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जानें कैसे हुई कुंभ की शुरुआत और इस साल कहां लगेगा मेला?

kumb mela जानें कैसे हुई कुंभ की शुरुआत और इस साल कहां लगेगा मेला?

कुंभ पर्व हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसमें करोड़ों श्रद्धालु कुंभ पर्व स्थल प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में स्नान करते हैं. इनमें से प्रत्येक स्थान पर प्रति बारहवें वर्ष और प्रयाग में दो कुंभ पर्वों के बीच छह वर्ष के अंतराल में अर्धकुंभ भी होता है. 2013 का कुम्भ प्रयाग में हुआ था. फिर 2019 में प्रयाग में अर्धकुंभ मेले का आयोजन हुआ था.

2013 में जो कुंभ इलाहाबाद में हुआ था वो महाकुंभ भी था जो हर 144 साल बाद होता है. हर 12 पूर्ण कुंभों के बाद महाकुंभ होता है. इसमें लगभग 10 करोड़ तीर्थयात्री आए थे. कुंभ में हिंदू तीर्थयात्री गंगा, यमुना और पौराणिक नदी सरस्वति के संगम पर एकत्रित होते हैं. कुंभ मेले की तिथि, अवधि और जगह (चार जगहों में से) का चयन ज्योतिषीय आधार पर किया जाता है. कुंभ मेले का आयोजन प्रत्येक 12 साल पर होता है. हर छह साल में अर्धकुंभ का आयोजन होता है.

प्रयाग में 12 वर्ष के अंतराल में 2 कुंभ लगते हैं
प्रयाग को छोड़कर बाकी सभी स्थानों पर प्रत्येक 12 वर्ष में कुभ स्नान का आयोजन किया जाता है, प्रयाग में 12 वर्ष के अंतराल में 2 कुंभ आयोजित किये जाते है. जिसमें पहले छह वर्ष वाले कुंभ को अर्धकुंभ तथा बारह वर्ष में आयोजित होने वाले कुंभ को पूर्ण कुंभ के नाम से जाना जाता है.

कैसे हुई कुंभ मेले की शुरुआत?
कुंभ पर्व के आयोजन को लेकर दो-तीन पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं. जिनमें से सर्वाधिक मान्य कथा देव-दानवों द्वारा समुद्र मंथन से प्राप्त अमृत कुंभ से अमृत बूंदें गिरने को लेकर है. इस कथा के अनुसार महर्षि दुर्वासा के शाप के कारण जब इंद्र और अन्य देवता कमजोर हो गए तो दैत्यों ने देवताओं पर आक्रमण कर उन्हें परास्त कर दिया. तब सब देवता मिलकर भगवान विष्णु के पास गए और उन्हें सारा वृतान्त सुनाया. तब भगवान विष्णु ने उन्हे दैत्यों के साथ मिलकर क्षीरसागर का मंथन करके अमृत निकालने की सलाह दी. भगवान विष्णु के ऐसा कहने पर संपूर्ण देवता दैत्यों के साथ संधि करके अमृत निकालने के यत्न में लग गए. अमृत कुंभ के निकलते ही देवताओं के इशारे से इन्द्रपुत्र जयन्त अमृत-कलश को लेकर आकाश में उड़ गया. उसके बाद दैत्यगुरु शुक्राचार्य के आदेशानुसार दैत्यों ने अमृत को वापस लेने के लिए जयंत का पीछा किया और घोर परिश्रम के बाद उन्होंने बीच रास्ते में ही जयंत को पकड़ा. तत्पश्चात अमृत कलश पर अधिकार जमाने के लिए देव-दानवों में बारह दिन तक अविराम युद्ध होता रहा.
इस परस्पर मारकाट के दौरान पृथ्वी के चार स्थानों (प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन, नासिक) पर कलश से अमृत बूंदें गिरी थीं. उस समय चंद्रमा ने घट से प्रस्रवण होने से, सूर्य ने घट फूटने से, गुरु ने दैत्यों के अपहरण से एवं शनि ने देवेन्द्र के भय से घट की रक्षा की. कलह शांत करने के लिए भगवान ने मोहिनी रूप धारण कर यथाधिकार सबको अमृत बांटकर पिला दिया. इस प्रकार देव-दानव युद्ध का अंत किया गया.

अमृत प्राप्ति के लिए देव-दानवों में परस्पर बारह दिन तक निरन्तर युद्ध हुआ था. देवताओं के बारह दिन मनुष्यों के बारह वर्ष के तुल्य होते हैं. इसी की तरह कुम्भ भी बारह होते हैं. उनमें से चार कुंभ पृथ्वी पर होते हैं और शेष आठ कुंभ देवलोक में होते हैं, जिन्हें देवगण ही प्राप्त कर सकते हैं, मनुष्यों की वहां पहुंच नहीं है.

कुंभ मेला 2022 कहां आयोजित होगा?
साल 2020 में प्रयागराज में कुंभ मेला 10 जनवरी, शुक्रवार से आरंभ होकर 9 फरवरी, रविवार को समाप्त हुआ. अगला कुंभ मेला वर्ष 2022 में हरिद्वार में आयोजित किया जायेगा. हरिद्वार में पिछला कुंभ 1998 में हुआ था.

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