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सावन शुरू होने से पहले जानें भगवान शिव के सबसे प्राचीन मंदिर के अनोखे रहस्य..

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भगवान शिव को देवों मे सबसे ज्यादा शक्तिशाली कहा जाता है। अपनी शक्तियों और तपस्या के कारण पूरे देवलोक के साथ पृथ्वीलोक भगवान शिव के आगे सिर झुकाता है। यही कारण है की भगवान शिव के सबसे ज्यादा भक्त आपको देखने को मिल जाएंगे। इस बार सावन 6 जुलाई से शुरू हो रहे हैं और 3 अगस्त तक चलेंगे। सावन के महीने को भगवान शिव का महीना कहा जाता है। मान्यता है कि, सावनों में सच्चे दिल से जो भी भगवान शिव से मांगों वो सब मिलता है। इसलिए आज हम आ पके लिए लेकर आये हैं। भगवान शिव से जुड़े सबसे पुराने मंदिर के रहस्य जिन्हें जानकर आपको अपने आंखों और कानों पर विश्वास नहीं होगा।

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ये पावन मंदिर मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के भोजपुर में स्थित है। कहा जाता है इस मंदिर का निर्माण राजा भोज ने कराया था।
आपको बता दें, भोजपुर की पहाड़ी पर एक अद्भुत और विशाल, परंतु अधूरा शिव मंदिर है। यह भोजपुर शिव मंदिर या भोजेश्वर मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हैं। इस प्राचीन शिव मंदिर का निर्माण परमार वंश के प्रसिद्ध राजा भोज 1010 ई-1055 ई द्वारा किया गया था। मंदिर 115 फीट लंबे, 82 फीट चौड़े तथा 13 फीट ऊंचे चबूतरे पर खड़ा है।

इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता है यहां का विशाल शिवलिंग, अपने-आप में अनूठे और विशाल आकार वाले इस शिवलिंग के कारण भोजेश्वर मंदिर को उत्तर भारत का सोमनाथ भी कहा जाता है। चिकने लाल बलुआ पाषाण के बने इस शिवलिंग को एक ही पत्थर से बनाया गया है और यह विश्व का सबसे बड़ा प्राचीन शिवलिंग माना जाता है।

मंदिर से प्रवेश के लिए पश्चिम दिशा में सीढ़ियां हैं। गर्भगृह के दरवाजों के दोनों ओर नदी देवी गंगा और यमुना की मूर्तियां लगी हुई हैं।
इसका विशाल प्रवेशद्वार का आकार-प्रकार वर्तमान में भारत के किसी भी मंदिर के प्रवेशद्वारों में सर्वाधिक विशाल है। इसके अंदर स्थापित शिवलिंग को देख, प्रवेशद्वार का यह आकार प्रासंगिक लगता है। इस मंदिर की एक अन्य विशेषता इसके 40 फीट ऊंचाई वाले इसके चार स्तम्भ हैं। गर्भगृह की अधूरी बनी छत इन्हीं चार स्तंभों पर टिकी है।

साथ ही भोजेश्वर मंदिर की छत गुम्बदाकार हैं। कुछ विद्धान इसे भारत की प्रथम गुम्बदीय छत वाली इमारत मानते हैं। और यह एक सशक्त प्रमाण है कि भारत में गुम्बद निर्माण का प्रचलन इस्लाम के आगमन के पहले भी था। इस मंदिर का निर्माण भारत में इस्लाम के आगमन के पहले हुआ था अतः इस मंदिर के गर्भगृह के ऊपर बनी अधूरी गुम्बदाकार छत भारत में गुम्बद या शिखर निर्माण के प्रचलन का प्रत्यक्ष प्रमाण है।
भोजेश्वर मंदिर के पीछे के भाग में बना ढलान है, जिसका उपयोग निर्माणाधीन मंदिर के समय विशाल पत्थरों को ढोने के लिए किया गया था। पूरे विश्व में कहीं भी अवयवों को संरचना के ऊपर तक पहुंचाने के लिए ऐसी प्राचीन भव्य निर्माण तकनीक उपलब्ध नहीं है। ये एक प्रमाण के तौर पर है, जिससे ये रहस्य खुल गया कि आखिर कैसे 70 टन भार वाले विशाल पत्थरों का मंदिर क शीर्ष तक पहुचाया गया।भोजेश्वर मंदिर कि तीसरी विशेषता इसका अधूरा निर्माण हैं। इसका निर्माण अधूरा क्यों रखा गया इस बात का इतिहास में कोई पुख्ता प्रमाण तो नहीं है पर ऐसा कहा जाता है कि यह मंदिर एक ही रात में निर्मित होना था परन्तु छत का काम पूरा होने के पहले ही सुबह हो गई, इसलिए काम अधूरा रह गया।

इस प्रसिद्घ स्थल में वर्ष में दो बार वार्षिक मेले का आयोजन किया जाता है जो मकर संक्रांति व महाशिवरात्रि पर्व के समय होता है। इस धार्मिक उत्सव में भाग लेने के लिए दूर दूर से लोग यहां पहुंचते हैं। महाशिवरात्रि पर यहां तीन दिवसीय भोजपुर महोत्सव का भी आयोजन किया जाने लगा है।

भोजपुर शिव मंदिर के बिलकुल सामने पश्चमी दिशा में एक गुफा हैं यह पार्वती गुफा के नाम से जानी जाती हैं। इस गुफा में पुरातात्विक महत्तव कि अनेक मूर्तिया हैं।

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ये मंदिर अपने अंदर कई सारे रहस्य समेटे हुआ है। यही कारण है कि, भगवान शिव के इस सबसे पुराने मंदिर को लोग देखने आते हैं। भगवान शिव के भक्तों के लिए ये मंदिर के प्रमुख जगह है।

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