वाशिंगटन। अमेरिका में इस समय राष्ट्रपति पद के चुनाव को लेकर सभी राजनीतिक पार्टियां पूरे जोर-शोर से लगी हुई हैं। इस दौर में दो पार्टी सबसे आगे देखने को मिल रही हैं। इस चुनाव में डेमोक्रेटिक उम्मीदवार जो बिडेन और रिपब्लिकन के उम्मीदवार व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच कड़ी टक्कर देखने को मिल रही है। इस बार जो बिडेन कई सर्वेक्षण में डोनाल्ड ट्रंप से आगे दिखाई दे रहे हैं। लेकिन इस चुनाव में राष्ट्रपति वहीं बनेगा इलेक्ट्रोरल काॅलेज से चुना जाता है। इसमें कुल 538 इलेक्ट्रोरल वोट होते हैं। चुनाव में जीतने के लिए 270 या उससे अधिक वोट हासिल करने होते हैं।
चुनाव जीतने के लिए क्यों जरूरी है इलेक्ट्रोरल काॅलेज-
बता दें कि अमेरिका के पिछले 2016 के चुनाव में डेमोक्रेटिक पार्टी की उम्मीदवार हिलेरी क्लिंकटन को करीब 29 लाख ज्यादा लोगों ने वोट किया लेकिन वह चुनाव हार गईं। इसकी वजह यह है कि डोनाल्ड ट्रंप के पक्ष में इलेक्टोरल वोट ज्यादा पड़ा। इलेक्ट्रोरल काॅलेज में कुल 538 वोट होते हैं, जिनमें से 270 या फिर उससे ज्यादा वोट जीतने के लिए हासिल करने होते हैं। जिस उम्मीदवार को 270 इलेक्टर्स का समर्थन मिल जाता है, वह अमेरिका अगला राष्ट्रपति बनता है। भारत की तरह अमेरिकी संसद में भी दो सदन होते हैं। पहला हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव जिसे प्रतिनिधि सभा भी कहा जाता है। इसके सदस्यों की संख्या 435 है। दूसरे सदन सीनेट में 100 सदस्य होते हैं। इसके अतिरिक्त अमेरिका के 51वें राज्य कोलंबिया से तीन सदस्य आते हैं। इस तरह संसद में कुल 538 सदस्य होते हैं. इन्हीं के वोट को इलेक्ट्रोरल वोट कहा जाता है।
इलेक्ट्रोरल कॉलेज को 1787 में किया गया शामिल-
इलेक्ट्रोरल कॉलेज को अमेरिकी संविधान में 1787 में शामिल किया गया। अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में मतदाता सीधे राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को वोट नहीं देते हैं। हर राज्य के निवासी इलेक्टर्स चुनते हैं. हर राज्य में एक निश्चित संख्या में इलेक्टोरल कॉलेज वोट होते हैं। यह राज्य की जनसंख्या पर निर्भर करता है। प्रत्येक राज्य से उतने ही प्रतिनिधि होते हैं जितने कि उस राज्य से संसद की दोनों सदनों में सांसद। सबसे कम आबादी वाले वायोमिंग से 3 इलेक्टर हैं जबकि सबसे ज्यादा आबादी वाले कैलिफोर्निया से 55 इलेक्टर हैं।