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”मामले को तूल देना गलत, जवान के वीडियो पर हो आंतरिक कार्यवाही”

tej bahadu G ''मामले को तूल देना गलत, जवान के वीडियो पर हो आंतरिक कार्यवाही''

नई दिल्ली। पिछले दिनों बीएसएफ जवान तेज बहादुर यादव ने सोशल मीडिया के माध्यम से उसे मुहैया कराए जा रहे भोजन की गुणवत्ता पर सवाल उठाया था। वीडियो के सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद केंद्र सरकार हरकत में आई और प्रधानमंत्री कार्यालय ने इस संबंध में गृह मंत्रालय से रिपोर्ट मांगी थी। इस पर इंडियन आर्मी के रिटायर्ड आफीसर मेजर गगनदीप बख्शी (जी डी बख्शी) से फोन पर हुई बातचीत का विस्तृत वर्णन-

tej bahadu G ''मामले को तूल देना गलत, जवान के वीडियो पर हो आंतरिक कार्यवाही''

 

1- बीएसएफ के जवान तेज बहादुर के वायरल हुए वीडियो के बाद पीएमओ को आज गृह मंत्रालय ने अपनी रिपोर्ट सौंप दी है जिसमें जवान की शिकायत गलत पाई गई है इस पर आप क्या कहना चाहेंगे? 

–  मेजर बख्शी ने इस वीडियो और इसके प्रभाव के अन्य पहलुओं पर भी विस्तृत चर्चा करते हुए कहा कि इस तरह के आरोपों की जो भी शिकायतें आती हैं वो बहुत ही सीरियस ली जाती हैं आर्म सर्विसेज के अंदर। इसकी पूरी तरह से जांच होनी चाहिए जिससे पूरी आर्गेनाइजेशन को इस बात का संदेश मिल जाए कि कोई इसमें रियायत नहीं मिलेगी। उन्होंने कहा कि पिछले कई दिनों से इस तरह की शिकायतों का एक ट्रेंड बनता जा रहा है। मीडिया में इस तरह की चीजों को काफी हाइक मिल रहा है। कुछ जवान अपने पर्सनल मनमुटाव के चलते वो अपनी आर्गेनाइजेशन को डिफेम करने की कोशिश कर रहे हें। आॅफीसर और जवान के बीच के बान्ड और रिश्ते में दरार पैदा कर रहा है जो कि एक सोचनीय विषय है, क्योंकि इससे फौज के अंदर की अंतर्निहित आज्ञाकारिता और अनुशासन को धक्का पहुंचता है। इसके साथ उन्होंने दर्खास्त करते हुए कहा है कि इस तरह के मामलों की आंतरिक जांच होनी चाहिए, और अगर कोई अफसर इसमें दोषी पाया जाता है उसके खिलाफ कार्यवाही होने के साथ ही ये सुनिश्चित किया जाए कि ये एक मीडिया ट्रायल या पब्लिक ट्रायल न बन जाए ये सारी प्रक्रियाओं की जांच इंटर्नली होनी चाहिए। जिससे कि हम एक व्यापक लाॅ एण्ड आर्डर की तस्वीर पैदा करें। 

इसके अलावा इस तरह की चीजों से बाहरी देशों खासकर पाकिस्तान को हमारे ऊपर व्यंग करने और उपहास बनाने का मौका मिल रहा है। हम अपनी ही सेनाओं का तमाशा भी नहीं बना सकते। हमें जवानों को उकसाना नहीं चाहिए जिससे देश का बड़ा नुकसान होगा। एक आर्गेनाइजेशन को बनाने में सदियों और दशकों का समय लगता है, अफसर, जेसीओ और जवान के बीच का बान्ड क्रिएट करने में और इस तरह की चीजों से मिनटों में वो सारी चीजें अपना अस्तित्त्व खो देती हैं।

2- एक और वीडियो में जीत सिंह (जवान) ने आरोप लगाया है कि जो जवान हैं उन्हें अफ्सरों के पर्सनल काम करने पड़ते हैं जैसे के शू-पाॅलिश करना, बच्चों को स्कूल लेके जाना आदि, इसमें अनुसार कितनी सच्चाई है?

