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क्यो करते हैं लोग चार धाम यात्रा ,कब से हुई शुरुआत-जाने

111 क्यो करते हैं लोग चार धाम यात्रा ,कब से हुई शुरुआत-जाने

नई दिल्ली। उत्तराखंड के खूबसूरत पहाड़ों पर चार धाम यात्रा की शुरूआत हो चुकी है औऱ हर बार की तरह इस बार भी भक्त काफी दूर दूर से चार धाम के दर्शन करने आ रहें हैं। हर साल यहां गर्मियों के महीनों में चारधाम यात्रा का आयोजन होता है जिसके लिए यहां कुछ विशेष रुप से भी प्रबंधन किए जाते हैं। इस बार चार धाम यात्रा कुछ खास रहीं क्योकि इस बार यहां कपाट खुलने के दौरान लेजर शो का आयोजन किया गया जिसने चार धाम यात्रा को और भी ज्यादा खूबसूरत बना दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी केदारनाथ धाम के कपाट खुलने के दौरान वहां मौजूद रहे।

लेकिन क्या आपको पता है कि चारधाम यात्रा का महत्व क्या है लोग क्यो चार धाम करने आते है, कब से और किसने चार धाम की शुरूआत की..तमाम प्रश्न जो मैं जानना चाहती हूं अगर आप भी जानना चाहते है तो आज हम आपको इस बारें में बताएंगे कि चार धामों का महत्व, किसने इन्हें बनाया और कब से शुरू हुई सभी प्रश्नों के जवाब हम आपको देंगे।

111 क्यो करते हैं लोग चार धाम यात्रा ,कब से हुई शुरुआत-जाने

चार धाम यात्रा का महत्व

चार धाम यात्रा के लिए मुख्य रुप से माना जाता है कि जो भी व्यक्ति चार धाम की यात्रा करता है तो उसके सारें पाप यहां धुल जाते हैं। और आत्मा को जीवन-मृत्यु के बंधन से मुक्ति मिल जाती है क्योकि चार धाम में बद्रीनाथ, केदारनाथ,यमुनोत्री,गंगोत्री काफी पवित्र स्थल माने गए हैं। जहां जाने भर से भी मनुष्य के सभी पाप धुल जाते हैं।

बद्रीनाथ, केदारनाथ,यमुनोत्री,गंगोत्री इन चारों स्थलों को हिंदु धर्म में काफी पवित्र माना जाता है। भगवान बद्री विशाल (विष्णु) का पवित्र स्थल बद्रीनाथ धाम चमोली जिले में स्थित है। भोले बाबा का पवित्र धाम केदारनाथ उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है। जीवनदायिनी गंगा नदी का उद्गम स्थल गंगोत्री और यमुना नदी का उद्गम स्थल यमुनोत्री दोनों उत्तरकाशी जिले में हैं।

कब शुरू हुई

आज लाखों की संख्या में लोग चारधाम यात्रा के लिए पहुंचते हैं। लेकिन जेहन में सवाल उठता है कि आखिर यह चारधाम यात्रा पहली बार कब शुरू हुई। कहा जाता है कि 8वीं-9वीं सदी में आदिगुरु शंकराचार्य ने बद्रीनाथ की खोज की थी। उन्होंने ही धार्मिक महत्व के इस स्थान को दोबारा बनाया था। बताया जाता है कि भगवान बद्रीनाथ की मूर्ति यहां तप्त कुंड के पास एक गुफा में थी और 16वीं सदी में गढ़वाल के एक राजा ने इसे मौजूदा मंदिर में रखा था। जबकि केदारनाथ भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। स्थानीय लोग चारों धामों में श्रद्धा पूर्वक जाते थे, लेकिन 1950 के दशक में यहां धार्मिक पर्यटन के लिहाज से आवाजाही बढ़ी। 1962 के चीन युद्ध के चलते क्षेत्र में परिवहन की व्यवस्था में सुधार हुआ तो चारधाम यात्रा पर आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या भी बढ़ने लगी।

किसने की चारों धामों की स्थापना

स्कंद पुराण के अनुसार गढ़वाल को केदारखंड कहा गया है। केदारनाथ का वर्णन महाभारत में भी है। महाभारत युद्ध के बाद पांडवों के यहां पूजा करने की बातें सामने आती हैं। माना जाता है कि 8वीं-9वीं सदी में आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा मौजूदा मंदिर को बनवाया था। बद्रीनाथ मंदिर के बारे में भी स्कंद पुराण और विष्णु पुराण में वर्णन मिलता है। बद्रीनाथ मंदिर के वैदिक काल में भी मौजूद होने के बारे में पुराणों में वर्णन है। कुछ मान्यताओं के अनुसार 8वीं सदी तक यहां बौद्ध मंदिर होने की बात भी सामने आती है, जिसे बाद में आदिगुरु शंकराचार्य ने हिंदू मंदिर में दिया।

भगीरथ की गंगा लाने में भूमिका

गंगा को धरती पर लाने का श्रेय पुराणों के अनुसार राजा भगीरथ को जाता है। गोरखा लोगों ने 1790 से 1815 तक कुमाऊं-गढ़वाल पर राज किया था, इसी दौरान गंगोत्री मंदिर गोरखा जनरल अमर सिंह थापा ने बनाया था। उधर यमुनोत्री के असली मंदिर को जयपुर की महारानी गुलेरिया ने 19वीं सदी में बनवाया था। हालांकि कुछ दस्तावेज इस ओर भी इशारा करते हैं कि पुराने मंदिर को टिहरी के महाराज प्रताप शाह ने बनवाया था। मौसम की मार के कारण पुराने मंदिर के टूटने पर मौजूदा मंदिर का निर्माण किया गया है।

सैलानियों का मेला

हर साल लाखों सैलानी चार धाम का यात्रा करने पहुंचते है। यूं तो उत्तराखंड पर्यटन के मामले में बाकी राज्यो से काफी आगे है क्योकि यहां चार धाम के अलावा भी कई सारी जगह हैं जहां लोग दूर दूर से घूमने आते हैं। जहां विश्व की अलग अलग जगहों से भी विदेशी घूमने आते हैं।

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