Guru Pradosh Vrat || वैशाख मास कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत (Guru Pradosh Vrat) रखा जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार हर माह में दो बार प्रदोष व्रत रखे जाते हैं। पहला कृष्ण पक्ष में पड़ता है और दूसरा शुक्ल पक्ष में। इस बार त्रयोदशी तिथि गुरुवार को है। जिसकी कारण इसे गुरु प्रदोष व्रत के नाम से जाना जाएगा। मान्यता के अनुसार इस दिन भगवान शिव की विधि विधान के साथ पूजा अर्चना की जाती हैं। माना जाता है कि गुरु प्रदोष व्रत के दिन जो व्यक्ति नियमानुसार पूजा एवं व्रत रखता है। उसे हर प्रकार के कष्ट से छुटकारा मिल जाता है। इसी के साथ उस व्यक्ति को शत्रु पर विजय हासिल होती हैं तो आइए जानते हैं। गुरु प्रदोष व्रत का शुभ मुहूर्त, महत्व एवं पूजा विधि
गुरु प्रदोष व्रत शुभ मुहूर्त
त्रयोदशी तिथि का आरंभ 28 अप्रैल सुबह 12:30 पर शुरू होगा। और तिथि का समापन 29 अप्रैल सुबह 12:26 पर होगा। उदया तिथि के अनुसार त्रयोदशी व्रत 28 अप्रैल को रखा जाएगा। वही पूजा का शुभ मुहूर्त 28 अप्रैल शाम 6:54 से रात 9:04 तक है।
त्रयोदशी व्रत की पूजा विधि
इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सभी कामों को पूरा करके निवृत्त होकर नहीं स्नान करें। और साफ-सुथरे कपड़े धारण करें भगवान शिव और माता पार्वती का ध्यान करें और व्रत का संकल्प लें इसके बाद भगवान शिव की पूजा आरंभ करें पूजा आरंभ करते ही सबसे पहले गंगाजल छिड़क कर पूजा स्थल को शुद्ध करने के बाद आसन बिछाकर बैठ जाएं। भगवान शिव पर पुष्प, माला, धतूरा, बेलपत्र, भांग, चीनी, शहद, दही आदि चढ़ाएं। प्रभु के रूप में कुआं हलवा और चना चढ़ाए। घी का दीपक जलाकर भगवान शिव के मंत्रों का उच्चारण करें। शिव चालीसा का पाठ करें अंत में आरती करके भगवान शिव के सामने माथा टेके। इसके बाद भगवान शिव को अर्पित भोग प्रसाद के रूप में सभी को बांट दें। दिनभर फलहारी करें। अगले दिन सुबह व्रत का पारण करें।
त्रयोदशी व्रत का महत्व
हिंदू मान्यताओं के अनुसार त्रयोदशी तिथि का काफी महत्व माना जाता है। मान्यता के मुताबिक भगवान शिव ने इस तिथि को असुरों को परस्त करते हुए उनका विनाश कर दिया था। प्रदोष व्रत का धार्मिक महत्व है। धार्मिक मान्यता के अनुसार सप्ताह के सातों दिन के प्रदोष व्रत बेहद खास होते हैं। गुरु प्रदोष व्रत करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। मान्यता है कि इस व्रत को करने से संतान पक्ष को लाभ प्राप्त होता है।