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यूपी के इस जिले में कल मनाया जायेगा रक्षाबंधन का त्योहार, 11वीं सदी से चली आ रही है परंपरा

यूपी के इस जिले में कल मनाया जायेगा रक्षाबंधन का त्योहार, 11वीं सदी से चली आ रही है परंपरा

महोबाः श्रावण शुक्ल की पूर्णिमा के मौके पर देश में रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाता है, लेकिन उत्तर प्रदेश के महोबा में ये त्योहार पूर्णिम के दिन नहीं बल्कि उसके अगले दिन यानी परमा के दिन मनाया जाता है। इस दिन बहनें अपने भाइयों की कलाइयों पर राखी बांधती है।

ये है इतिहास

दरअसल, ये बात साल 1182 की है, जब बुंदेलखंड के उरई में प्रतिहार वंश के राजा माहिल के कहने पर राजा परमाल ने अपने वीर सेनापति आल्हा और ऊदल को राज्य से निष्कासित कर दिया था। जब इस बात की जानकारी माहिल को हुई तो उसने पृथ्वीराज को खबर भेजकर सेना के साथ महोबा बुला लिया। पृथ्वीराज की सेना ने महोबा को चारों ओर से घेर लिया। खुद चौहान सालट के जंगल में रुका और राजा परमाल को या तो उसकी शर्तें मानने या फिर युद्ध के लिए चुनौती दे दी।

क्या थी शर्तें?

पृथ्वीराज की शर्तों के मुताबिक राजा परमाल को अपनी बेटी चंदावल को उसे सौंपना था, साथ ही पारस पथरी, नौलखा हार, कालिंजर व ग्वालियर का किला, खजुराहो की बैठक दहेज के रुप में देनी थी। चंद्रावल से पृथ्वीराज अपने बेटे ताहर का विवाह करवाना चाहता था। उरई के राजा माहिल ने राजा परमाल को चौहान की शर्तें मानने का सुझाव दिया। रानी मल्हना, राजकुमार ब्रह्ना, रंजीत व अन्य दरबारी इन शर्तों को सुनकर भड़क उठे थे।

रानी ने आल्हा-ऊदल को वापस बुलाया

राज्य में संकट देख महोबा की रानी ने जगनिक को आल्हा, ऊदल को मनाकर किसी तरह महोबा लाने के लिए कहा। मां देवल के धिक्कारने पर आल्हा, ऊदल साधु का वेश धारण करके महोबा पहुंचे। वहीं, दूसरी ओर उरई के राजा माहिल का बेटा अभई अपने फुफेरी बहन चंद्रावल के डोले को दिल्ली जाने की बात से भड़का हुआ था। उसने पृथ्वीराज की सेना को युद्ध के लिए ललकार दिया। इस उद्ध में अभई व रंजीत मारे गए।

कीरत सागर तट पर हुआ भयानक युद्ध

साधुओं के वेश में आल्हा-ऊदल, लाखन, ढेबा, ताला सैयद युद्ध मैदान में पहुंचे। वहां दोनों के बीच भयानक युद्ध हुआ। इस युद्ध को भुजारियों के युद्ध के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि इस युद्ध में पृथ्वीराज की सेना मैदान छोड़कर भागने लगी। रक्षाबंधन के अगले दिन कजलियों को यानी अंकुरित गेहूं विरर्जन कीरतसागर तट पर किया गया। अंकुरित हेहूं भाईयों को देकर बहनों ने अपनी रक्षा का वचन मांगा।

तब से लेकर आज तक ये रक्षाबंधन की परंपरा महोबा में चली आ रही है। यहां की बहने अपने भाईयों की कलाई में रक्षाबंधन के दूसरे दिन राखी बांधती है। बुंदेलखंड में ये त्योहार आज भी विजयोत्सव के रुप में मनाया जाता है।

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