जबलपुर। ओबीसी आरक्षण बढ़ाकर 27 फीसदी करने के मामले में गुरुवार को सुनवाई नहीं हुई। हाई कोर्ट 28 अप्रैल से इस मामले में हर दिन सुनवाई करेगा। तब तक मेडिकल प्रवेश व पीएससी परीक्षा में 14 फीसदी से अधिक ओबीसी आरक्षण पर लगी रोक बरकरार रहेगी। यह निर्देश गुरुवार को चीफ जस्टिस एके मित्तल व जस्टिस विजय कुमार शुक्ला की युगलपीठ ने दिए, इसके साथ ही उन्होंने याचिकाकर्ता, राज्य सरकार, पीएससी व अन्य पक्षकारों को 28 अप्रैल तक अपना पक्ष पूरी तरह हाई कोर्ट के समक्ष रखने कहा।
बता दें कि मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश में 14 फीसदी से अधिक ओबीसी आरक्षण पर हाई कोर्ट ने 19 मार्च 2019 को रोक लगा दी थी। इसी आदेश को बरकरार रखते हुए कोर्ट ने 28 जनवरी को एमपीपीएससी की करीब 450 भर्तियों में भी ओबीसी आरक्षण बढ़ाने पर अंतरिम रोक लगा दी थी। इस आदेश को वापस लेने की पीएससी की अर्जी पर गुरुवार को कोर्ट ने सुनवाई नहीं की। सरकार की ओर से महाधिवक्ता शशांक शेखर, उपमहाधिवक्ता प्रवीण दुबे, शासकीय अधिवक्ता हिमांशु मिश्रा ने पक्ष रखा। याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता आदित्य संघी, सिद्धार्थ राधेलाल गुप्ता, जान्हवी पंडित, रामेश्वर पी. सिंह ने पैरवी की।
मप्र हाई कोर्ट की ओर से ओबीसी एसोसिएशन की याचिका के जवाब में बताया गया कि फुल कोर्ट मीटिंग के फैसले के मुताबिक हाई कोर्ट की आंतरिक भर्तियों में ओबीसी वर्ग को बढ़े हुए 27 फीसदी आरक्षण का लाभ नहीं दिया जाएगा। आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) को दिए जा रहे 10 फीसदी आरक्षण से एससी, एसटी व ओबीसी को वंचित रखे जाने व मप्र हाई कोर्ट की नियुक्तियों में बढ़ा हुआ ओबीसी आरक्षण न लागू करने के खिलाफ भी याचिकाएं दायर की गई।
राज्य सरकार के 8 मार्च 2019 को जारी संशोधन अध्यादेश जिसमें ओबीसी आरक्षण 14 से बढ़ाकर 27 फीसदी कर दिया गया था उसे जबलपुर की छात्रा आकांक्षा दुबे सहित अन्य की ओर से हाई कोर्ट में चुनौती दी गई है। याचिका में कहा गया कि इस संशोधन के बाद आरक्षण का कुल प्रतिशत 50 से बढक़र 63 हो गया है। जबकि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के तहत 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण नहीं किया जा सकता। एक अन्य याचिका में कहा गया कि एमपीपीएससी ने नवंबर 2019 में 450 शासकीय पदों पर नियुक्ति की प्रक्रिया में 27 प्रतिशत पद पिछड़ा वर्ग हेतु आरक्षित कर लिए।