लखनऊ। वाणिज्य विभाग में संचालित भाउराव देवरस शोध पीठ द्वारा अप्रयुक्त ‘मेड इन इंडिया’ गोल्डमाइन-हस्तशिल्प सर्वेक्षण परिणाम की रिपोर्ट शोध पीठ के प्रो सोमेश कुमार शुक्ला ने कुलपति को प्रस्तुत की। इसका अवलोकन करने के बाद कुलपति ने निर्देशित किया कि शोध पीठ के उद्देश्यों के अनुरूप अपने विश्वविद्यालय के अध्ययनरत छात्र-छात्राओं में उद्यमशीलता की भावना और कौशल विकसित करने के लिए नई शिक्षा नीति के अनुरूप समय-समय पर प्रशिक्षण कार्यक्रम व कार्यशाला भी आयोजित की जाय।
छह व सात फरवरी को भाऊराव देवरस शोधपीठ द्वारा ओडीओपी एक जिला एक उत्पाद युग में हस्त शिल्प उत्पादकों की आवश्यकताओं और चुनौतियों को चिन्हित करने के लिए एक आंकलन किया गया।
हस्तशिल्प खुदरा विक्रेताओं की राय के अनुसार, हस्तशिल्प के चयन के दौरान सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता उत्पाद की गुणवत्ता, उचित डिजाइन एवं मूल्य है। इसके अतिरिक्त उत्पादकों/आपूर्तिकर्ताओं के बारे में जानकारी की कमी और हस्तशिल्प उत्पादों की प्रतिकूल कीमतें, उत्पादों की आपूर्ति के दौरान खुदरा विक्रेताओं के लिए बाधाओं के रूप में सामने आती हैं।
हस्तशिल्प उत्पादकों को इन बिन्दुओं पर सहायता किए जाने की बनी सहमति
– बाजार की मांग के अनुसार अपने उत्पादों को बेहतर डिजाइन करना।
– उनके उत्पादों की गुणवत्ता में सुधार।
– आपूर्तिकर्ताओं के साथ संबंध स्थापित करना।
– उनके उत्पादों को बढ़ावा देना।
– बाजार का हस्तशिल्प के प्रति दृष्टिकोण।
– उत्पादकों के लिए प्रशिक्षण एवं कार्यशाला।
– उत्पादकों के लिए कच्चे माल की उपलब्धता।
हुनर हाट में उत्पाद का आकलन सर्वेक्षण 56 स्टालों का किया गया था
इस सर्वेक्षण शोध के माध्यम से किये गये तथ्यों एवं आंकड़ों से शोधपीठ पारंपरिक हस्तशिल्प बाजार की चुनौतियों एवं अवसर से परिचित हो गया। यह सर्वेक्षण परिणाम शिक्षाविदों/शोधकर्ताओं को बेहतर उत्पादकों और बाजार की आवश्यकताओं को समझने में सहायक होगी और परिभाषित करने एवं अनुवर्ती गतिविधियों को लागू करने के लिए, पर्यटन एवं हाट बाजार के लिए हस्तशिल्प में उत्पादों के डिजाइन एवं विकास में योगदान देगा।