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हिन्दी नव वर्ष का करें स्वागत, युवाओं को भी बताएं इसका इतिहास और आप भी जानें

hindu navvarsh हिन्दी नव वर्ष का करें स्वागत, युवाओं को भी बताएं इसका इतिहास और आप भी जानें

डा0 सुबोध गर्ग (विद्या वाचस्पति)

यह भारत का सर्वमान्य संवत् है जो शकों पर महाराज विक्रमादित्य की अप्रतिम विजय का स्मरण दिलाता है। ईरान का सीस्तान (शकस्थान) प्रदेश के निवासी शकों ने 46 ई. पूर्व में उज्जयिनी पर आक्रमण किया। वहाॅ के राजा दर्पण गन्धर्वसेन ने शकों से शक्तिभर युद्ध किया, पर अन्त में घायल हो जाने के कारण पराजित होकर विन्ध्य पर्वत की तलहटी में आश्रय लिया। उस समय उनके पुत्रा विक्रम केवल दस वर्ष के थे शकों ने उज्जयिनी पर अधिकार कर वहंँा जो लोमहर्षक अत्याचार किये उनकी तुलना कुछ सीमा तक परवर्ती मुस्लिम शासकों के अत्याचारो से की जा सकती है। उनके कारण भारतीय संस्कृति के समूल नाश का महान संकट उत्पन्न हो गया। सारी प्रजा त्राहि-त्राहि कर उठी। किसी का धन, बहू बेटी अथवा जीवन सुरक्षित न था।

इन अत्याचारों की गूंज दूर-दूर तक सुनाई पड़ने लगी, पर किसी का साहस शकों का सामना करने का साहस किसी का न हुआ। ऐसे विषम समय में विक्रम ने अपनी उस असहायावस्था में भी नवयुवकों की सेना गठित कर केवल सत्राह वर्ष की आयु में उज्जयिनी पर आक्रमण कर दिया और 53 ई. पूर्व में उज्जयिनी के निकट लडे गये प्रचण्ड समर में अपने दुर्घर्ष पराक्रम से शकों का समूलोच्छेद कर भारतीय संस्कृति पर आये भीषण संकट को सदा के लिए समाप्त कर धर्मराज्य की स्थापना द्वारा भारतीय संस्कृति का सर्वागीण विकास किया।

प्रजा खुश थी और विक्रमादित्य का गुणगान कर रही थी

इस विजय से सर्वत्रा आनन्द की लहर दौड गयी एवं कृतज्ञ प्रज्ञा ने महाराज विक्रमादित्य को ‘शकारि’ के विरूद्व से मण्डित किया विक्रमादित्य ने थोडे ही समय में शकों का वंश नाश कर महाराज श्री विक्रमादित्य सार्वभौम सम्राट-सदृश सुशोभित हुए। आज से 2044 वर्ष पूर्व इसी दिन सम्राट विक्रमादित्य का विजय पर्व पूर्ण हुआ था। उज्जयिनी में शकों के पैशाचिक कृत्यों, लोमहर्षक हिंसा से भारतीय शासन मिट गया था। सत्राह वर्षीय वीर विक्रमादित्य ने अभूतपूर्व पौरूष और पराक्रम से शक जाति का समूलोच्छेद किया और उज्जियिनी राज्य में भगवाध्वज लहराया गया। हिन्दु जीवन दर्शन की पुनः स्थापना हुई और विक्रमादित्य का गौरवशाली राज्याभिषेक किया गया। विक्रमादित्य का राष्ट्र-रक्षण, वहंा शास्त्राीय दृष्टि से सौर और चन्द्रगति को मिलाकर प्रकृति और ऋतुओं का विचार करके, जो योजना की गयी वह विश्व में अप्रतिम है। इस संवत के महीनो के नाम विदेशी सवंतो की भांति देवता, मनुष्य या संख्यावाचक, कृत्रिम नाम नही है, बल्कि आकाशीय नक्षत्रों के उदयारत से सम्बन्धित है। यही बात तिथि तथा अंश (दिनांक) के सम्बन्ध में भी है क्योंकि वे भी सूर्यचन्द्र की गति पर आधृत है। इस प्रकार यह संवत् अंग उपागों सहित पूर्णतः वैज्ञानिक सत्य पर स्थित है।

ब्रहमा जी ने चैत्रा मास के शुक्ल पक्ष के प्रथम दिन सूर्योदय होने पर जगत् की सृष्टि की। इसी कारण चैत्रा मास के शुक्ल पक्ष के प्रथम दिन से नवीन संवत्सर का आरम्भ माना जाता है। पर इस पर आजकल के बुद्धिजीवी विश्वास नहीं, परन्तु माना गया है कि ब्रहमा जी ने इसी दिन सृष्टि रचना का प्रारम्भ किया और देवलोक से भी सुन्दर वन-उपवन, सरिता और पर्वतों से युक्त यह धरा युहुंक उठी। यह दिन चैत्रा शुक्ला प्रतिपदा ही थी। इस दिन से शक्ति रूपा, अन्नपूर्णा माॅ दुर्गा की उपासना नवदुर्गा नाम से प्रारम्भ होती है।

