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चीट इंडिया आखिरकार “वाय चीट इंडिया” बनकर हुई रिलीज, इमरान की इमेज से है बिल्कुल अलग

imran hashmi चीट इंडिया आखिरकार "वाय चीट इंडिया" बनकर हुई रिलीज, इमरान की इमेज से है बिल्कुल अलग

नई दिल्ली। चीट इंडिया आखिरकार “वाय चीट इंडिया” बनकर रिलीज हो गई। इमरान पहली बार किसी ऐसी फिल्‍म में काम कर रहे हैं जो उनकी बनी बनाई इमेज से अलग है। फिल्‍म में एजुकेशन सिस्टम की कहानी को दिखाने की कोशिश की गई है। गुलाब गैंग जैसी फिल्म का निर्देशन कर चुके सौमिक सेन ने इस कहानी का निर्देशन किया है। ये कहानी झांसी के राकेश शर्मा उर्फ रॉकी की है। उसे खुद को राकेश शर्मा “जी” कहलाना पसंद है। राकेश ऐसा युवा है जो सिंगर बनना चाहता है।

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बता दें कि ज्यादातर बहरतीय पिता की तरह ही दबाव में मेडिकल की परीक्षा में बैठना पड़ा। तीन कोशिशों के बावजूद उसे नाकामी ही मिली। पढ़ाई में नाकामी और पिता के तानों के बीच वह कोचिंग सेंटर खोल लेता है और यहीं से कहानी शुरू होती है एजुकेशन सिस्टम में पनपे उस भ्रष्टाचार की जहां स्टूडेंट्स से रिश्‍वत लेकर उन्हें डॉक्टर, इंजीनियर और बैंक मैनेजर बनाया जाता है। राकेश एग्जाम में सेटिंग और टॉपर लड़कों की मदद से ये काम करता है। ऐसा ही एक टॉपर है सत्येंद्र सत्‍तू (सिंहदीप चटर्जी) जिसे राकेश, अकलमंद से नकलमंद बना देता है।

सत्‍तू का छोटा परिवार है। बाप ने कर्ज लेकर इंजीनियरिंग की कोचिंग करवाई। पढ़ाई में वो टॉपर है सो रैंक भी शानदार मिली। इंजीनि‍यरिंग टॉपर सत्‍तू पर राकेश की नजर पड़ती है। परिवार की मजबूरी के चलते सत्‍तू राकेश की रैकेट का हिस्‍सा बन जाता है। सत्तू का काम कमजोर स्टूडेंट की जगह परीक्षा में बैठकर उन्‍हें टॉप कराना है। उसे बदले में पैसे मिलते हैं। सत्‍तू ड्रग्‍स की लत में फंस जाता है। उधर, नुपूर (श्रेया) को राकेश से प्‍यार हो जाता है। सत्तू का क्या होता है, नुपूर किस तरह राकेश की जिंदगी बदलती है। राकेश का क्या होता है, क्या वो अच्छा आदमी बनता है? ये तमाम बातें जानने के लिए फिल्म देखनी पड़ेगी।

इमरान हाशमी की एक्टिंग की बात करें तो वो काफी हद तक सीरियल किसर की इमेज से अलग एक शातिर बिजनेसमैन के किरदार में दिखे हैं। उनके करि‍यर में इस किरदार को एक बेंचमार्क माना जा सकता है। इमरान पर्दे पर अपनी भूमिका और लुक से प्रभावित करते हैं। नुपूर के रोल में श्रेया ने भी अच्‍छी एक्‍ट‍िंग की है। सिंहदीप भी अपने किरदार से असर डालते हैं। मूवी का खासियत है इसका ताना बाना। स्‍क्र‍िप्‍ट अपनी जगह ठीकठाक। सिस्‍टम को उल्‍लू बनाने के लिए सिस्‍टम में बैठे उल्‍लू पालने पड़ते हैं। “एग्‍जाम पास करने के लिए जिंदगी में फेल होना जरूरी नहीं है” जैसे कई अच्छे संवाद प्रभावित करते हैं. निर्देशन ठीक कहा जा सकता है।

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