आज बुद्ध पूर्णिमा है। कहते हैं कि आज के दिन ही भगवान गौतम बुद्ध का जन्म हुआ था। सनातन धर्म में आज की तिथि को बुद्ध पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। बुद्ध पूर्णिमा का पर्व हिंदुओं के साथ-साथ बौद्ध अनुयायियों के लिए भी बहुत खास महत्व रखता है। मान्यता है कि वैशाख पूर्णिमा के दिन ही भगवान विष्णु ने महात्मा बुद्ध के रूप में का 23वां अवतार लिया था। जिसे बौद्ध धर्म के अनुयायी इस दिन को बड़े धूमधाम से मनाते हैं।
563 ईसा पूर्व जन्मे थे बुद्ध
गौतम बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व इक्ष्वाकु वंशीय क्षत्रिय शाक्य कुल के राजा शुद्धोधन के घर में हुआ था। उनकी मां का नाम महामाया था जो कोलीय वंश से थीं। गौतम बुद्ध के जन्म के 7 दिन बाद उनकी मां का निधन हो गया। जिसके बाद उनका पालन महारानी की छोटी सगी बहन महाप्रजापती गौतमी ने किया। और उनका नाम सिद्धार्थ रखा गया। वहीं गौतम गोत्र में जन्म लेने के कारण वो गौतम भी कहलाए। 29 साल की आयु में सिद्धार्थ विवाहोपरांत नवजात शिशु और पत्नी यशोधरा को त्यागकर वन चले गए। सालों की कठोर साधना के बाद बोध गया बिहार में बोधि वृक्ष के नीचे उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई। और वो सिद्धार्थ गौतम से भगवान बुद्ध बन गए।
कैसे बने सिद्धार्थ से भगवान बुद्ध ?
दरअसल उनके भगवान बुद्ध बनने की कहानी काफी दिलचस्प है। बुद्ध के पहले गुरु आलार कलाम थे, जिनसे उन्होंने संन्यास काल में शिक्षा प्राप्त की। 35 वर्ष की आयु में वैशाखी पूर्णिमा के दिन सिद्धार्थ पीपल वृक्ष के नीचे ध्यानस्थ थे। बुद्ध ने बोधगया में निरंजना नदी के तट पर कठोर तपस्या की और सुजाता नामक लड़की के हाथों खीर खाकर उपवास तोड़ा।
दरअसल समीपवर्ती गांव की एक स्त्री सुजाता को पुत्र हुआ। वो बेटे के लिए एक पीपल वृक्ष से मन्नत पूरी करने के लिए सोने के थाल में गाय के दूध की खीर भरकर पहुंची। सिद्धार्थ वहां बैठा ध्यान कर रहे थे। उसे लगा कि वृक्षदेवता ही मानो पूजा लेने के लिए शरीर धरकर बैठे हैं। सुजाता ने बड़े आदर से सिद्धार्थ को खीर भेंट की और कहा- ‘जैसे मेरी मनोकामना पूरी हुई, उसी तरह आपकी भी हो। उसी रात को ध्यान लगाने पर सिद्धार्थ की साधना सफल हुई। उसे सच्चा बोध हुआ। तभी से सिद्धार्थ ‘बुद्ध’ कहलाए। जिस पीपल वृक्ष के नीचे सिद्धार्थ को बोध मिला वो बोधिवृक्ष कहलाया और गया का समीपवर्ती स्थान बोधगया।
पांच मित्रों को बनाया अपना अनुयायी
उसके बाद 80 साल की उम्र तक महात्मा बुद्ध सीधी सरल लोकभाषा पाली में प्रचार करते रहे। उनके सीधे सरल धर्म की लोकप्रियता तेजी से बढ़ने लगी। 4 हफ्ते तक बोधिवृक्ष के नीचे रहकर धर्म के स्वरूप का चिंतन करने के बाद बुद्ध धर्म का उपदेश करने निकल पड़े। आषाढ़ की पूर्णिमा को वो काशी के पास मृगदाव पहुंचे। वहीं पर उन्होंने सबसे पहले धर्मोपदेश दिया और प्रथम पांच मित्रों को अपना अनुयायी बनाया। और फिर उन्हें धर्म प्रचार करने के लिये भेज दिया।
बड़े-बड़े राजा बने उनके शिष्य
भगवान बुद्ध के धर्म प्रचार से भिक्षुओं की संख्या बढ़ने लगी। जिसके बाद बौद्ध संघ की स्थापना की गई। बड़े-बड़े राजा भी उनके शिष्य बने। बाद में लोगों के आग्रह पर बुद्ध ने स्त्रियों को भी संघ में लेने की अनुमति दी। भगवान बुद्ध ने ‘बहुजन हिताय’ लोक कल्याण के लिए अपने धर्म का देश-विदेश में प्रचार करने के लिए भिक्षुओं को इधर-उधर भेजा। अशोक आदि सम्राटों ने भी विदेशों में बौद्ध धर्म के प्रचार में अपनी अहम् भूमिका निभाई। मौर्यकाल तक आते-आते भारत से निकलकर बौद्ध धर्म चीन, जापान, कोरिया, मंगोलिया, थाईलैंड, श्रीलंका आदि में फैल चुका था। इन देशों में आज भी बौद्ध धर्म बहुसंख्यक धर्म है।
बुद्ध पूर्णिमा का महत्व
बुद्ध पूर्णिमा का दिन बहुत ही पवित्र और फलदायी माना जाता है। आज के दिन पवित्र नदी में स्नान करने का महत्व होता है। कहते हैं कि इससे पापों से मुक्ति मिलती है और जीवन में सुख-शांति आती है। आज के दिन भगवान विष्णु की पूरे विधि-विधान के साथ पूजा की जाती है, और दान-पुण्य, धर्म-कर्म के कार्य किये जाते हैं। इस दिन को सत्य विनायक पूर्णिमा भी कहा जाता है। माना जाता है कि इस दिन स्नान, दान और पूजा-पाठ करने से सारे कष्ट दूर होते हैं।