कोलकाताः बिग्रेड मैदान में विपक्ष के 22 दलों की विशाल रैली हुई। इस रैली में देश को संदेश देने के कोशिश की गई कि देश में तीसरा विकल्प यानि यूनाइटेड फ्रंट तैयार हो गया है। मोदी सरकार को हराने के लिए विपक्ष एकजुट हो गया है। हालांकि जानकारों की मानें तो जब भी इस तरह का फ्रंट बना है तब सत्ताधारी दल को सत्ता से बाहर होना पड़ा है। वहीं पिछले इतिहस पर नजर डालें तो एक बात ये भी है कि विपक्ष ने जब भी एक जुट होकर सरकार बनाई है तो वह सरकार एक साल से ज्यादा नहीं चल सकी है।
बता दें कि मोदी सरकार और बीजेपी के खिलाफ एक जुट होकर विपक्ष ने विशाल जन रैली की है। पश्चिम बंगाल में हुई इस रैली में पूरा विपक्ष एक जुट दिखाई दिया। रैली के द्वारा विपक्ष ने जनता को संदेश दिया कि युनाइटेड फ्रंट बन गया है, जो कि मोदी सरकार के खिलाफ चुनाव लड़ेंगा। इतिहास के अनुसार जब-जब सत्ताधारी पार्टी के खिलाफ विपक्ष एकजुट हुआ है। तब-तब सत्ताधारी पार्टी को हारना पड़ा है, लेकिनइस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि छोटे और क्षेत्रीय दलों के मेलजोल से बनी सरकारें ज्यादा दिन तक नहीं तली हैं। ऐसी सरकारें मुश्किल से एक वर्ष तक ही चल सकी हैं। आइए जानते हैं ऐसे ही कुछ आंकड़ें।
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साल 1989 के लोकसभा चुनाव में 143 सीटें जीतने वाले जनता दल ने बीजेपी और बाकी छोटी पार्टियों के समर्थन से सरकार बनाई थी। वीपी सिंह प्रधानमंत्री बने थे लेकिन ये सरकार 343 दिनतक ही चल पाई थी। जनता दल टूटा और समाजवादी जनता दल नाम से नई पार्टी बनी। इसके नेता चंद्रशेखर देश के प्रधानमंत्री बने, लेकिन वो सिर्फ 223 दिन ही सरकार चला पाए और 1991 में दोबारा लोकसभा चुनाव करवाने पड़े थे। वर्ष 1996 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी पहली बार 161 सीट जीती थी। अन्य पार्टियों के समर्थन से अटल बिहारी बाजपेयी पहली बार देश के प्रधानमंत्री बने। उनकी ये सरकार सिर्फ 13 दिन ही चल सकी थी।
वाजपेयी सरकार गिरने के बाद जनता दल के नेतृत्व में यूनाइटेड फ्रंट की सरकार बनी थी। इस सरकार में एचडी देवेगौड़ा प्रधानमंत्री बने, लेकिन देवेगौड़ा सरकार 324 दिन तक ही चल सकी।कांग्रेस ने देवेगौड़ा सरकार से समर्थन वापस ले लिया, लेकिन चुनाव टालने के लिए कांग्रेस ने इंद्र कुमार गुजराल के नेतृत्व में इस गठबंधन को फिर से बाहर से समर्थन दे दिया, लेकिन यूनाइटेड फ्रंट की गुजराल सरकार 332 दिन ही चल पाई। करीब दो साल में 2 प्रधानमंत्री बदलकर ये सरकार गिर गई।
गौरतलब है कि साल 1998 में लोकसभा चुनाव में जनता ने एक बार फिर किसी पार्टी को बहुमत नहीं दिया। इस बार 182 सीट के साथ बीजेपी ने कई पार्टियों के साथ मिलकर सरकार बनाई और वाजपेयी दूसरी बार देश के प्रधानमंत्री बने, लेकिन 13 महीने सरकार चलने के बाद वाजपेयी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव आया, जिसमें एआईएडीएमके के एक वोट की वजह से वाजपेयी की सरकार गिर गई।