मुंबई। अन्ना हजारे के आंदोलन को लेकर शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना में सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे पर हमला बोला है। शिवसेना ने अपने संपादकीय में एक सवाल किया है कि लोकपाल जैसे सवालों पर रामलीला मैदान में अनशन करने से अन्ना हजारे को क्या हासिल हुआ है? अन्ना हजारे को दिल्ली जाकर कौन सा खजाना मिल गया? शिवसेना ने लिखा कि अन्ना की हालत लालकृष्ण आडवाणी जैसी है।
इन दोनों में सिर्फ अंतर इतना है कि आडवाणी मौन हो गए हैं और अन्ना बोल रहे हैं। अडवाणी सोचते हैं कि बोलने से कुछ हासिल नहीं होगा और अन्ना सोचते हैं कि भूखे रहने से सरकार सुनेगी। सामना में लिखा गया है कि रामलीला मैदान में ये अनशन किसानों और लोकपाल जैसे सवालों पर शुरू हुआ था, जोकि सीएम फडणवीस की मध्यस्थता के कारण सातवें दिन समाप्त हो गया। अलग-अलग मांगों को पूरा करने की आश्वासन वाला पीएम के हस्ताक्षर का पत्र सीएम ने अन्ना को सौंप दिया और उन्होंने अपना अनशन खत्म कर लिया।
इस अनश से अन्ना को सिर्फ इतना हासिल हुआ की सात दिन में उनका वजन छह किलो कम हो गया। सामना में लिखा गया है कि इस आंदोलन से हाथ में कुछ नहीं आया। वैसे पिछले आंदलोन से भी क्या हासिल हुआ था? इसका खुलासा कोई करेगा क्या? शिवसेना ने अपने संपादकीय में आगे लिखा है कि अन्ना का पिछला आंदोलन भ्रष्टाचार के खिलाफ था और वो कह रहे थे कि कांग्रेस का शासन भ्रष्ट और अनैतिक है। तो आज के सत्ताधारी क्या राजा हरिश्चंद्र के वंशज है?
अन्ना का आंदोलन सफल नहीं होने देने का सभी का एजेंडा था, इसलिए दिल्ली में भी बड़े मंत्री और राजनीतिज्ञ अन्ना से मिलने नहीं गए। 7वें- 8वें दिन अन्न का गला जब सूखने लगा तो महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को बुलाया गया। मुख्यमंत्री फडणवीस की मध्यस्थता से अनशन टूटना था और उन्हीं के आश्वासनों पर विश्वास करना था तो फिर रामलीला मैदान की जगह रालेगण सिद्धि में आंदोलन करने पर आपत्ति नहीं होनी चाहिए थी।