आज कुमाऊं क्षेत्र में घीं संक्रांति के नाम से एक त्यौहार मनाया जाता है। इस त्यौहार की विशेषता है कि इस दिन उड़द को पानी में भीगा लिया जाता है और सायंकाल उड़द के साथ हल्दी हींग मिर्च मसाला मिलाकर उसको सिलबट्टे में बारीक-बारीक पीस लिया जाता है। लेकिन आजकल लोग मिक्सी का प्रयोग करने लगे हैं। उड़द से बने इस मसाले को जिस प्रकार आलू का पराठा बनाते हैं उसी प्रकार आटे की लोई में भरकर बेला जाता है और चूल्हे पर रोटी सेंकी जाती है।
ढेर सारा घी के साथ रोटी खाने का प्रचलन
पहले पहल जब गैस का चलन नहीं था तो लकड़ियों में ही यह भरवीं रोटी सेंकी जाती थी इससे इसका स्वाद काफी सुंदर होता था। आजकल अब गैस में रोटियां सेकी जाने से उनके स्वाद में भी कमी आती है। खैर इस तरह जब रोटी तैयार हो जाए तो खूब घी के साथ इस रोटी को खाने का प्रचलन है। बेहद स्वादिष्ट होती है उड़द की रोटी घी के साथ डूबा-डूबा के खाने पर बस इतना ध्यान रखा जाए कि रोटी ठीक से पकी हो अगर अंदर से उड़द कच्चा रहेगा तो पेट में अकड़, कब्ज होने के भी शिकायत हो सकती है।
मान्यता: घी न खाने पर गनेल की योनि में जाना तय
कुमाऊं में लोकप्रिय कहावत है कि आज के दिन जो व्यक्ति घीं नहीं खाता वाह गनेल की योनि में जाता है। गनेल का पर्याय है बहुत ही मध्यम गति से खिसकने वाला खासतौर से बरसात में पैदा होने वाला घोंगा। शहरों में हालांकि इस त्योहार को मनाने का रिवाज काफी कम हो गया है। अलबत्ता कुमाऊं के ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी इस त्यौहार को हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।
एक दूसरे को ‘ओग’ देने की प्रथा
आज के त्यौहार के दिन रिश्ते नाते के लोग आपस में एक दूसरे को ‘ओग’ देने भी जाते थे। उनके स्वयं के खेत क्यारे-बाड़े मैं उगी हुई तरकारी जिनमें अरबी के पत्ते लौकी मूली तुरई कद्दू मक्का खास तौर पर दी जाती थी। मक्का छोड़ अन्य सब्जियों को मिलाकर कापा तैयार किया जाता था। यह सब्जी लोहे की कढ़ाई में तैयार करने का प्रचलन है। इस सब्जी के साथ चावल प्रयोग में लाए जाते हैं जिसे ‘कापा भात’ के नाम से जाना-पहचाना जाता है। प्रायः इस तरह की सब्जी कापा सुबह अथवा दिन के समय प्रयोग में लाई जाती है।