नई दिल्ली। आजादी से लेकर अब तक देश में 15 प्रधानमंत्री हुए हैं। प्रधानमंत्री देश का प्रतिनिधि और भारतीय सरकार का मुख्य कार्यकारी अधिकारी होता है। प्रधानमंत्री, संसद में बहुमत प्राप्त पार्टी का नेता होता है। ये देश के राष्ट्रपति का प्रमुख सलाहकार होता है साथ ही मंत्रीपरिषद का मुख्या भी होता है। देश में प्रधानमंत्री के रूप में जिसने वक्त गुजारा है वो पंडित जवाहर लाल नेहरू थे। उन्होंने प्रधानमंत्री के रूप में देश की सेवा करने का गौरव प्राप्त है। जो कि अपनी मृत्यु 1964 तक अपने पद पर बने रहे और देश की सेवा करते रहे। देश का प्रधानमंत्री कार्मिक, लोक शिकायत, पेंशन, आणविक ऊर्जा विभाग, अंतरिक्ष विभाग, नियोजन मंत्री और कैबिनेट की नियुक्ति कमेटी के प्रभारी होते हैं। प्रधानमंत्री मंत्रीपरिषद का निर्माण, विभागों का बँटवारा, कैबिनेट कमेटी के अध्यक्ष, मुख्य नीति संयोजक तथा राष्ट्रपति के सलाहकार का काम संभालते हैं। इसके साथ ही हम आपको देश के उन प्रधानमंत्रियों के बारे में बताएंगे जिन्होंने आजाद भारत में अपना योगदान दिया और देश की सेवा करने का गौरव प्राप्त किया।
पंडित जवाहर लाल नोहरू
पंडित जवाहर लाल नेहरू का जन्म 14 नवम्बर 1889 को ब्रिटेश भारत में इलाहबाद में हुआ था। नेहरी के पिता का नाम मोती लाल नेहरू था। नोहरू के पिता एक कश्मीरी पंडित समुदाय से थे। नेहरू के पिता दो बार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए। वहीं नेहरू की मां पाकिस्तान में बसे बहुत ही मशहूर परिवार से थी। नेहरू की मां की मौत के बाद उनके पिता ने दूसरी शादी कर ली थी उनकी दूसरी मां की मृत्यु भी प्रसव के दौरान ही हुई थी और नेहरू की मां का देहांत भी प्रसव के दौरान ही हुआ था। नेहरू अपने तीन बहन भाईयों में से सबसे बड़े थे। नेहरू की बड़ी बहन देश की पहली संयुक्त राष्ट्र महासभा का पहली अध्यक्ष बनी और छोटी बहन लेखिका थी। उन्होंने अपने भाई पर कई किताबे लिखी।
पंडित जवाहर नेहरी सन 1912 में भारत लौटे और यहां उन्होंने वकालत पढ़ी। 1916 में उन्होंने कमला नेहरू से की थी। इसके बाद 1919 में नेहरू गांधी के संपर्क में आए। उनके संपर्क में आने के बाद नेहरू ने गांधी द्वारा चलाए गए रॉलेट अधिनियम के खिलाफ चलाए गए अभियान में अपना सहयोग दिया। वहीं नेहरू गांधी के सविनय सवाज्ञय आंदोलन के लिए काफी मशहूर हुए। जवाहर लाल नेहरू ने 1920-1922 में गांधी के असहयोग आंदोलन में भी हिस्सा लिया। जिसके दौरान उनको गिरफ्तार भी किया गया। 1924 में नेहरू को इलाहबाद का निगर निगम चुना गया। जिस पद पर उन्होंने शहर के मुख्य कार्यकारी के तौर पर दो साल देश की सेवा करते रहे। उसके बाद नेहरू ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया।
वहीं जब ब्रिटेश सरकार ने भारत अधिनियम 1935 को लागू किया तो उसके बाद कांग्रेस पार्टी ने चुनाव लड़ने का फैसला किया। नेहरू चुनाव से दूर रहे लेकिन उसके बाद भी उन्होंने राष्ट्रव्यापी अभियान चलाया। कांग्रेस ने हर प्रांत में अपनी सरकार गठन किया और केंद्रीय असेंबली में सबसे ज्यादा सीटें हासिल की। नेहरू कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए 1936 और 1937 में चुने गए थे। उन्हें 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान गिरफ्तार भी किया गया और 1945 में छोड़ दिया गया। 1947 में भारत और पाकिस्तान की आजादी के समय उन्होंने अंग्रेजी सरकार के साथ हुई वार्ताओं में महत्त्वपूर्ण भागीदारी की।
ज्वाहर लाल नेहरू का राजनीतिक सफर
आजादी के बाद जब देश में प्रधानमंत्री को लेकर कांग्रेस में चुनाव किया गया तो सरादार पटेल ने सबसे ज्यादा वोट हासिल किए या उनके बाद सबसे ज्यादा वोट आचार्य कृपलानी को मिले थे । लेकिन गांधी जी के कहने पर इन दोनों ने अपना नाम वापस ले लिया और पंडित जवाहरलाल नेहरू को प्रधानमंत्री बनाया गया। जवाहरलाल नेहरू 1947 में देश के पहले प्रधानमंत्री बने। उस वक्त अंग्रेजों ने 500 रियासतों को आजाद किया था लेकिन भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी कि इन 500 रियासतों को एक झंडे के निचे कैसे लाएं। जिसके लिए नेहरू ने योजना आयोग का गठन किया जिसमें विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विकास को प्रोत्साहित किया और तीन लगातार पंचवर्षीय योजनाओं का शुभारंभ किया। उनकी नीतियों के कारण देश में कृषि और उद्योग का एक नया युग शुरु हुआ। नेहरू ने भारत की विदेश नीति के विकास में एक प्रमुख भूमिका निभाई।
वहीं जवाहर लाल नेहरू ने जोसिप बरोज़ टिटो और अब्दुल गमाल नासिर के साथ मिलकर एशिया और अफ्रीका में उपनिवेशवाद को खात्म करने के लिए एक गुट निरपेक्ष आंदोलन शुरू किया। जो कोरियाई युद्ध का अंत करने, स्वेज नहर विवाद सुलझाने और कांगो समझौते को मूर्तरूप देने जैसे अन्य अंतरराष्ट्रीय समस्याओं के समाधान में मध्यस्थ की भूमिका में रहा। पश्चिम बर्लिन, ऑस्ट्रिया और लाओस के जैसे कई अन्य विस्फोटक मुद्दों के समाधान में पर्दे के पीछे रह कर भी उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा। उन्हें वर्ष 1955 में नेहरू को भारत रत्न से सम्मनित किया गया। लेकिन नेहरू पाकिस्तान और चीन के साथ भारत के संबंधों में सुधार नहीं कर पाए। पाकिस्तान के साथ एक समझौते तक पहुँचने में कश्मीर मुद्दा और चीन के साथ मित्रता में सीमा विवाद रास्ते के पत्थर साबित हुए। नेहरू ने चीन की तरफ मित्रता का हाथ भी बढाया, लेकिन 1962 में चीन ने धोखे से आक्रमण कर दिया। नेहरू के लिए यह एक बड़ा झटका था और शायद उनकी मौत भी इसी कारण हुई। 27 मई 1964 को जवाहरलाल नेहरू को दिल का दौरा पड़ा जिसमें उनकी मृत्यु हो गई।