लखनऊ। शनिवार के प्रातः कालीन सत् प्रसंग में रामकृष्ण मठ लखनऊ के अध्यक्ष स्वामी मुक्तिनाथानंद ने बताया कि संसार में ईश्वर को एक हाथ से पकड़ कर आनंद के साथ कर्म करना चाहिए। एक हाथ से ईश्वर को पकड़कर रहना चाहिए और दूसरे हाथ से सारे कर्म करने चाहिए।
तब कोई दुश्चिंता और विपत्ति का कारण नहीं रहेगा। स्वामी जी ने बताया कि एक संसारी भक्त ने श्री रामकृष्ण को एक शिवजी की स्तुति आवृत्ति करके सुनाया- ‘हे प्रभु! यह संसार एक दुःखमय गहन कूप जैसा है। यहाँ से हमारी रक्षा करें।’ स्तुति सुनते हुए श्री रामकृष्ण ने कहा ‘संसार कूप है, संसार गहन है यह सब क्यों कहते हैं? पहले-पहल इस तरह से कहा जाता है, उन्हें पकड़ने से फिर क्या भय है? तब यह संसार मौज की कुटिया हो जाता है। उन्होंने कहा कि मैं खाता-पीता हूँ और आनंद करता हूँ।’
उस गृहस्थ भक्त को अभय प्रदान करते हुए श्री रामकृष्ण ने कहा, ‘भय क्या है? उन्हें पकड़ो। काँटों का जंगल है, तो क्या हुआ? जूते पहनकर उसे पार कर जाओ। भय क्या है? जो पाला छू लेता है, क्या वह भी कभी चोर हो सकता है?’ एक दृष्टांत देते हुए श्री रामकृष्ण ने कहा ‘राजा जनक दो तलवारें चलाते थे। एक ज्ञान की और दूसरी कर्म की। पक्के खिलाड़ी को किसी का डर नहीं रहता।’
अतएव यदि हम संसार में भगवान को पकड़कर नहीं रहे तब गिरने का संभावना है। भय का कारण है। यदि हम भगवान को पकड़ते हुए संसार में रहे तब यह संसार जो पहले दुःखमय कूप दिखाई पड़ता था,वह एक मौज की जगह बन जाएगा और हम भगवत् आनंद से भरपूर होकर अपना कर्म भी कर लेंगे एवं साथ-साथ जीवन का जो चरम लक्ष्य है वो ईश्वर दर्शन भी कर लेंगे एवं जीवन सार्थक हो जाएगा।