सुशील कुमार
कानपुर/लखनऊ। लघु उद्योग, रोजगार को बढ़ावा देने के लिए प्रदेश सरकार की मदद से कानपुर देहात के जैनपुर इंडस्ट्री एरिया में साल 2015 में एक साथ 31 प्लाट का भूमि पूजन किया गया। 600 स्कवायर मीटर से लेकर 8800 स्कवायर मीटर तक जमीन यूपीएसआईडीसी के माध्यम से ली गई।
उम्मीद थी कि इन 31 प्लाट से करीब 500 लोगों को रोजगार मिलेगा उसके अलावा इंडस्ट्री की स्थिति भी ठीक होगी। चार साल पहले तक यहां जमीन लेने वाले अपने उद्योग को बढ़ाने का सपना देखते थे। लोगों ने घर की पूंजी लगा दी। किसी के 20 लाख तो किसी के दो करोड़ रुपए लग गए। लेकिन इंडस्ट्री शुरू नहीं हो पाई। क्योंकि उनको कोई भी सरकारी एनओसी समय से नहीं मिला।
बिजली कनेक्शन के लिए दो साल तो मानचित्र के लिए अभी तक लोग दौड़ लगा रहे है। पिछले करीब 18 महीने से कारोबार ठप है। उससे पहले नोट बंदी और फिर जीएसटी से मार्केट गिरा। दूसरे कारोबारों में इनकम की जगह घाटा होने लगा। एक तरफ सरकार 20 लाख करोड़ रुपए का पैकेज देकर ऐसे लोगों को उभारने का दावा करती है तो दूसरी तरफ उप्र में इंडस्ट्री को बढ़ावा देने वाला यूपीएसआईडीसी विभाग ऐसे लोगों से जमीन वापस लेने की तैयारी कर रहा है।
जमीन कैंसिल करने या दोबारा उसी जमीन को मौजूदा रेट के हिसाब से देने की बात कर रहा है। साल 2015 में यहां की जमीन 800 रुपए स्कवायर मीटर थी, जिसकी कीमत अब 2000 रुपए तक पहुंच गई। प्लाट मालिकों को बताया जाता है कि आपने अभी तक वहां रत्ती भर भी काम नहीं कराया है, ऐसे में जमीन की रजिस्ट्री कैंसिल फिर से करानी पड़ेगी।
अगर ऐसा नहीं करते है तो जमीन किसी और को निलाम कर दिया जाएगा। लोगों को लाखों रुपए की नोटिस पहुंचा दी जा रही है। बिजनेस लिंक की टीम ने मौक का मुआयना किया तो पता चला कि स्थिति उससे भी ज्यादा खराब है।
दो दशक पहले यहां इंडस्ट्री शुरू करने की पहल हुई थी। करीब डेढ़ दशक से डवलमेंट चार्ज किया जा रहा है लेकिन सुविधाओं के नाम पर यहां सब जीरो है। स्थिति यह है कि सड़क , पानी, बिजली की स्थिति तो खराब है कि यहां बना यूपीएसआईडीसी का कार्यालय भी खंडहर बन गया है। पेश है उसको लेकर रिपोर्ट-
60 लाख रुपए खर्च कर दिए, अब बोल रहे- प्लांट खाली करो या 18 लाख रुपए जमा करो
राणा रणवीर सिंह ने दवाओं में इस्तेमाल होने वाले कैमिकल की फैक्टी डालने के लिए कानपुर देहात के जैदपुर इंडस्ट्री इलाके में जमीन ली। करीब 8 लाख रुपए खर्च कर यूपीएसआईडीसी से जमीन ली गई। जमीन देने के समय नियम यह था कि यहां अगले पांच साल में इंडस्ट्री शुरू हो जानी चाहिए।
लेकिन काम शुरू नहीं हो पाया। ऐसा नहीं है कि काम शुरू करने के लिए रणवीर सिंह ने पहल नहीं की बल्कि वह एनओसी के लिए करीब साल तक सरकारी विभागों के चक्कर काटते रहे। स्थिति यह है कि साल 2017 में उनको प्रदूषण और बाकी विभाग से एनओसी मिली। उसके बाद घर से करीब 60 लाख रुपए लगाकर मशीन मंगाने से लेकर पक्का निर्माण कराया। तभी डेढ़ साल से कोविड आ गया।
