- संवाददाता, भारत खबर
परमात्मा शराब है। हां, शराब जब पी लोगे तो तुम्हारे जीवन में जो अलमस्ती होगी, प्रार्थना उसी अलमस्ती का एक रंग है। नृत्य होगा, गीत होगा; वे सब उसी अलमस्ती से निकलेंगे। वे उसी अलमस्ती की धाराएं हैं। अलमस्ती की गंगोत्री से प्रार्थना की गंगा पैदा होती है।
मीरा को हुई। लोग सोचते हैं, मीरा ने गा-गा कर परमात्मा को पा लिया। गलत सोचते हैं, बिलकुल गलत सोचते हैं! उन्हें जीवन का गणित आता ही नहीं। मीरा ने परमात्मा को पाया, इसलिए गाया। गा सकी–इसलिए नहीं कि परमात्मा को गा-गा कर पाया जा सकता है; लेकिन परमात्मा को पा लो तो बिना गाए नहीं रहा जा सकता। अगर गाने से परमात्मा मिलता हो तो लता मंगेशकर को मीरा से पहले मिल जाए। लता मंगेशकर को पीएच.डी. की उपाधि मिल सकती है, परमात्मा नहीं। यह गीत कंठ तक है। कंठ जिनके सुमधुर हैं, उनको कोकिल-कंठी कहो ठीक। और मीरा का हो सकता है गीत इतना सुमधुर न भी रहा हो, होश कहां! मात्रा-छंद की भूल होती हो, होश कहां!
मीरा ने कहा ही है: सब लोक लाज खोई! मीरा सड़कों पर नाचने लगी; राजघराने की महिला थी, रानी थी। प्रियजन-परिजन चिंतित हुए, बदनामी हो रही थी। जहर भेजा। कहानी कहती है कि मीरा जहर पी गई और मरी नहीं। अगर यह बात सच हो कि मीरा जहर पीकर मरी नहीं तो वैसे ही समझ लेना जैसा लाओत्सु का शराबी गाड़ी से गिरा और चोट नहीं खाया। बस वही बात है। पी गई होगी शराब, पी गई होगी जहर, जो भी भेजा होगा पी गई होगी; लेकिन उसे खयाल ही नहीं होगा, बचाव ही नहीं होगा। बचने वाला तो जा ही चुका; वह अहंकार तो कभी का विदा हो चुका है। अब तो परमात्मा था। और परमात्मा जहर पीए तो मरे? अब तो प्रार्थना थी। और प्रार्थना से तो जहर भी जुड़े तो अमृत हो जाए। और प्रार्थना के साथ तो अंधेरे का भी संग-साथ हो जाए तो रोशन हो जाए। नहीं, मैं ऐसा कहता हूं कि मीरा ने परमात्मा को पाया, इसलिए गा सकी। प्रार्थना आत्यंतिक फूल है। पहले वृक्ष तो लगने दो परमात्मा के अनुभव का।
उत्सव आमार जाति, आनंद आमार गोत्र
ओशो प्रेम..