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शंकर सिंह वाघेला ने दिखाए बागी तेवर, छोड़ सकते हैं कांग्रेस का साथ

SHANKAR SINGH शंकर सिंह वाघेला ने दिखाए बागी तेवर, छोड़ सकते हैं कांग्रेस का साथ

नई दिल्ली। इन दिनों कांग्रेस के दिन बहुत बुरे चल रहे हैं। हाल में हुए विधान सभा चुनाव में पंजाब को छोड़ किसी राज्य में कांग्रेस बहुमत के आस-पास तक नहीं पहुंची है। बाकी उसने राष्ट्रपति चुनाव को लेकर विपक्ष को एक जुट करने का भी दांव खेला लेकिन वो भी बेकार चला गया है। अब कांग्रेस के सामने गुजरात का दांव भी बाकी है।

SHANKAR SINGH शंकर सिंह वाघेला ने दिखाए बागी तेवर, छोड़ सकते हैं कांग्रेस का साथ

लेकिन वहां के हालत भी कुछ ठीक नहीं दिख रहे हैं। पिछले कुछ दिनों से पार्टी के वरिष्ठ नेता शंकर सिंह वाघेला अपने शीर्ष नेतृत्व से खासा नाराज चल रहे हैं। लगातार शंकर सिंह वाघेला पार्टी के नेतृत्व को आड़े हाथों लिए हैं।

शंकर सिंह वाघेला के बागी स्वर
बीते शनिवार को गांधीनगर में समर्थकों को सम्बोधित करते हुए शंकर सिंह वाघेला ने कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और पार्टी को लेकर उनकी प्रतिबद्धता पूरी हो गई है। अपने समर्थकों के बीच शंकर सिंह वाघेला ने कहा कि जब सोनिया गांधी ने भाजपा और आरएसएस का बैकग्राउंड होने के बाद भी मुझे 2004 में यूपीए सरकार में मंत्री बनाया था। उनके इस भरोसे को मैने पूरी वफादारी के साथ निभाया । लेकिन हाल में हुई दिल्ली में मुलाकात के दौरान मैने स्पष्ट कर दिया कि उनके प्रति हमारी प्रतिबद्धता का समय अब पूरा हो गया है।

अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं पर लगाए गम्भीर आरोप
यहां पार्टी में मुझको लेकर कई चर्चाएं है लोग मुझे पार्टी से बाहर करने में रात दिन काम कर रहे हैं। इस बारे में मैने कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी से बताया था कि लोग यहां पर पूरे शहर में बापू फॉर सीएम के पोस्टर लगा रहे हैं। ये मेरे लिए बहुत दुखद था, अपनी तकलीफ को लेकर मैने राहुल गांधी से फोन पर भी बात की थी। हाल के यूपी चुनाव में पार्टी की हार को लेकर भी शीर्ष नेतृत्व पर वाघेला ने जोरदार हमला बोला कहा कि कांग्रेस के नेतृत्व की कमी के चलते हमें चुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा है।

बागी राजनीत के जनक है वाघेला
शंकर सिंह वाघेला अपने बागी स्वर के लिए गुजरात की राजनीति में काफी चर्चित रहे हैं। साल 1995 में में जब केशुभाई पटेल को भाजपा ने गुजरात की कमान दी तो शंकर सिंह वाघेला ने सबसे पहले विरोध का स्वर बुलंद किया। इसके बाद इनके पास एक प्रस्ताव आया था कि वो उप मुख्यमंत्री का पद स्वीकार कर सकते हैं। लेकिन वाघेला ने इसे एक सिरे से खारिज कर दिया था। इसके बाद वाघेला ने सितबंर 1995 में करीब 47 विधायकों के साथ पार्टी में बगावत कर दी थी जिसके चलते भाजपा को वाघेला के करीबी सुरेश मेहता को मुख्यमंत्री बनाना पड़ा था। लेकिन साल 1996 में गोधरा लोकसभा सीट से वाघेला की हुई हार का ठिकरा उन्होने पार्टी पर फोड़ते हुए पार्टी से नाता तोड़ दिया था। जिसके बाद गुजरात में राजनीतिक संकट आ गया था। साल 1996 में अक्टूबर में शंकर सिंह वाघेला ने अपने समर्थन में आये विधायकों को लेकर राष्ट्रीय जनता पार्टी का गठन किया था जिसने कांग्रेस के साथ सरकार का गठन किया। इसके बाद वाघेला की पार्टी का विलय कांग्रेस में हो गया था। इस विलय के बाद शंकर सिंह वाघेला गुजरात के मुख्यमंत्री बने थे।

कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व के पाले में गेंद
अब एक बार फिर वाघेला के बगावती स्वर बुलंद हैं। लेकिन इस बार ये स्वर कांग्रेस के खिलाफ हैं। सूबे के कई बड़े कांग्रेसी नेता वाघेला को अब हाशिए पर ही रखना चाहते हैं। लेकिन वाघेला को ये वनवास बर्दाश्त नहीं है ये उन्होने साफ कर दिया है। इसके साथ ही गांधीनगर में वाघेला समर्थकों की रैली में भी उनके लोगों ने उन्हे पार्टी को ना छोड़ने औऱ राजनीति से दूर ना जाने की सलाह दी है। अब वाघेला को आने वाली 30 तून का इंतजार है जब वे राहुल गांधी और कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व से अपनी बात कहेंगे।

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