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चीन का दावा, कभी नहीं किया गया चीन और भूटान के बीच सीमा को निर्धारित

president of china 1 चीन का दावा, कभी नहीं किया गया चीन और भूटान के बीच सीमा को निर्धारित

भूटान। पूर्वी भूटान के सकतेंग वन्यजीव अभयारण्य पर चीन के दावों का भूटान से विरोध करने के कुछ ही दिनों बाद चीन ने प्रतिक्रिया देते हुए “पूर्वी सेक्टर” को सीमा विवाद में जोड़ दिया है। अंग्रेज़ी अखबार द हिंदू ने लिखा है चीनी विदेश मंत्रालय ने मीडिया को दिए अपने एक बयान में कहा, “चीन और भूटान के बीच सीमा को कभी भी निर्धारित नहीं किया गया। पिछले काफ़ी समय से पूर्वी, मध्य और पश्चिमी क्षेत्रों में विवाद चल रहे हैं।

बता दें कि चीनी विदेश मंत्रालय ने ये प्रकिक्रिया सकतेंग अभयारण्य से जुड़े एक सवाल पर दी। चीन ने पिछले महीने सकतेंग अभयारण्य को संयुक्त राष्ट्र के ग्लोबल इन्वाइरन्मेंट फैसिलिटी यानी GEF के तहत मिलने वाले फंड को रोकने की कोशिश की थी। चीन का तर्क था कि अभयारण्य ‘विवादित’ इलाक़े में है। अख़बार के मुताबिक भूटान और चीन के बीच 1984 से 2016 के बीच 24 बार सीमा वार्ता हुई है। लिखित दस्तावेज़ों के अनुसार इससे पहले कभी भी पूर्वी भूटान या त्राशिगैंग दोंगशाक ज़िला, जहां सकतेंग अभयारण्य है, उसका ज़िक्र नहीं किया गया। ये ज़िला अरुणाचल प्रदेश की सीमा पर स्थित है।

चीन भारत के करीबी देशों को सबक सिखाना चाहता है

2017 में हुए डोकलाम विवाद के बाद दोनों देशों के बीच किसी तरह की कोई बातचीत नहीं हुई है। जुलाई 2018 में चीन के उप विदेश मंत्री कॉन्ग श्यांयू भूटान के दौरे पर गए और भूटान के राजा, प्रधानमंत्री और दूसरे अधिकारियों से मुलाक़ात की थी। लेकिन 25वीं सीमावार्ता नहीं हुई। सूत्रों के मुताबिक 2019 में वार्ता के लिए तारीख़ तय करने में मुश्किलें आ रही थीं और 2020 में कोरोना महामारी से और विलंब हो गया। अख़बार ने लिखा कि भूटान सरकार और दिल्ली में भूटान के दूतावास ने इस मुद्दे पर बात कुछ कहने से इनकार कर दिया। भूटान चीन के साथ अपनी सीमावार्ताओं के लेकर हमेशा ही चुप रहा है। उसके चीन के साथ किसी तरह के राजनयिक संबंध भी नहीं है। विदेश मंत्रालय ने भी इस मामले पर बोलने से इनकार कर दिया।

अख़बार के मुताबिक़ भूटान ने पिछले महीने भारत में चीन के दूतावास को एक आधिकारिक संदेश भेजकर विभिन्न परियोजनाओं के लिए वैश्विक अनुदान पर निर्णय लेने वाली जीईएफ की बैठक में चीन के दिए बयान का विरोध किया था। सकतेंग अभयारण्य को पहले भी इस तरह के अनुदान मिलते रहे हैं। साल 2018-19 में मिट्टी का कटाव रोकने से जुड़े प्रोजेक्ट पर भी अनुदान मिला था। चीन ने उसका विरोध नहीं किया था।

अख़बार ने सूत्रों के हवाले से बताया है कि “भूटान ने चीन को एक कड़ा संदेश दिया था। इसके अलावा भूटान ने GEF काउंसिल की मीटिंग में भी अपनी बात रखी थी। उस वक़्त भूटान ने ये सोचा था कि चूंकि उस मीटिंग में चीनी विदेश मंत्रालय का कोई प्रतिनिधि नहीं था और चीनी फाइनैंनशियल एंड मॉनिटरी कॉर्पोरेशन के एक उप महानिदेशक वहां मौजूद थे, इसलिए ये बात बहुत सोच समझकर नहीं कही गई होगी। चीन उन अनुदान को रोकने में नाकामयाब रहा था।

