चाय वाले से पीएम तक का सफर
जिस देश में जाते हैं वे, मिलता है उन्हें अपूर्व सम्मान
हर राष्ट्राध्यक्ष से जैसे रही हो, पहले से आत्मिक पहचान
आत्मविश्वास से भरी आंखों से झलकता है उभरता हिंदुस्तान
ऐसे वीर पुरूष हैं वो दामोदास की संतान
नरेंद्र मोदी का जन्म 17 सितंबर 1950 को गुजरात में हुआ था। वे कुल 6 भाई-बहन हैं, जिनमें से मोदी तीसरे नंबर के हैं। भारत के 14वें प्रधानमंत्री का बचपन संघर्षपूर्ण रहा। एक चाय बेचने वाले कभी देश का पीएम भी बनेगा , किसी ने सोचा नहीं था लेकिन पीएम मोदी ने ना सिर्फ इसे सच करके दिखाया बल्कि करोड़ों लोगों को प्रेरणा भी दी कि अगर इंसान सच्चे मन से कुछ चाहे तो एक चाय वाले का बेटा भी बहुत कुछ कर सकता है।
संघ प्रेमी
बचपन से ही बड़े बड़े सपनों को अपनी आंखों में सजाने वाले पीएम मोदी ने राजनीति शास्त्र में एमए किया जब मोदी छोटा हुआ करते थे तभी से उनका संघ की तरफ एक खासा झुकाव था और गुजरात में आरएसएस का मजबूत आधार भी था। साल 1967 में 17 साल की उम्र में वह अहमदाबाद पहुंचे और उसी साल उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सदस्यता ली। इसके बाद 1974 में वे नव निर्माण आंदोलन में शामिल हुए। इस तरह सक्रिय राजनीति में आने से पहले मोदी कई वर्षों तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक रहे
मोदी जब छोटे थे तो वे गुजरात के शार्मिष्ठा झील में अक्सर खेलने जाया करते थे। उन्हें पता नहीं था कि उस झील में मगरमच्छ काफी संख्या में हैं। एक बार एक मगरमच्छ ने खेलते हुए मोदी को पकड़ने की कोशिश की। इस दौरान उन्हें गंभीर चोटें आईं थीं। पर वे उसके चंगुल से बच निकले थे। मोदी के पिता वादनगर रेलवे स्टेशन पर चाय बेचते थे। बचपन में मोदी को जब भी पढ़ाई से समय मिलता था वे अपने पिता की मदद करने दुकान पर पहुंच जाया करते थे।
मोदी का सन्यासी जीवन
नरेंद्र मोदी को हम कई तरह के गेट अप में देखते हैं। दरअसल स्टाइल के मामले में मोदी बचपन से ही थोड़े अलग थे। कभी बाल बढ़ा लेते थे तो कभी सरदार के गेट अप में आ जाते थे। रंगमंच उन्हें खूब लुभाता था। नरेंद्र मोदी स्कूल के दिनों में नाटकों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते थे और अपने रोल पर काफी मेहनत भी करते थे। बचपन में नरेंद्र मोदी को साधु संतों को देखना बहुत अच्छा लगता था। मोदी खुद संन्यासी बनना चाहते थे। संन्यासी बनने के लिए नरेंद्र मोदी स्कूल की पढ़ाई के बाद घर से भाग गए थे और इस दौरान मोदी पश्चिम बंगाल के रामकृष्ण आश्रम सहित कई जगहों पर घूमते रहे और आखिर में हिमालय पहुंच गए और कई महीनों तक साधुओं के साथ घूमते रहे।
2001 में जब गुजरात में भूकंप के आने से 20,000 लोग मारे गए तब राज्य में राजनीतिक सत्ता में भी बदलाव हुआ। दबाव के चलते तत्कालीन मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल को अपना पद छोड़ना पड़ा। पटेल की जगह नरेंद्र मोदी को राज्य की कमान सौंपी गई और इसके बाद मोदी ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा मुस्लिम विरोधी दंगों में करीब 1000 से 2000 लोग मारे गए। मोदी पर इल्जाम लगा कि उन्होंने दंगों को भड़काने का काम किया। आरोप ये भी लगा कि वह चाहते तो दंगे रोक सकते थे लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. साल 2005 मोदी को अमेरिका ने वीजा देने से इनकार कर दिया था।