नंबर का खेल निराला है, कंप्यूटर से लेकर इंसान तक इसका भरपूर इस्तेमाल करते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं, जानवरों में भी नंबर की पहचान करने की शक्ति होती है। जी हां सुनने में थोड़ा अविश्वनीय है, लेकिन है बिल्कुल सच. क्योंकि एमपी के सागर जिला में बने एक गौशाला में नंबर ही बछड़ों और गाय के बीच पहचान कराते हैं।
गौशाला में पलने वाले बछड़े और गाय को नंबर से ही पुकारा जाता है, जैसे ही गाय और बछड़ा नंबर सुनते हैं, दोनों गौपालक के पास पहुंच जाते हैं। इन्ही नंबरों के हिसाब से ही पालक 300 गायों का संरक्षण कर रहे हैं।
ये गौशाला सागर जिला के रतौना गांव में स्थित है। गौशाला का नाम गोकुल रखा गया है। गोकुल धाम में काम करने वाले कर्मचारी रोजाना सैकड़ों गायों का रखरखाव और उनकी सेवा के साथ दूध निकालने का काम करते हैं।
कर्मचारियों की मानें तो गोकुल में सैकड़ों की संख्या में गाय हैं। सबसे बड़ी परेशानी उनके बछड़ों को लेकर आती है, क्योंकि सभी का रंग रूप करीब करीब एक जैसा होता है। ऐसे में नजरें पहचान नहीं पाती है.. एक साथ सभी बछड़ों को खोल देने से बछ़ड़े अपनी मां को नहीं ढूंढ पाते थे। इसलिए सभी गायों को नंबर दिया गया है। साथ ही बछड़ों को उनकी मां के नंबर से पुकारा और जाना जाता है। इन अंकों से बछड़ों को अवगत कराने के लिए अलग से एक कर्मचारी भी रखा गया है, जो उन्हें अंकों से पहचान कराता है।