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आरबीआई गवर्नर पद की प्रतिष्ठा कायम रहनी चाहिए: राजन

raghuram Rajan आरबीआई गवर्नर पद की प्रतिष्ठा कायम रहनी चाहिए: राजन

नई दिल्ली। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर रघुराम राजन ने शनिवार को कहा कि वृहद आर्थिक स्थायित्व के लिए केंद्रीय बैंक के गवर्नर पद की प्रतिष्ठा में परिवर्तन नहीं किया जाना चाहिए। गौरतलब है कि रघुराम राजन इसी महीने आरबीआई के गवर्नर पद से सेवानिवृत्त होने वाले हैं। राजन ने बतौर आरबीआई गवर्नर शनिवार को अपने अंतिम संबोधन में कहा कि केंद्रीय बैंक के गवर्नर का कार्य सिर्फ ब्याज दरों में कटौती या बढ़ोतरी करना नहीं होता बल्कि बेहद अस्थिरता के माहौल में भी ऐसे दीर्घकालिक जटिल फैसले लेना होता है कि जिन्हें सामान्य शब्दों में समझा पाना आसान नहीं होता।

raghuram Rajan

यहां सेंट स्टीफेंस कॉलेज में आयोजित एक समारोह में ‘केंद्रीय बैंक की स्वतंत्रता’ विषय पर राजन ने केंद्रीय बैंक के गवर्नर को स्वतंत्रता दिए जाने की वकालत की और उसकी भूमिका और जिम्मेदारियों के प्रति समर्थन जताया। राजन ने कहा, “इसके पीछे ठोस कारण हैं कि आखिर केंद्रीय बैंक का गवर्नर जी-20 शिखर सम्मेलन में वित्त मंत्री के साथ क्यों बैठता है। अन्य नियामकों या सरकार के सचिवों से इतर केंद्रीय बैंक के गवर्नर के पास अहम नीति नियंत्रण होता है और कई बार देश के सबसे शक्तिशाली व्यक्ति से असहमति व्यक्त करनी पड़ती है।”

राजन ने कहा कि कानूनन कमतर पद वाले व्यक्ति को व्यावहारिक तौर पर अधिक शक्तिशाली पद दे देना खतरनाक होगा। राजन ने कहा कि आरबीआई गवर्नर की नियुक्ति प्रधानमंत्री, केंद्रीय वित्त मंत्री की सलाह पर करता है और उसका वेतन केंद्रीय सचिव स्तर का होता है।

आरबीआई गवर्नर की रैंक सरकारी पदानुक्रम में निर्धारित तो नहीं किया गया है, लेकिन ऐसा मान लिया गया है कि आरबीआई गवर्नर सीधे तौर पर प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री के प्रति उत्तरदायी होता है और उसे जरूरी फैसले लेने का अधिकार होता है। उन्होंने आगे कहा, “देश के वृहद आर्थिक स्थायित्व के लिए इनमें से कुछ भी बदलना नहीं चाहिए, हालांकि अगर इन मुद्दों में से किसी पर भी दोबारा विचार करना ही हो तो, आरबीआई गवर्नर को उसके पद के अनुरूप देश की आर्थिक नीति के सबसे अहम प्रभारी के रूप में पदस्थ करना चाहिए।”

राजन के अनुसार, यदि आरबीआई लगातार लक्ष्य हासिल करने में असफल साबित हो रहा हो तो आलोचक इसकी आलोचना कर सकते हैं, लेकिन अगर वे यह चाहते हैं कि लक्ष्यों की पूर्ति न हो पाने के बावजूद आरबीआई ब्याज दरों में कटौती करे तो उन्हें आरबीआई की बजाय सरकार को कठघरे में खड़ा करना चाहिए।

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