दीपावली के 5 दिनी उत्सव में धनतेरस के बाद नरक चतुर्दशी मनाई जाती है. इस दिन को छोटी दिवाली, रूप चौदस और काली चौदस भी कहा जाता है. इस यम पूजा, कृष्ण पूजा और काली पूजा होती है. इस दिन दक्षिण भारत में वामन पूजा का भी प्रचलन है.
इस दिन हिंदू परिवारों में सूर्योदय के पूर्व पूरे शरीर पर उबटन लगाकर स्नान करने की परंपरा है. इसके पीछे कई शास्त्रीय मान्यता होने के अलावा वैज्ञानिक कारण भी है. शास्त्रीय परिभाषा के अनुसार इस प्रक्रिया को अभ्यंग स्नान कहा जाता है. ये एक अत्यंत पवित्र स्नान होता है जिसमें हल्दी, चंदन, दही, बेसन, तिल का तेल, जड़ी-बूटियां आदि मिलाकर एक लेप तैयार किया जाता है, जिससे पूरे शरीर की मालिश की जाती है. आइए जानते हैं क्या है इसके पीछे धार्मिक कारण.
हिंदू परंपराओं के अनुसार अभ्यंग स्नान के लिए अनेक प्रकार की जड़ी-बूटियां मिलाकर बनाए जाने वाले लेप की मालिश से शरीर के रोम छिद्र खुल जाते हैं और इससे शरीर को नूतनता प्राप्त होती है. ये स्नान मुख्यत: कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को किया जाता है, क्योंकि ये यमराज का दिन होता है और वे मनुष्यों के शरीर को नूतनता प्रदान करते हैं. अभ्यंग स्नान से यमराज प्रसन्न होकर मनुष्य को रूप-सौंदर्य और शरीर को नया बनाने का आशीर्वाद देते हैं.
नरक चतुर्दशी क्यों मनायी जाती है?
कुछ स्थानों पर नरक चतुर्दशी प्रत्येक साल देवी काली की पूजा करके मनायी जाती है. जिन्होनें राक्षस नरकासुर को मारा था. इसी कारण यह दिन नरक चतुर्दशी के साथ काली चौदस के नाम से भी जाना जाता है. लोग अपने जीवन में वास्तविक प्रकाश लाने के साथ साथ अपने जीवन से आलस्य और दुष्टता को नष्ट करने के लिये पूजा करते है.
बहुत अच्छी तरह से पूजा करने के लिए भेंट की आवश्यक सामग्री तेल, फूल, अगरबत्ती, कपूर, दीया, मिठाई, नारियल, आरती थाली आदि हैं. लोगों की मान्यता है कि सिर धोने और आंखों में काजल लगाने से सभी बुरी दृष्टि उऩसे दूर रहेंगी. तंत्र से संबंधित व्यक्तियों की धारणा है कि इस दिन पर उनके मंत्रों का अभ्यास उनकी तंत्र शक्ति में और वृद्धि करेगा.
ये भी माना जाता है कि इस दिन हिन्दू भगवान कृष्ण ने राक्षस नरकासुर पर विजय प्राप्त की थी. लोग सुबह जल्दी उठते है और नहाने से पहले अपने पूरे शरीर पर खुशबूदार तेल लगाते है. नहाने के बाद वे नये कपडे पहनते हैं. अपने रिश्तेदारों और मित्रों के साथ पूजा करके वे स्वादिष्ट भोजन का आनन्द लेते हैं. प्रत्येक जगह दीये जलाकर वे शाम को अपने परिवार के साथ पटाखों का आनन्द लेते हैं.
पूजा की सरल विधि
यमदीपदान प्रदोषकाल में करना चाहिए, इसके लिए आटे का एक बड़ा दीपक लें. गेहूं के आटे से बने दीप में तमोगुणी ऊर्जा तरंगें एवं आपत्ति लाने वाली तमोगुणी तरंगें शांत करने की क्षमता रहती है. स्वच्छ रुई लेकर दो लंबी बत्तियां बना लें. उन्हें दीपक में एक-दूसरे पर आड़ी इस प्रकार रखें कि दीपक के बाहर बत्तियों के चार मुंह दिखाई दें. अब उसे तिल के तेल से भर दें और साथ ही उसमें कुछ काले तिल भी डाल दें.
प्रदोषकाल में इस प्रकार तैयार किए गए दीपक का रोली, अक्षत एवं पुष्प से पूजन करें. उसके पश्चात् घर के मुख्य दरवाजे के बाहर थोड़ी-सी खील अथवा गेहूं से ढेरी बनाकर उसके ऊपर दीपक को रख दें. दीपक को रखने से पहले प्रज्वलित कर लें और दक्षिण दिशा की ओर देखते हुए 4 मुंह के दीपक को खील आदि की ढेरी के ऊपर रख दें. ऊं यमदेवाय नमः कहते हुए दक्षिण दिशा में नमस्कार करें.