चंडीगढ़। पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने पंजाब के मुख्यमंत्री कैंसर रिलीफ फंड स्कीम का लाभ केवल 1.5 लाख रुपये तक ही सीमित होने और इस राशि के समाप्त होने पर मरीज को उसके हाल पर छोड़ देने पर हैरानी जताई है। कोर्ट ने इस स्कीम को लेकर पंजाब सरकार से पूछा है कि इलाज के लिए निर्धारिक राशि खत्म होने पर क्या किसी को मरने के लिए छोड़ा जा सकता है? वहीं इस स्कीम को लेकर पंजाब सरकार के खिलाफ याचिका दायर करने वाले वकील एचसी अरोड़ा ने कहा कि पंजाब सरकार की स्कीम चल रही है कि कैंसर से पीड़ित पंजाब के निवासियों को अधिकृत अस्पतालों में सरकार द्वारा इलाज के लिए 1.5 लाख रुपये की आर्थिक मदद दी जाएगी।
वकील ने कहा कि आर्थिक मदद के तौर पर दी गई राशि के खत्म होने के बाद मरीज को उसके हालात पर छोड़ दिया जाता है। वहीं अगर इस स्थिति में मरीज बीपीएल श्रेणी से संबंध रखता है तो उस स्थिति में उसे पंजाब सरकार की एक दूसरी स्कीम “निरोगी” के तहत इलाज का लाभ दिया जाता है, लेकिन इसके लिए बहुत ज्यादा समय लग जाता है और इसका असर सीधा मरीज को नियमित तौर पर दिए जाने वाले इलाज पर पड़ता है। उन्होंने कहा कि इस तरह इलाज को बीच में ही छोड़ देना मरीज को नरक की तरह जीवन जीने पर मजबूर करने से कम नहीं है।
वकील ने कहा कि स्कीम का लाभ मरीज को तब तक मिलना चाहिए जब तक वे पूरी तरह से सही नहीं हो जाता है। विशेषकर बीपीएल और गरीब परिवारों को इस तरह से उनके हाल पर नहीं छोड़ा जा सकता। इसके साथ ही ये शुरुआती दौर को कवर नहीं करता है। कैंसर की पहचान होने के बाद ही इस स्कीम का लाभ लिया जा सकता है। वहीं सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने इलाज के लिए डेढ़ लाख की लिमिट हटाने और अमीरों को इस स्कीम के लाभ से बाहर करने पर पंजाब सरकार से जवाब मांगा है।