होली 2020: महाशिवरात्रि के त्योहार के बाद वर्ष का दूसरा बड़ा त्योहार होली का होता है। हिंदू धर्म में होली का त्योहार बहुत ही खुशी और उल्लास के संग मनाया जाता है। यह रंगों का त्योहार है। इस त्योहार को आध्यात्म से भी जोड़ा गया है। ऐसी मान्यता है कि होली का पर्व होलिका दहन के साथ शुरू होता है। होलिका दहन को यदि शुभ मुहूर्त में किया जाए तो यह शुभ फल देता है। चलिए उज्जैन की ज्योतिषविद रश्मि शर्मा ने बताया कि इस वर्ष होली का पर्व कब है और किस शुभ मुहूर्त में होलिका दहन किया जाएगा और इस पर्व से जुड़ी क्या कथा है।
इस वर्ष होली का पर्व 10 मार्च को है। 9 मार्च को होलिका दहन होगा इसके बाद ही रंगों के त्योहार होली की शुरुआत होगी। होली पूजन का शुभ मुहूर्त 9 मार्च को शाम 5:00 से रात 8:00 बजे तक है। यदि आप इस दौरान होलिका दहन नहीं कर पाते हैं तो रात 11:00 बजे से 12:30 तक भी शुभ मुहूर्त है। इस मुहूर्त में भी आप होलिका दहन कर सकते हैं। यदि इस मुहूर्त में भी आप होलिका पूजा नहीं कर पाते तो 10 मार्च सुबह 3:00 से 6:00 बजे तक का समय भी शुभ है। इसके बाद 10 मार्च को होली खेली जाएगी।
आपको बता दें कि 9 मार्च को फाल्गुन पूर्णिमा है। पूर्णिमा के दिन ही होलिका दहन होता है। इसके दूसरे दिन दूज मनाई जाती है। इस बार दूज 11 मार्च को लग रही है। उत्तर भारत में दूज के दिन बहने अपने भाई को रक्षा तिलक लगाती हैं और भाई बहनों को उपहार देते हैं। उज्जैन के ज्योतिषविद रश्मि शर्मा के अनुसार, 9 मार्च को गुरु अपनी धनु राशि में और शनि भी अपनी ही राशि मकर में रहेगा। ऐसा कई वर्षों बाद हो रहा है। अनुमान लगाया जा रहा है कि इससे पहले इन दोनों ग्रहों का ऐसा योग 3 मार्च 1521 को बना था। देखा जाए तो यह योग अब 499 वर्ष बाद बन रहा है।
होली के दिन शुक्र मेष राशि में, मंगल और केतु धनु राशि में, राहु मिथुन में, सूर्य और बुध कुंभ राशि में, चंद्र सिंह में रहेगा। ग्रहों के इन योगों में होली आने से बहुत शुभ फल मिलते हैं। यह योग इस ओर इशारा करते हैं कि आने वाले दिनों में देश में शांति रहेगी। । व्यापारी वर्ग के लोगों के लिए भी यह होली बहुत ही शुभ है। आपको बता दें कि हर साल जब सूर्य कुंभ राशि में और चंद्र सिंह राशि में होता है, तब होली मनाई जाती है।
होली की कथा भक्त प्रह्लाद और हिरण्यकश्यप की बहन होलिका से जुड़ी है। कथा के अनुसार प्राचीन समय में हिरण्यकश्यप नाम का असुरों का एक राजा हुआ करता था। वह खुद को ही भगवान मानता था। उसकी प्रजा भी उससे दुखी थी। वह भगवान विष्णु को अपना शत्रु मानता था। अपनी प्रजा को वह भगवान विष्णु की पूजा नहीं करने देता था। हिरण्यकश्यप की पत्नी गायाधु नागलोक के नागराज की पुत्री थी। उसका पुत्र प्रह्लाद श्रीहरि का परम भक्त था। इस बात से हिरण्यकश्यप बहुत नाराज रहता था।
वह अपने ही पुत्र को अपना शत्रु समझता था। कई बार वह अपने पुत्र प्रह्लाद को मारने का प्रयास भी कर चुका था मगर, प्रह्लाद श्रीहरी का भक्त था। हर बार प्रह्लाद अपने पिता के बिछाए जाल से बच जाता था। प्रह्लाद पर उसके पिता ने बहुत जुल्म ढाए मगर उसने श्रीहरी की भक्ति नहीं छोड़ी। अंत में हार मान कर हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका का सहारा लिया। हिरण्यकश्यप बहन होलिका को वरदान मिला था कि वह आग में नहीं जलेगी। फाल्गुन मास की पूर्णिमा पर हिरण्यकश्यप ने लकड़ियों की शय्या बनाकर होलिका की गोद में प्रह्लाद को बैठा दिया और आग लगा दी। मगर, गलत उद्देश्य से किया गया हर कार्य असफल होता है। इसी तरह उस आग में प्रह्लाद तो बच गया मगर होलिका जल कर राख हो गई। तभी से हर साल इसी तिथि पर होलिका दहन किया जाता है।