खड़ाऊं का नाम तो शायद आपने सुना ही होगा। और हो सकता है आपमें से किसी ने कभी पहनके भी देखा हो। लेकिन क्या आपको खड़ाऊं के चमत्कारी विज्ञान के बारे में पता है। चलिए बताते हैं आपको आज उसके चमत्कारिक फायदे।
क्यों हुआ खड़ाऊ का आविष्कार ?
हमारे वैज्ञानिक ऋषि-मुनि धरती की गूढ़ रासायनिक संक्रियाओं को समझते थे, इसलिए उन्होंने खड़ाऊ का आविष्कार किया। आपको खड़ाऊ के पीछे का विज्ञान जानकर गर्व होगा।
ऋषि मुनियों ने पहले ही समझ लिया था गुरुत्वाकर्षण
दरअसल गुरुत्वाकर्षण का जो सिद्धांत वैज्ञानिकों ने बाद में प्रतिपादित किया उसे हमारे ऋषि मुनियों ने काफी पहले ही समझ लिया था। उस सिद्धांत के अनुसार शरीर में प्रवाहित हो रही विधुत तंरगे गुरुत्वाकर्षण के कारण पृथ्वी द्वारा अवशोषित कर ली जाती हैं।
सिद्धांत के आधार पर पहनते थे खडाऊं
यह प्रक्रिया अगर निरंतर चलें तो शरीर की जैविक शक्ति समाप्त हो जाती है। इसी जैविक शक्ति को बचाने के लिए हमारे पूर्वजों ने खडाऊं पहनने की प्रथा आरम्भ की। ताकि शरीर की विधुत तरंगों का पृथ्वी की अवशोषण शक्ति के साथ सम्पर्क न हो सके। इसी सिद्धांत के आधार पर खडाऊं पहनी जाने लगी।
खड़ाऊं के पीछे छिपा एक्यूप्रेशर का राज
जानकारी दे दें कि 70-80 के दशक तक गांवों में लोग खड़ाऊं पहनते थे। और उन्हें मधुमेह या रक्तचाप जैसी कोई बीमारी भी नहीं होती थी। पाचन तंत्र भी मजबूत रहता था और मस्तिष्क तरोताजा। इसकी वजह है खड़ाऊं के पीछे छिपा एक्यूप्रेशर। जी हां ये पैर ही नहीं, पूरे शरीर का एक्यूप्रेशर कर देता था। जिससे लोग स्वस्थ रहते थे।
कई विशेषज्ञ दे रहे खड़ाऊं पहनने की सलाह
वहीं आज के समय में कई विशेषज्ञ लोगों को खड़ाऊं पहनने की सलाह दे रहे हैं। खड़ाऊं के तलवे वाली सतह को खुरदरा या छोटे-छोटे उभारों वाला भी बनाया जा रहा है। यानी समय के साथ खड़ाऊं में तरह-तरह के प्रयोग भी हो रहे हैं। अगर मार्निंग या इवनिंग वाक में इसका उपयोग करें, तो चमत्कारिक लाभ होगा।
हालांकि यें चीजें जानकर अपने पूर्वजों पर गर्व होता है। लेकिन सोचनीय है कि आज के तथाकथित सभ्य समाज को अपना इतिहास केवल माइथोलॉजी नजर आता है।