Breaking News यूपी

कोरोना की मार: शहनाई की गूंज हुई फीकी, खाने के पड़े लाले

Shehnai Player कोरोना की मार: शहनाई की गूंज हुई फीकी, खाने के पड़े लाले
  • राहत के साथ कब गूंजेगी शहनाई, खत्‍म हुई सारी कमाई
  • वैश्‍विक महामारी नेशहनाई वादकों के पेशे पर किया हमला
  • कलाकार पेशा बदलने पर हैं मजबूर, कर्ज लेकर चला रहे घर खर्च

लखनऊ। नवाबी शहर में एक ऐसा दौर था जनाब जहां बिना शहनाईं की धुन पर शादियां नहीं होती थी, लेकिन बदलते वक्‍त के साथ शहनाई के चलन पर ग्रहण लग गया और धीरे-धीरे शहनाई का चलन भी सिमट गया। वैश्विक महामारी की वजह से पिछले एक साल से शहनाई वादकों के पास कोई दूसरा विकल्‍प नहीं हैं। बावजूद कला का मोह न तो उसने दूर हो रहा है, न ही घर की आमदनी बढ़ रही है। हालांकि घर खर्च चलाने के लिए शहनाई वादक कर्जदार हो चुके हैं। घर की ज‍िम्‍मेदारियों को पूरा करने के लिए मजबूरन पेशा बदलकर जिंदगी गुजर बसर कर रहे हैं।

सहालग में मिलती थी राहत

दरअसल, पुराने शहर के रहने वाले शहनाईवादक गुलाम मोहम्‍मद खान ने बताया कि देशव्‍यापी लॉकडाउन के बाद से उसकी स्‍थित‍ि बद से बदत हो चुकी है। लॉकडाउन के कारण शहनाई वादकों का कुनबा कर्जदार हो चुका है।

बताया क‍ि पहले हम बड़ी आसानी से महीने में चार या पांच प्रोग्राम कर लेते थे। घर खर्च के अलावा तमामा जिम्‍मेदारियां भी पूरी हो जाती थीं। आमतौर पर एक प्रोग्राम में करीब 15-20 हज़ार रुपए कमाई हो जाती थी। और सहालक सीजन में ये कमाई दोगुनी हो जाती थी।

बताया क‍ि हम एक टीम के साथ मिलजुल कर काम करते है। इनमें हारमोनियम, तबला और ढोलक वादक शामिल हैं। मौजूद हालत में अब इन सबके कमाई का रास्ता बंद हो चुके है।

विरासत में मिली कला

गुलाम मोहम्‍मद खान बातते हैं कि महज 15 साल की उम्र से वह शहनाई बजाने लगे थे। उनके घराने में शहनाई बजाने की एक पुश्तैनी परम्परा है। जोकि दो सौ साल पुरानी है। जि‍सका सिलसिला बदस्‍तूर जारी है।

उन्‍होने बताया कि देश में कई मशहूर शहनाई वादक भी हुए। इनमें बनारस का शहनाई घराना संगीत प्रेमियों की जुबां पर रहता था। जबकि भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खान बनारस के घराने से थे।

वहीं गुलाम मोहम्मद भी उसी बनारस घराने से ताल्लुक रखते हैं, लेकिन शादी के बाद वो लखनऊ में ही बस गए। कभी रेडियो पर भी उनका कार्यक्रम आता था।

नाती के कंधों पर परम्‍परा की कमान

उनका मानना है कि भगवान शिव का शहनाई और शास्त्रीय संगीत से गहरा संबंध है। भगवान शिव डमरू की ध्वनि पर नृत्य करते थे। जिसका जिक्र पुराणों में लिखा है। रामग भैरव, नट भैरव, कल्याण, यमन कल्याण जैसे राग कई देवी -देवताओं पर ही बने हैं।

बताया कि वह बेहद खुश है कि उनका नाती काशी विश्वनाथ पीठ में शहनाई बजाता है। साथ ही नाती को अपना शार्दिग बनाया है। वह काशी विश्वनाथ में प्रोग्राम करता है, इसी बात से खुशी मिलती है, कि सदियों से चली आई परम्परा उनका नाती संजोए हुए हैं।

Related posts

पाकिस्तान हमले की जानकारी देने के लिए पीएम से मिलेंगे रक्षा मंत्री अरुण जेटली

shipra saxena

UP: आउटसोर्सिंग सफाईकर्मियों के लिए खुशखबरी, अब मिलेगा इतना मानदेय

Shailendra Singh

शरीफ के बिगड़े बोल: हमने की सर्जिकल स्ट्राइक तो पीढ़ियां रखेंगी याद

bharatkhabar