नई दिल्ली। 7 सालों से सुनवाई का इंतजार कर ही रामलला की फाइलों की धूल तो हटी लेकिन कानून और तकनीकि अड़चनों के चलते आज से अनियमित शुरू होने वाली सुनवाई को अब 3 महीने का इंतजार और करना होगा। इस मामलें में साल 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने एक बड़ा फैसला देते हुए इस विवाद में तीन पक्षकारों को माना था। इसके साथ सम्पूर्ण हिस्सा को तीन भागों में विराजमान रामलला और निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड के देने का फैसला सुनाया था। जिसके बाद हाईकोर्ट के फैसले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में ये मामला आ पहुंचा। बीते 7 सालों से ये मामला सुनवाई की राह देख रहा था।
इस मामले में शीघ्र सुनवाई को लेकर पक्षकारों ने सुप्रीम कोर्ट से कई बार अपील की थी। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को नियमित सुनवाई के लिए 11 अगस्त की तारीख को तय किया था। इस तारीख के पहले 8 अगस्त को इस मामले में नया मोड़ लाते हुए शिया वक्फ बोर्ड ने एक हलफनामा कोर्ट में दाखिल किया । जिसमें विवादित परिसर पर सुन्नी वक्फ बोर्ड के दावे को गलत मानते हुए इस पूरे परिसर पर अपना मालिकाना हद बताया और कहा कि मस्जिद के पहले वहां मंदिर था ये बात सच है इसलिए ये जगह हिन्दुओं को राम का मंदिर बनाने के लिए दे देने में कोई आपत्ति नहीं है।
हांलाकि आज सुनवाई में इस याचिका पर भी विचार होना था लेकिन कोर्ट ने फिलहाल इसे लम्बित ही रखा है। मुख्य प्रकरण में मौजूद एतिहासिक साक्ष्यों के अनुवाद का काम अभी पूरा नहीं हुआ है ऐसे में कोर्ट ने इस काम को पूरा करने के लिए 3 माह का समय देते हुए अगली तारीख 5 दिसम्बर तय कर दी है। अब इस नई तकनीकि अड़चन ने एक बार फिर इस विवाद को कुछ समय की मोहलत दिला दी है।
उधर इस प्रकरण में शिया वक्फ बोर्ड के आने के बाद रामनगरी में हलचलें बढ़ गई हैं। इस मामले से जुड़े दो अहम मुस्लिम पक्षकारों ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से इस प्रकरण में हस्तक्षेप करने का आग्रह करते हुए दोनों पक्षकारों के बीच सुलह समझौते के लिए मध्यस्थता करने की गुहार लगाई है। मुस्लिम पक्षकार हाजी महबूब और इकबाल अंसारी ने कहा है कि हम लोग इस पूरे प्रकरण पर एक साथ बैठकर बातचीत के जरिए हल करना चाह रहे हैं। अगर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मध्यस्थता करेंगे तो ये प्रकरण हल हो जायेगा।
माना जा रहा है कि इस दोनों मुस्लिम पक्षकारों और हिन्दू पक्षकारों के बीच किसी बात पर ये मुद्दा तय हो गया है। जिसको लेकर अब दोनों पक्ष किसी बड़े चेहरे का इंतजार कर इस मसौदे का खुलासा करना चाह रहे हैं। जिससे इस मुद्दे को कोई बड़ा राजनीतिक रंग ना दिया जा सके फिलहाल पीएम मोदी की मध्यस्थता की बात कर हाजी और इकबाल ने अपनी मंशा कुछ हद तक साफ कर दी है।
अजस्र पीयूष