लखनऊः पतित पावनी गंगा नदी को देव नदी भी कहा जाता है, क्योंकि शास्त्रों के अनुसार गंगा नदी स्वर्ग से धरती पर आई हैं। मान्यता है कि गंगा श्री हरि विष्णु के चरणों से निकली है और भगवान शिव की जटाओं में आकर बसी।
श्री हरि और भगवान शिव से घनिष्ठ संबंध होने पर गंगा नदी को विष्णुपदी भी कहा जाता है। मान्यता है कि गंगा नदी में स्नान करने से मनुष्य के सभी पापों का नाश हो जाता है।
पाप धुलने की कथा
एक दिन देवी गंगा श्री हरि से मिलने बैकुण्ठ धाम गई और उन्हें जाकर बोली, “प्रभु! मेरे जल में स्नान करने से सभी के पाप नष्ट हो जाते हैं लेकिन मैं इतने पापों का बोझ कैसे उठाऊंगी, मेरे में जो पाप समाएंगे उन्हें कैसे समाप्त करूंगी?” इस पर श्री हरि बोले, ” गंगा! जब साधु, संत, वैष्णव आ कर आप में स्नान करेंगे तो आप के सभी पाप घुल जाएंगे।
गंगा नदी इतनी पवित्र है कि प्रत्येक हिंदू की अंतिम इच्छा होती है उसकी अस्थियों का विसर्जन गंगा में ही किया जाए, लेकिन सवाल ये पैदा होता है कि ये अस्थियां जाती कहां हैं?
वैज्ञानिक भी नहीं खोज पाए अस्थियों का रहस्य
इसका उत्तर तो वैज्ञानिक भी नहीं दे पाए क्योंकि असंख्य मात्रा में अस्थियों का विसर्जन करने के बाद भी गंगा जल पवित्र एवं पावन है। गंगा सागर तक खोज करने के बाद भी इस प्रश्न का उत्तर नहीं पाया जा सका।
श्रीहरि के चरणों में जाती हैं अस्थियां
सनातन धर्म की मान्यता के अनुसार मृत्यु के बाद आत्मा की शांति के लिए मृत व्यक्ति की अस्थि को गंगा में विसर्जन करना उत्तम माना गया है। यह अस्थियां सीधे श्री हरि के चरणों में बैकुण्ठ जाती हैं।
विज्ञान का तर्क
वैज्ञानिक दृष्टि से गंगा जल में पारा अर्थात (मर्करी) विद्यमान होता है। जिससे हड्डियों में कैल्सियम और फोस्फोरस पानी में घुल जाता है। जो जलजन्तुओं के लिए एक पौष्टिक आहार है। हड्डियों में गंधक (सल्फर) विद्यमान होता है जो पारे के साथ मिलकर पारद का निर्माण होता है। इसके साथ-साथ यह दोनों मिलकर मरकरी सल्फाइड साल्ट का निर्माण करते हैं। हड्डियों में बचा शेष कैल्शियम, पानी को स्वच्छ रखने का काम करता है। धार्मिक दृष्टि से पारद शिव का प्रतीक है और गंधक शक्ति का प्रतीक है, इसलिए सभी जीव अंततः शिव और शक्ति में ही विलीन हो जाते हैं।