- संवाददाता || भारत खबर
श्राद्ध पक्ष का समय चल रहा है और ऐसे में कई सारी ऐसी बातें हैं जिनका ख्याल रखना बेहद जरूरी हो जाता है। हम सभी लोगों को पता है कि 2 से 17 सितंबर तक श्राद्ध पक्ष है और ऐसे में हम सभी अपने-अपने पितरों को तर्पण करते हैं और मान्यता यह भी है कि इस पक्ष में किसी भी तरह का शुभ कार्य नहीं किया जाता है।
श्राद्ध पक्ष के अंतिम दिन यानी 17 सितंबर को सर्वपितृ अमावस्या है। पितरों के तर्पण के लिहाज से यह दिन बेहद फलदायक होता है। कहते हैं कि जिस तिथि पर हमारे परिजनों की मृत्यु होती है उसे श्राद्ध की तिथि कहते हैं बहुत से लोगों को अपने परिजनों की मृत्यु की तिथि याद नहीं रहती ऐसी स्थिति में शास्त्रों में इसका भी निवारण बताया गया है।
श्राद्ध पक्ष में जिनकी तिथि पता न हो उनका तर्पण ऐसे करें
जिन लोगों को अपने पितरों की मृत्यु की तिथि का पता ना हो उन्हें आश्विन अमावस्या के दिन अपने पितरों का तर्पण करना चाहिए, इसके अलावा कई सारे ऐसे नियम और कायदे बने हुए हैं जिन को फॉलो करना पितृपक्ष में जरूरी हो जाता है। यहां हम आपको कुछ ऐसी नियमों के बारे में बता रहे हैं जिससे आपको यह पता चल जाएगा कि किस दिन किस का श्राद्ध करना चाहिए-
- चतुर्दशी श्राद्ध: इस तिथि पर परिजनों का श्राद्ध किया जाता है जिनकी अकाल मृत्यु हुई हो जैसे कि दुर्घटना, हत्या, आत्महत्या, शास्त्र के द्वारा आदि।
- पंचमी श्राद्ध: पंचमी श्राद्ध को जिनकी मृत्यु हुई है उनका श्राद्ध और अविवाहित लोगों का श्राद्ध पंचमी तिथि को किया जाता है।
- नवमी श्राद्ध: नवमी के श्राद्ध को मातृ नवमी के नाम से भी जाना जाता है इस दिन पर श्राद्ध करने से कुल की सभी दिवंगत महिलाओं का श्राद्ध हो जाता है।
- सर्वपितृ अमावस्या: जिन लोगों की मृत्यु के दिन की सही जानकारी ना हो उनका श्राद्ध अमावस्या को किया जाता है।