इसमें नया काम तो दूर अपने पुराने धंधे बचाने के लाले पड़ गए । लेकिन इन बातों से अंनजान यूपीएसआईडीसी की तरफ से उनको प्लांट का आवंट करने का नोटिस दे दिया गया। दलील है कि पांच साल में वह काम शुरू नहीं कर पाए है। सरकारी बाबू उनसे अब उसी प्लांट के दोबारा रजिस्ट्रेशन के लिए 18 लाख रुपए की मांग करता है।रणवीर कहते है कि एक तरफ प्रदेश सरकार नए धंध शुरू करने की बात करती है लेकिन दूसरी तरफ बाबू और विभाग के आला अधिकारी इस कदर कागजों में उलझाते है कि यहां धंधा खोलना बंद कर दे।
नौकरी छोड़कर शुरू किया उद्योग, अब यहां पर भी संकट
करीब एक दशक पहले तक एक निजी कंपनी में काम करने वाले शिवराज विश्वकर्मा ने नौकरी छोड़ कुछ अपना काम शुरू करने की प्लानिंग की। इसके लिए उन्होंने यहां प्रिंटिंग प्लांट डालने की पहल की। दावा है कि उन्होंने खुद की अपनी मशीन विकसित की है। इसके माध्यम से किसी भी प्रॉडक्ट पर एमआरपी और बाकी प्रिंटिंग कर सकते है।
शिवराज बताते है कि उन्होंने अपने प्लाट पर पक्का निर्माण कराने के साथ काम भी शुरू कर दिया है। इसका वीडियो संबंधित अधिकारी को भेजा गया है। लेकिन उसके बाद भी मौके पर आए अधिकारी ने कागज में लिख दिया है कि यहां कोई निर्माण नहीं हुआ है। न किसी तरह का काम होता है। बिजनेस लिंक की टीम मौक पर पहुंची तो उनको भी वहां काम होता नजर आया। बिजनेस शुरू करने में सहयोग तो दूर की बात है यहां काम न शुरू हो इसके लिए परेशान किया जाता है।
उन्होंने बताया कि उनको बिजली का कनेक्शन लेने के लिए दो साल लग गए। सरकार एक तरफ दावा करती है कि सिंगल विंडो पर सभी काम होंगे और यूपी में लघु उद्योग की भरमार होगी। दूसरी तरफ उनके ही विभाग यूपीएसआईडीसी के लोग काम शुरू नहीं होने देना चाहते है। उद्यमियों का आरोप है कि किसी भी तरह से उगाही हो जाए उस पर ध्यान रहता है।
वह बताते है कि वह अपना काफी पैसा पहले ही लगा चुके हैं। उसके बाद भी अगर काम न शुरू हुआ तो दोबारा कोई नौकरी पेशा आदमी उप्र में सरकारी मदद से अपना बिजनेस शुरू करने से पहले चार बार सोचेगा।
पुरानी फैक्ट्री बेचकर शुरू किया उद्योग, अब यहां जान सांसत में फंसी
भूप सिंह ने कानपुर स्थित अपने दाना फैक्ट्री का सामान बेच दिया कि वह कानपुर देहात के इंडस्ट्री इलाके में तसला फैक्ट्री शुरू करेंगे। इसके लिए 600 मीटर स्क्वायर फीट जमीन ली। इसका करीब चार लाख 80 हजार रुपए का भुगतान किया। सभी किस्त समय से जमा किया।
उसके बाद बिजली के कनेक्शन के लिए तीन साल संघर्ष किया। ढाई लाख रुपए खर्च करने के बाद बिजली का कनेक्शन मिला। उसमें भी पावर कॉरपोरेशन वालों ने कहा कि आपको अपना अलग ट्रांसफॉर्मर लगाना होगा। क्योंकि आपका कनेक्शन 25 किलोवॉट का है। हालांकि यहां 10 से ज्यादा ऐसे कनेक्शन दिए गए है जहां कोई ट्रांसफॉर्मर नहीं लगाया गया है। बिजेनस शुरू करना था यह मांग मांगनी पड़ी।