– लड़ाई में जो अफसर होता है उसके कंधो पर बहुत सी जिम्मेदारियां होती हैं हमला कैसे होगा, अगले दिन की प्लानिंग कैसी होगी, स्ट्रेटेजी बनाना, आदि तो इसलिए उसे मदद देने के लिए सेना में एक (BUDDY SYSTEM) की शुरूआत हुई थी, जिससे की लड़ाई के समय अफ्सर की मदद हो जाती थी। जिसका बाद इसका कई बार दुर्पयोग होने की बात सामने आई थी, जिसके चलते इसे बन्द कर दिया गया था और इसको दोबारा शुरू करने की बात को रेवेन्यु के बढ़ जाने का हवाला देकर सरकार ने मना कर दिया। इस तरह के एक दो वाक्यों की वजह से पूरी सेना के अफसरों के ऊपर आरोप लगाना, उन्हें गालियां देना कि वो गिरे हुए हैं बदजात हैं वो उल्टी-सीधी हरकतें करते हैं ये सही नहीं हैं। ये बहुत ही गलत आरोप हैं। अगर इस तरह की कोई बात होती तो पिछले 70 वर्षों से सेना कैसे काम कर रही हैं। अगर ऐसी कोई बात होती तो अब तक कई बार बगावत हो चुकी होती।

3- इस तरह के मामले, और आरोपों के बाद इंटरनेशनली और नेशनल लेवल पर इंडियन आर्मी की छवि काफी खराब हो रही हैं। इस पर अापका क्या कहना है? इस तरह के आरोप कितने सही है?

– देखिए इस तरह के आरोप लगते रहते हैं और ये कुछ नया नहीं है 1.3 मिलियन आर्मी में इक्के दुक्के मनमुटाव हो जाते हैं छुट्टी को लेकर, अपनी पसंद की पोस्टिंग न मिलने पर, प्रमोशन को लेकर। इस तरह के एक दो लोगों के बेस पर बाकी 98 प्रतिशत फौज पर सवाल खड़ा करना सही नहीं है। हर फौज चाहे वो पाकिस्तान हो या कोई और हर फौज में इस तरह की छोटी-छोटी बातें होती रहती है लेकिन इसका नेशनल लेवल पर इस तरह मजाक बनवाना सही नहीं। इससे उन्हें एक मैसेज मिलता है कि हम आपस में ही भिड़ते रहते हैं जिसका बाहर वाले आकर फायदा उठाते हैं और इसी की वजह से बाहर वाले आकर हम पर राज करते रहे हैं।

इस तरह की हरकतों से सेना में ही आपसी रंजिश पैदा करना किसी भी तरह से सही नहीं है। मीडिया को अपनी जिम्मेदारी समझते हुए इस तरह की चीजों को तूल देने से बचना चाहिए। जो भी बात है उसे सेना के अंदर ही रखना चाहिए। इस तरह मीडिया में आकर हीरो बनने के लिए, सिर्फ फेम के लिए अपने अफसरों और चीफ को गाली देना सही नहीं है।

4- धीरे-धीरे टेक्नाॅलाजी और सोशल प्लेटफार्म का गलत फायदा उठाया जा रहा है, इसका दुर्पयोग हो रहा है। इस पर क्या कहेंगे?

– बिल्कुल, बहुत ज्यादा दुर्पयोग हो रहा है और सेना के कानून बिल्कुल इजाजत नहीं देते कि आप इस तरह सार्वजनिक क्षेत्र पर बात करें अगर कोई बात होती है तो वो सेना के अंदर रखी जाती है। बड़े टाइम और प्रोसिजर हैं किसी भी मामले के लिए और इन बांतो के लिए। 70 सालों से इसी तरह सेना कार्यान्वित है, अपना काम कर रही हैं और इस तरह से सिर्फ पांच मिनट के फेम के लिए अपने अफसरों और चीफ को गाली देना और मीडिया में हीरो बन जाना किसी भी लिहाज से सही नहीं है। इस तरह से सेना में विद्रोह करना ठीक नहीं है।

आखिरकार सेना को ही इन सारे मामलों में कदम उठाने हैं फैसले लेने हैं जवानों को सेना के चीफ पर पूरा विश्वास करना चाहिए। इतनी सारी स्टेजेस से गुजरने के बाद बनाए जाने वाले आर्मी चीफ काफी तजुर्बेकार होते हैं उन्हें हैंडल करने दीजिए। जंतर-मंतर पर कोई रैली करके इस तरह की चीजों का हल नहीं निकाला जाता।एक के बाद एक इस तरह के वाक्यों को बढ़ावा मिलने के कारण ही ऐसे शरारती तत्वों को हवा मिलती है और इन जवानों का बैकग्राउण्ड चेक करने से पता चलता है कि ये ज्यादातर अनुशासनहीन रहे हैं। कभी अफसरों के साथ हाथापाई हुई तो कभी छु्ट्टी से समय पर वापस नहीं आए। तो इस तरह के एक दो लोगों की वजह से सेना पर प्रश्नचिंह लगाना सही नहीं है अगर इनकी बांतो पर विश्वास करके सेना में उपद्रव को बढ़ावा नहीं देना चाहिए सशस्त्र सेना में इस तरह के मामलों को तूल देकर पाकिस्तान के लिए रास्ते खुल रहे हैं।

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