गोरखपुर। गोरखपुर बीआरडी अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी के कारण हुई 60 बच्चों की मौत से पूरे देश में हलचल मची है। सभी के मुंह पर एक ही सवाल की आखिर इन बच्चों की मौत का जिम्मेदार कौन है। अस्पताल प्रशान या यूपी सरकार हर कोई उन परिवारों के दुख में शामिल हैं जिन्होंने अपने बच्चे खो दिए हैं। लोग दोषियों पर कड़ी कार्रवाई की मांग कर रहे हैं। गोरखपुर घटना में एक नया खुलासा हुआ है जिसमें मेडिकल कॉलेज के डॉ. कफील को दोषी पाया गया है। इससे पहले सामने आया था कि कफील ने मुश्किल वक्त में ऑक्सीजन सिलेंडर मंगाए और मदद की। लेकिन इस वक्त जो उनको लेकर बातें सामने आ रही हैं वो हैरान कर देने वाली हैं और बिल्कुल अलग हा कहानी कह रही हैं।
बता दें कि मेडिकल कॉलेज से जुड़े कई लोगों का कहना है कि मीडिया की वो सारी रिपोर्ट गलत हैं जिनमें कफील को फरिशता बताया जा रहा है। जबकि सच्चाई इससे बिल्कुल अलग है। डॉ. कफील बीआरडी मेडिकल कॉलेज के इन्सेफेलाइटिस डिपार्टमेंट के चीफ नोडल ऑफिसर हैं। लेकिन कफील मेडिकल कॉलेज से ज्यादा अपनी प्राइवेट प्रैक्टिस के लिए जाने जाते हैं। कफील पर आरोप लगा है कि वो अस्पताल के सिलेंडर चुराकर अपने निजी क्लीनिक पर इस्तेमाल करते थे। वहीं कफील को राजीव मिश्रा का काफी अच्छा दोस्त कहा जाता है और दोनों ही इस हादसे के सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं। लेकिन हादसे के बाद से उन्हें ऐसे पेश किया जा रहा था जैसे वो कोई फरिश्ता हैं। बताया जा रहा है कि खुद को फरिश्ता साबित करने में कफील ने अपने पत्रकार दोस्त की मदद ली और उसके जरिए खुद को लोगों के सामने अच्छा साबित किया।
कफील मेडिकल कॉलेज की खरीद के मेंबर भी हैं। इसलिए उन्हें ऑक्सीजन स्पलाई के बारे में सबकुछ पता था। हादसे से पहले जब सीएम योगी ने अस्पताल का दौरा किया था तो डॉ. कफील भी उनके आगे पीछे घुम रहे थे। लेकिन ऑक्सीजन की कमी को लेकर उन्होंने भी उन्हें कुछ नहीं बताया था। कफील को लेकर मेडिकल के कई अधिकारी और कर्मचारियों का कहना है कि मेडिकल में होने वाली खरीद में डॉ. कफील का कमीशन तय रहता था। वो हर खरीद पर अपना कमीशन जरूर लेते थे। इन बातों के सामने आने पर कफील की भूमिका की जांच होवनी जरूरी हो गई है।
बताया गया है कि जिस दिन हादसा हुआ उस दिन भी कफील अपने निजी अस्पतास में थे। कफील वो डॉ. हैं जो खुद परचेस कंमेटी के मेंबर है जो चाहे तो खुद सिलेंडर खरीद सकते हैं। हादसे के दिन भी कफील मरीजों के पास होने के बजाय मीडिया के सामने थे। जबकि उनके लिए मरीजों के पास होना ज्यादा जरूरी था। बाकी डॉक्टरों का ध्यान बच्चों की तरफ लगा था। लेकि कफील का पूरा ध्यान मीडिया पर टिका था।