।

ये भी पढ़ें:-

भारत की आजादी में आजाद हिंद फौज की भूमिका

भारत की आजादी में मेरठ का रहा है खास महत्व

Related posts

सीएम योगी के पिता की सलाह, सभी धर्मों के भावनाओं का रखें ख्याल

Rahul srivastava

नेताजी से संबंधित 25 और फाइलें सार्वजनिक

bharatkhabar

उत्तर कोरिया पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने लगाई पाबंदी

piyush shukla