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भारत छोड़ो आंदोलन के “हीरो” जिनके नाम से थर थर कांपते थे अंग्रेज

भारत छोड़ो आंदोलन के हीरो भारत छोड़ो आंदोलन के "हीरो" जिनके नाम से थर थर कांपते थे अंग्रेज

नई दिल्ली।  देश की आजादी की महागाथा में कई क्रांतिकारियों ने ब्रिटिश सरकार से लोहा लिया और उन्हें नाको चने चबवाने का काम किया। ऐसे ही एक महान क्रांतिकारियों में से एक थे चित्तू पांडेय जिन्हें प्यार से शेर-ए-बलिया कहा जाता है जिसकी मतलब है बलिया का शेर। शेर-ए-बलिया यानि चित्तू पांडेय आजादी से पहले की वो महागाथा हैं जिन्होंने 1942 के ब्रिटिश विरोधी आंदोलन में स्थानीय लोगों की फौज बना कर अंग्रेजों को खदेड दिया था।

चित्तू पांडेय
चित्तू पांडेय

19 अगस्त,1942 को वहां स्थानीय सरकार बनी तब कुछ दिनों तक बलिया में चित्तू पांडेय का शासन भी चला, लेकिन बाद में अंग्रेजी हुकूमत ने गदर को दबाने के क्रम में आंदोलनकारियों को उखाड फेंका। चित्तू पांडेय की मृत्यु को 1946 में हुई थी।

ब्रिटिश विरोधी आंदोलन में सक्रिय

चित्तू पांडेय हमेशा से ही ब्रिटिश सरकार को इस देश के बाहर निकालना चाहते थे जिसके लिए उन्होंने हर उस आंदोलन में भाग लिया जो ब्रिटिश विरोधी हुआ करता था। देश प्रेम को लेकर उनका यहीं जज्बा बलिया को आजाद कराने की प्रेरणा बना।19 अगस्त,1942 को बलिया के शेर ने बलिया को ब्रिटिश सरकार से आजाद कराते हुए अपना शासन स्थापित किया हालांकि उनका ये शासन ज्यादा दिनों तक नहीं चला और ब्रिटिश सरकार ने आंदोलनकारियों समेत चित्तू पांडेय को उखाड़ फेंका।

भारत छोड़ो आन्दोलन में भूमिका

देश की आजादी में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने वाला भारत छोड़ो आंदोलन एक ऐसा आंदोलन था। जिसनें अंग्रेजो को भारत छोड़ने पर विवश कर दिया। इसकी शुरूआत 9 अगस्त को हुई थी। जिसका नेतृत्‍व महात्मा गांधी की ओर से किया जा रहा है। महात्मा गांधी के साथ ही इस आंदोलन में चित्तू पांडेय ने भी बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया था। अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन अपने चरम पर था। ऐसे में कुछ क्रांतिकारी ऐसे थे जिन्‍होंने अंग्रेजों की सत्‍ता को चुनौती देने के लिए आजादी से पहले ही स्‍वतंत्र सरकार बनाने का निर्णय लिया। इतना ही नहीं उन्‍होंने अंग्रेजों को मुंह चिढ़ाते हुए अपनी स्‍वतंत्र सरकार बनाई भी। चित्तू पांडेय भारत की आजादी का वो पन्ना है जिनके नाम से अंग्रेज थर-थर कांपते थे। इस आंदोलन की खास बात ये थी कि इसमें पूरा देश शामिल हुआ। ये ऐसा आंदोलन था, जिसने ब्रिटिश हुकूमत की जड़ें हिलाकर रख दी थीं।

गांधीवादी विचार धारा

चित्तू पांडेय हमेशा से ही देश को आजाद कराने के लिए गांधीवादी विचारधारा का समर्थन करने थे। ब्रिटिश सरकार से भारत को आजाद कराने के लिए चित्तू पांडेय हमेशा ही अहिंसा का सहारा लेते थे। जिसके बलबूते उन्होंने भारत की आजादी से पहले ही बलिया को अंग्रेजो से आजाद कराया और ‘राष्ट्रीय सरकार’ की घोषणा करके वे उसके अध्यक्ष बने जो कुछ दिन चलने के बाद अंग्रेजों द्वारा दबा दी गई। यह सरकार बलिया के कलेक्टर को सत्ता त्यागने एवं सभी गिरफ्तार कांग्रेसियों को रिहा कराने में सफल हुई थी।

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