तसला बनाने के लिए पंजाब से करीब 18 लाख की मशीन मंगवाई। लेकिन तभी लॉक डाउन लग गया। करीब 16 महीने से यहां कोई काम नहीं हो पाया है। सबकुछ करने के बाद इनको भी प्लांट कैंसिल करने का नोटिस दिया जा रहा है। दलील है कि आपने भी काम शुरू नहीं किया है। यहां मानचित्र पास करने का काम खुद यूपीएसआईडीसी के लोगों को करना होता है।
उन्होंने इसको भी पास नहीं किया और उसके लिए भी नोटिस पकड़ा देते है। पहले से ही घाटे और नुकसान की मार झेल चुके भूप सिंह की यूपीएसआईडीसी के चक्कर काट – काट कर परेशान हो चुके है। स्थिति यह है कि बात करते करते उनकी आंखों से आशू निकल आते है। महंगाई और बिजनेस न होने की वजह से स्कूटी से रोज 50 किलोमीटर दौड़ लगाते है लेकिन सरकारी अधिकारियों और बाबूओं को उनकी पीड़ा नहीं दिखती है।
जानबूझकर फंसाई अड़चन, अब हम परेशान
प्रदीप कुमार अग्रवाल ने अल्मुनियम का काम शुरू करने के लिए 8800 स्कवायर मीटर जमीन ली। इसकी बाउंड्री, टीन शेड और बाकी काम में करीब दो करोड़ रुपए खर्च कर दिए। स्थिति यह है कि यहां काम भी शुरू हो गया। बिजली कनेक्शन और प्रदूषण की एनओसी के लिए सालों तक दौड़ लगाई लेकिन एक छोटी सी कमी निकाल इनको परेशान किया जा रहा है।
उन्होंने बताया कि नक्शा पास कराने के लिए साल 2015 में ही कागज जमा किया, जिसके ऊपर साल 2017 तक कार्रवाई होती रही। स्थिति यह है कि सब काम करवाने के बाद भी दो लाख रुपए का शमन शुल्क जमा कराया गया है। उन्होंने बताया कि साल 2019 में उनके यहां सर्वे कराने वाले आए थे, इसमें पांच प्वाइंट पर सर्वे होता है। उनके सभी काम पूरे थे।
लेकिन जानबूझ कर सर्वे में .3 फीसदी की कटौती करते हुए उनको 4.7 नंबर दिए गए। इसके आधार पर उत्पादन के लिए उनको काम नहीं दिया जाता है। अब 2015 से 2021 तक एक्सरेशन का 30 लाख रुपए की डिमांड की जा रही है। स्थिति यह है कि लॉक डाउन की वजह से काफी घाटे में है। अपना ज्यादातर काम पूरा कर चुके है लेकिन यूपीएसआईडीसी के बाबू परेशान करने का कोई तरीका नहीं छोड़ता है।
सब कुछ दांव पर लगाने के बाद अब कुछ नहीं बचा
हमने अपनी जिंदगी की पूरी जमापूंजी लगा दी है। अब हमारे पास कुछ बचा ही नहीं है। अधिकारियों की मनमानी के कारण हम कंगाली के कगार पर आ गए हैं। यहां पर इंडस्ट्री शुरू करने वालों में सबसे ज्यादा दलित और पिछड़े समाज के लोग हैं।
जाति के आधार पर भी भेदभाव किया जा रहा है। कोरोना के कठिन दौर के बीच हमने अपना सबकुछ दांव पर लगा दिया है, लेकिन हालात ऐसे हैं कि अब हम कुछ कर पाने की स्थिति में नहीं हैं। सरकार को हमारी समस्याओं पर ध्यान देना चाहिए।
– हरदीप सिंह राखरा, जोनल चेयरमैन कानपुर, स्मॉल इंडस्ट्री मैन्युफैक्चर एसोसिएशन।