चैत्रा शुक्ला प्रतिपदा को प्रारम्भ होने वाला संवत्सर हमारे राष्ट्रीय गौरव और सांस्कृतिक महिमा का जागृत रूप है जिसमें सृष्टि का प्रारम्भिक दिवस, यही दिन है जब लोक को शोक और सन्ताप देने वाले रावण का विनाश करके मर्यादा पुरूषोत्तम राम के दैहिक-दैविक भौतिक तापों से मुक्त आदर्श रामराज्य की स्थापना की थी। गीता का उपदेश देकरमहाभारत युद्व खत्म होने के बाद युगाब्द संवत्सर का प्रथम दिन 5114 वर्ष पूर्व पाॅण्डव ज्येष्ठ पुत्रा युधिष्ठिर का राज्यभिषेक भी इसी दिन हुआ। शालि वाहन संवत्सर का प्रारम्भ दिवस विक्रमादित्य की भांति शील वाहन में हूणों को परास्त कर दक्षिण भारत में श्रेष्ठतम राज्य स्थापित करने के लिए भी इसी महान दिवस को चुना था।

विदेशी चकाचौंध और भारतीय सभ्यता

विदेशी संस्कृति की चकाचैंध में अपने पवित्रा पवित्रा वेदों के संदेश और विज्ञान की विस्मरण करने वाले आर्यो को उनके गौरवशाली अध्यात्म और वेदों के ज्ञान का परिचय कराने वाले तथा ‘कृणवन्तो विश्वमार्यम्’ का उद्घोष करके वेद धर्म की ज्योति जगाने के लिए महर्षि दयानन्द ने आर्य समाज की स्थापना इसी दिन की थी। इसी दिन गुरू नानक की शिक्षाओं को राष्ट्र रक्षा के अनुरूप बनाकर अग्नि परीक्षा में भी खरे उतरने वाले सिक्ख परम्परा के दूसरे गुरू अंगदेव का जन्म हुआ था जिन्होने समाज में दलित और पिछड़े लोगों का हृदय से लगाकर समता का सन्देश दिया था। सिन्ध प्रान्त के प्रसिद्व समाज रक्षक वरूणावतार संत झूलेलाल जी इसी दिन प्रगट हुए जिन्होने सामाजिक उत्थान में बहुमूल्य योगदान दिया।

इसी दिन हिन्दू हृदय सम्राट मर्यादा इस राष्ट्र के दृष्टा डा. केशव बलिराम हेडगवार का जन्म हुआ था जिन्होने विजयदशमी सन् 1925 को संघ शाखा का प्रारम्भ करके विस्मृत हिन्दू समाज को अनुशासित और संगठित करके विस्मृत हिन्दू समाज को अनुशासित और संगठित करके अपने सांस्कृतिक अधिष्ठापन पर भारत माता की उपासना करते हुए स्वराष्ट्र को परम वैभवशाली बनाने का मन्त्रा और तन्त्रा दिया। इस दिन का प्राकृतिक महत्व भी है वसंत ऋतु का आरम्भ वर्ष प्रतिपदा से ही होता है जो उल्लास उमंग, खुशी तथा चारों तरफ पुष्पों की सुगन्ध होती है तथा नक्षत्रा अच्छी स्थिति में होते हैं। अतः किसी भी कार्य करने के लिए श्रेष्ठ दिवस है।

यह नवसंवत्सर हमें यह प्रेरणा देता है कि महाराज विक्रमादित्य के सदृश हमें भी अपनी संस्कृति पर आये संकट का उच्छेद करने के लिए अपना सर्वस्व अर्पित करने का प्रस्तुत हो जाना चाहिये। आज हमारी संस्कृति पर उस काल से भी अधिक भयंकर संकट उपस्थित है। विदेशी भाषा के माध्यम से आयी पाश्चात्य संस्कृति ने हमारी जाति को खोखला बनाकर भारतीय संस्कृति को मूलोच्छेद का महान् संकट उपस्थित कर दिया है। इस नव संवत्सर के आरम्भ में महाराज विक्रमादित्य की सेना के युवाओं के सदृश हमारे नवयुवक भी यदि स्वकीय संस्कृति की रक्षा और विदेशी संस्कृति के मूलोच्छेद के लिए वद्धपरिकर हो जाएॅ तो वे अवश्य ही उस महान् विजय की पुनरावृत्ति कर सदा के लिए दिग्दिगन्तव्यापी कीर्ति के भागी बन सकते हैं।

लेखक- डा0 सुबोध गर्ग
अखिल भारतीय साहित्यालोक के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं
वरिष्ठ साहित्यकार पत्राकार एवं दर्जनो प्रकाशित पुस्तकों
के लेखक (9456010048)

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