दो-तीन जून को GEF काउंसिल की एक वर्चुअल मीटिंग हुई थी। मीटिंग के चेयरमेन की ओर से जारी एक सारांश में वर्ल्ड बैंक में भूटान, बांग्लादेश, भारत, मालदीव और श्रीलंका के प्रतिनिधियों ने कहा था कि, “भूटान चीन के परिषद सदस्य द्वारा किए गए दावे को पूरी तरह से ख़ारिज करता है। सकतेंग वन्यजीव अभयारण्य भूटान का एक अभिन्न और संप्रभु क्षेत्र है और भूटान और चीन के बीच सीमावार्ताओं के दौरान इसे लेकर कभी बात नहीं हुई। सूत्र के मुताबिक़, “भूटान को उम्मीद थी कि जवाब के बाद ये मुद्दा ख़त्म हो जाएगा।

डोकलाम विवाद में भारत-चीन की सेना आमने सामने आ गई थी

भूटानी विशेषज्ञों का कहना है कि सकतेंग पर दावा अगले दौर की सीमा वार्ता में बातचीत के नए मोर्चे खोल देगा। भूटान के एक अख़बार के संपादक तेनज़िग लैमसैंग ने पिछले हफ़्ते ट्वीट कर लिखा था, “ऐसे दावों से सीमावार्ता की अहमियत कम होती है। इस तरह के दावे दोनों देशों के बीच विवाद को बढ़ावा देंगे क्योंकि फिर भूटान दूर उत्तर की तरफ़ दावा करने लगेगा।

ट्वीट की इसी कड़ी में उन्होंने आगे लिखा, “भूटान और चीन को अपने सीमा विवादों को सुलझाने की ज़रूरत है नहीं तो ऐसे झूठे दावों से दबाव की रणनीति के लिए इस्तेमाल किए जाएंगे।” द टाइम्स ऑफ़ इंडिया अखबार ने सूत्रों के हवाले के बताया है कि ये क़दम भारत पर दबाव बढ़ाने का एक ज़रिया है। चीन अपने छोटे पड़ोसी देशों को भारत से नज़दीकियों की सज़ा देना चाहता है। डोकलाम में भी चीनी सेना ने भूटान की ज़मीन पर निर्माण कार्य करने की कोशिश की थी जिसके कारण भारत और चीन के सेनाओं आमने-सामने आ गई थीं और सीमा पर 72 दिनों तक तनाव रहा था।

वैक्सीन के लिए 15 अगस्त का लक्ष्य अवास्तविक- IASc

अंग्रेज़ी अखबार ने इस ख़बर को पहले पन्ने पर जगह दी है। इंडियन अकादमी ऑफ साइंसेस यानी IASc ने भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद यानी आईसीएमआर की कोरोना वैक्सीन बनाने को कोशिशों की तारीफ़ की है लेकिन “किसी भी तरह की जल्दबाज़ी जिससे वैज्ञानिक प्रक्रिया या मानकों से समझौता करना पड़े” को लेकर आगाह किया है।

वैक्सीन बनाने में जल्दबाज़ी न हो – IASc

अपने एक बयान में वैज्ञानिकों ने कहा, “IASc वैक्सीन को लेकर हो रही प्रगति से ख़ुश है और आशा करता है कि लोगों के इस्तेमाल के लिए ये जल्द तैयार हो जाए। लेकिन वैज्ञानिकों के एक समूह के नाते, जिनमें कई टीका बनाने वाले वैज्ञानिक शामिल हैं, IASc ये मानता है कि जिस समय सीमा का ऐलान किया गया है, वो अवास्तविक है। इस समय से सीमा के नागरिकों के मन में बेबुनियाद उम्मीद और अपेक्षाएं जगा दी हैं।

देश के 1100 जानेमाने वैज्ञानिक IASc का हिस्सा हैं

ओली-प्रचंड बातचीत बेनतीजा द इकॉनॉमिक टाइस के मुताबिक़ नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली और नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के प्रमुख पुष्प कमल दहाल प्रचंड के बीच रविवार को हुई बातचीत बिना किसी नतीजे के ख़त्म हो गई। नेपाली अख़बार हिमालयन टाइम्स के मुताबिक़ दोनों नेता सोमवार को फिर अगले दौर की बातचीत के लिए मिलेंगे। पार्टी के अंदर विवाद के बाद दोनों पार्टी प्रमुख बातचीत से हल तलाशने की कोशिश कर रहे हैं। ओली को पार्टी के भीतर काफ़ी विरोध का सामना करना पड़ा है। 30 जून को हुई कमिटी मीटिंग में कई सदस्यों ने उनके इस्तीफ़े की मांग की।

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