नई दिल्ली। बीते 18 तारीख को जब संसद का मॉनसून सत्र शुरू हुआ तो मायावती ने प्रश्नकाल में सहारनपुर में हुई जातीय हिंसा को लेकर सरकार की कार्रवाईयों को लेकर घेरने के प्रयास करना शुरू किया था। लेकिन तय वक्त में आपनी बात वो सदन में नहीं रख पाई। ऐसे में उपसभापति ने उन्हें बोलने से रोका तो मायावती गुस्से से आग-बबूला होकर सदन से बाहर चली गई। सदन से जाते जाते उन्होने ने उपसभापति से तीखी बहस करते हुए कहा कि अगर सदन में मुझे बोलने नहीं दिया जायेगा तो मैं इस्तीफा दे दूंगी। इसके बाद शाम तक अपना इस्तीफा दे दिया था। जिसको आज स्वीकार कर लिया गया है।
इसके बाद मायावती ने बाहर आकर मीडिया से बात करते हुए कहा था कि अगर सदन में हम अपने समाज के हितों के सवाल नहीं पूछ सकते हो सदन की सदस्यता का क्या मतलब है। इसके बाद शाम तक उन्होने ने राजनीतिक मंच के भाषण सरीखा एक त्यागपत्र भी भेज दिया था। हांलाकि उन्होने इस्तीफे में एक लम्बा चौड़ा भाषण लिखा था। माना जा रहा था कि उनका इस्तीफा अस्वीकार हो जायेगा। लेकिन आज ताजा खबरों में आया है कि राज्यसभा में उनका इस्तीफा स्वीकार कर लिया गया है।
आपको बता दें कि मायावती का कार्यकाल आने वाले साल के अप्रैल माह में समाप्त हो रहा था। इसके साथ ही मायावती सदन से पूरी तरह से बाहर हो जाती । अब हाल में उत्तर प्रदेश में गोरखपुर के साथ फूलपुर की सीटों पर संसदीय चुनाव होने हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि मायावती संसद के जरिए अपना राजनीतिक सफर जारी रखने के लिए फूलपुर से चुनावी मैदान में आ सकती हैं। इसके साथ ही हाल में विधान सभा और उसके पहले 2014 में लोकसभा में हुआ बड़ी हार के बाद पार्टी के साथ कैडर वोटों से भी मायावती की दूरी बढ़ती जा रही है। अब मायावती की चाहत है कि वो इसे खत्म कर नये सिरे से पार्टी संगठन को खड़ा करें।
माया के इस्तीफे का राज
सहारनपुर में हुई हिंसा के तार मायावती और उनकी पार्टी बसपा से जोड़कर देखे जा रहे हैं। इस मामले में जांच चल रही है। इस पूरे कांड का मास्टर माइंड पुलिस की गिरफ्त में है। मायावती और उनके भाई के साथ उनकी पार्टी पर ये आरोप लग चुके हैं कि वो इस गैर राजनीतिक संगठन की आर्थिक मदद कर रहे थे। क्योंकि सहारनपुर में हुई हिंसा की आग सबसे अधिक मायावती के जाने के बाद ही भड़की थी। ये पुलिस की जांच रिपोर्ट में भी आया है। अब मायावती अपने आपको बचाने के लिए इस सहारनपुर हिंसा के नाम पर अपनी राजनीतिक गोट बैठाने की कोशिश कर रही हैं। क्योंकि 2012 से मायावती के दिन बुरे होते जा रहे हैं। पहले सपा ने सत्ता छीनी तो 2014 में लोकसभा में एक भी खाता तक नहीं खुला और 2017 विधानसभा में 50 सीटें भी ना आ पाईं। यानी जिस दलित वोट पर बहन जी राजनीति कर रही थीं वो उनके पास से खिसक रहे हैं। अब अपने कैडरों के साथ मायावती को ये भी जताना था, कि दलितों के लिए कुर्सी तक छोड़ सकती हैं। वैसे भी मायावती के राज्यसभा का कार्यकाल अप्रैल 2018 तक का ही है।
ऐसे में उनका ये भी सोचना है कि दुबारा राज्यसभा में वापसी के बजाय 2019 की तैयारी पर जोर दिया जाये क्योंकि अब सत्ता में वापसी का कोई रास्ता तो बचा नहीं है। क्योंकि भाजपा ने रामनाथ कोविंद के रूप में दलित चेहरे को राष्ट्रपति के लिए चुनकर उत्तर प्रदेश में मायावती के दलित वोटों में एक बार बड़ी सेंधमारी की है। अब मायावती अपने संगठन को फिर से खड़ा कर 2019 के समर की तैयारी करने की फिराक में है। इसके साथ ही जनता के बीच उनकी हितैषी बनने का इससे बेहतर मौका नहीं मिल सकता था।