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जाने क्या है भौम प्रदोष व्रत का महत्व, भोलेनाथ खुश होकर हर लेते हैं सारे दुख

भौम प्रदोष व्रत जाने क्या है भौम प्रदोष व्रत का महत्व, भोलेनाथ खुश होकर हर लेते हैं सारे दुख

हिंदू धर्म में भौम प्रदोष व्रत बहुत अधिक महत्व माना जाता है। कहते हैं ये व्रत भोलेनाथ को खुश करने के लिए रखा जाता है।

नई दिल्ली। हिंदू धर्म में भौम प्रदोष व्रत बहुत अधिक महत्व माना जाता है। कहते हैं ये व्रत भोलेनाथ को खुश करने के लिए रखा जाता है। इस व्रत के रखने से भोलेनाथ खुश हो जाते हैं और भक्तों के सारे संकट हर लेते हैं। मंगलवार 19 मई को त्रयोदशी होने से भौम प्रदोष का संयोग बन रहा है। वार के अनुसार सप्ताह में अलग-अलग दिन प्रदोष व्रत का संयोग बनने से उसका महत्व और बढ़ जाता है। इस बार ये व्रत मंगलवार को होने से सेहत और आर्थिक स्थिति के लिए महत्वपूर्ण रहेगा। शिव पुराण और स्कंद पुराण के अनुसार प्रदोष व्रत करने से हर तरह की परेशानियां दूर हो जाती है। इन पुराणों में इस व्रत को मनोकामना पूरी करने वाला बताया गया है।

ये है भौम प्रदोष का महत्व

प्रदोष व्रत का महत्व सप्ताह के दिनों के अनुसार अलग-अलग हेाता है। मंगलवार को पड़ने वाले प्रदोष व्रत और पूजा से उम्र बढ़ती है और सेहत भी अच्छी रहती है। इस व्रत के प्रभाव से बीमारियां दूर हो जाती है और किसी भी तरह की शारीरिक परेशानी नहीं रहती है।

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माना जाता है कि इस दिन शिव-शक्ति की पूजा करने से दाम्पत्य सुख बढ़ता है। मंगलवार को प्रदोष व्रत और पूजा करने से परेशानियां भी दूर होने लगती हैं। भौम प्रदोष का संयोग कई तरह के दोषों को दूर करता है। इस संयोग के प्रभाव से तरक्की मिलती है। इस व्रत को करने से भोलेनाथ आरोग्य का वरदान देते हैं।

वहीं इस कोरोना महामारी के समय में तो हर कोई चाहता भी यही है कि हर कोई इस समय सेहतमंद रहे, बीमारियों से दूर रहे और शिव-शंकर आरोग्य का वरदान दे।

प्रदोषकाल में होती है पूजा

प्रदोषकाल में यानी संध्या के समय इस दिन शिवजी की विशेष पूजा की जाती है। सुबह अगर पूजा कर भी ली हो तब भी शाम में पूजा अवश्य की जाती है।

प्रदोष व्रत और पूजा विधि

प्रदोष व्रत में भगवान शिव की पूजा की जाती है। यह व्रत निर्जल यानी बिना पानी के किया जाता है। इस व्रत की विशेष पूजा शाम को की जाती है। इसलिए शाम को सूर्य अस्त होने से पहले एक बार फिर नहा लेना चाहिए। साफ सफेद रंग के कपड़े पहनकर पूर्व दिशा में मुंह कर के भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा की जाती है। पूजा की तैयारी करने के बाद उत्तर-पूर्व दिशा की ओर मुंह रखकर भगवान शिव की उपासना करनी चाहिए।

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इस पूजा में क्या करना चाहिए

– प्रदोष व्रत करने के लिए त्रयोदशी तिथि के दिन सूर्य उदय से पहले ही उठना चाहिए।

– इसके बाद नहाकर भगवान शिवजी की पूजा करके दिनभर व्रत रखने का संकल्प लेना चाहिए।

– पूरे दिन का उपवास करने के बाद सूर्य अस्त से पहले नहाकर सफेद और साफ कपड़े पहनें।

– जहां पूजा करनी हो उस जगह गंगाजल और गाय के गोबर से लीपकर मंडप तैयार करें।

– मंडप में पांच रंगों से रंगोली बनाएं और पूजा करने के लिए कुश के आसन का उपयोग करें।

– सबसे पहले भगवान गणेश की पूजा करें।

– फिर मिट्टी से शिवलिंग बनाएं और उसकी  विधिवत पूजा करें।

– भगवान शिव के साथ माता पार्वती की भी पूजा करें।

– भगवान शिव-पार्वती की पूजा के बाद धूप-दीप का दर्शन करवाएं।

– शिव जी की प्रतिमा को जल, दूध, पंचामृत से स्नानादि कराएं। बिलपत्र, पुष्प , पूजा सामग्री से पूजन कर भोग लगाएं।

– भगवान शिव की पूजा में बेल पत्र, धतुरा, फूल, मिठाई, फल का उपयोग करें।

– भगवान शिव को लाल रंग का फूल नहीं चढ़ाना चाहिए।

– पूजन में भगवान शिव के मंत्र ‘ऊॅं नम: शिवाय’ का जप करते हुए शिव जी का जल अभिषेक करना चाहिए।

– इसके बाद कथा और फिर आरती करें।

– पूजा के बाद मिट्टी के शिवलिंग को विसर्जित कर दें।

-प्रदोष व्रत व पूजा करने से भगवान शिव की कृपा से तमाम तरह के कष्टों और दुखों से छुटकारा मिल जाता है।

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