2 सितंबर 1994 को मसूरी गोली कांड के बाद शहर में कर्फ्यू लगा दिया गया था और यहां पर किसी को भी आने की इजाजत नहीं थी। सारी सीमाएं सील कर दी गई थी। भारी संख्या में पुलिस बल और अर्धसैनिक बल तैनात कर दिए गए थे। और मसूरीवासी अपने घरों में कैद होकर रह गए थे । मसूरी वासियों की मदद के लिए टिहरी उत्तरकाशी देहरादून आदि क्षेत्रों से लोग मसूरी की ओर कूच करने लगे। इसी दौरान उत्तरकाशी टिहरी जिले से भी भारी संख्या में लोग मसूरी आ रहे थे। बाटाघाट के निकट मसूरी आने वाले राज्य आंदोलनकारियों को पुलिस द्वारा रोक दिया गया और उन पर लाठियां बरसाई गई। लोगों को गहरी खाई में फेंक दिया गया। जिसमें दर्जनों लोग घायल हो गए थे और कई लोग घायल होने के बाद शहीद हो गए थे।
बता दें कि इसी को लेकर आज बाटाघाट कांड की 27वीं बरसी पर बाटाघाट में एक गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें वक्ताओं ने उस दौरान हुए घटनाक्रम के बारे में विस्तार से अपनी यादें साझा की। उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी संयुक्त संघर्ष समिति के तत्वाधान में आयोजित गोष्ठी मे बतौर मुख्य अतिथि धनोल्टी विधायक प्रीतम सिंह पंवार ने कहा कि राज्य आंदोलन के दौरान वह सैकड़ों लोगों के साथ मसूरी आ रहे थे। इसी दौरान पुलिस ने बर्बरता की सारी हदें पार कर बेकसूर निहत्थे लोगों पर लाठियां बरसानी शुरू कर दी और कई लोगों को गहरी खाई में फेंक दिया। उनके वाहनों को क्षतिग्रस्त कर दिया गया। उन्होंने कहा कि आज भी वह उन दिन याद कर सिहर जाते हैं। उन्होंने कहा कि बाटाघाट में स्मारक बनवाने के लिए वे मुख्यमंत्री से वार्ता करेंगे और शीघ्र शहीदों के सपनों को पूरा करने की कोशिश करेंगे।
इस अवसर पर पूर्व सभासद बीना पंवार ने कहा कि बाटाघाट पर तत्कालीन सरकार की दमनकारी नीतियां उजागर हुई। कहा कि शहीद स्थल पर राज्य आंदोलनकारियों के इतिहास को अंकित किया जाना चाहिए और इसे पाठ्यक्रम में भी शामिल किया जाना चाहिए। इस अवसर पर समिति के संयोजक प्रदीप भंडारी ने कहा कि राज्य सरकार को यहां पर कार्यक्रम आयोजित किया जाना चाहिए था लेकिन किसी भी सरकार द्वारा राज्य आंदोलनकारियों की सुध नहीं ली गई है और आज चिन्ही करण की मांग को लेकर भी राज्य आंदोलनकारियों में खासा आक्रोश है। उन्होंने मांग की कि बाटाघाट पर भव्य शहीद स्मारक स्थापित किया जाना चाहिए। क्षेत्रीय विधायक गणेश जोशी पर आरोप लगाते हुए कहा कि 27 साल के दौरान शहीदों के सपनों को साकार करने को लेकर उनके द्वारा कोई भी कार्य नहीं किया गया है और आज आंदोलनकारी खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं।