योगी सरकार द्वारा प्रदेश में सभी धर्मों के लोगों के लिए विवाह पंजीकरण कराने के फैसले को दारुल उलूम देवबंद ने गैर जरूरी बताया है। उलमा का मानना है कि विवाह के रजिस्ट्रेशन को बाध्य करना धार्मिक आजादी के खिलाफ है। उलमा ने योगी सरकार के इस फैसले पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है। दारुल उलमा के मोहतमिम मुफ्ती अबुल कासिम नौमानी द्वारा कहा गया है कि यह सब कुछ गैर जरूरी है।
उनका कहना है कि वह रजिस्ट्रेशन के खिलाफ नहीं हैं लेकिन जबरन रजिस्ट्रेशन के लिए बाध्य करना धार्मिक आजादी के खिलाफ हैं। योगी सरकार के फैसले पर इस्लामी तालीम के सबसे बड़े केंद्र दारुल उलूम के मोहतमिम मौलाना मुफ्ती अबुल कासिम नौमानी बनारसी ने इस सब पर कहा है कि शादी के लिए पंजीकरण को अनिवार्य जोर जबरदस्ती बनाने संविधान द्वारा दी गई आजादी के खिलाफ है। उनका कहना है कि अगर पंजीकरण ना कराए जाने पर कानून से वंचित रखना सीधे तौर पर उत्पीड़न करना है। उन्होंने कहा है कि धार्मिक तौर पर शादी सिर्फ निकाह करने से हो जाती है।
उन्होंने कहा है कि अगर कोई अपनी मर्जी से पंजीकरण कराना चाहे तो वह करा सकता है लेकिन जोर जबरदस्ती से पंजीकरण करवाना गलत है। उनके अनुसार निकाह नामा ही अपने आप में पंजीकरण की भूमिक अदा करता है जोकि दो गवाहों के साथ में लिखा जाता है। इस सब पर दारुल उलूम वक्फ के शेखुल हदीस मौलाना अहमद खिजर शाह मसूदी ने भी इस पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि यह गलत है।