पणजी। रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने शनिवार को कहा कि वह राजनीतिक रुझान वाले या ऐसे पूर्व सैनिकों से वन रैंक वन पेंशन (ओआरओपी) पर चर्चा नहीं करेंगे, जिन्होंने राजनीतिक दलों का गठन कर लिया है। पर्रिकर ने यहां एक संवाददाता सम्मेलन में यह भी कहा कि सेवानिवृत्त सैनिकों में से केवल चार से पांच प्रतिशत को ही ओआरओपी का पूरा लाभ नहीं मिल पा रहा है। इसकी वजह यह है कि उनके मंत्रालय का पेंशन विभाग संबंधित पूर्व सैनिकों का रिकॉर्ड नहीं पता लगा पाया है। इनमें से कुछ 1962 के भारत-चीन युद्ध के समय के हैं।
पर्रिकर ने कहा, “जो राजनीतिज्ञ बन गए हैं, जिन्होंने राजनीतिक पार्टी का गठन कर लिया है.. यहां तक कि हमारी पार्टी में भी पूर्व सैनिक राजनेता हैं, अन्य पार्टियों के साथ भी ऐसा है। वे राजनेताओं की तरह सोचते हैं, न कि पूर्व-सैनिकों की तरह। मैं उनके बारे में चर्चा नहीं कर सकता।”
उन्होंने कहा, “वे (पूर्व सैनिक संघ) संतुष्ट हैं, वहीं कुछ राजनीति में संलग्न हैं, मैं उन्हें संतुष्ट नहीं कर सकता। मैं आपको आश्वस्त कर सकता हूं और आप पूर्व सैनिकों से पूछ सकते हैं।”
रक्षा मंत्री ने यह भी कहा कि पूर्व सैनिकों की समस्याओं के समाधान के लिए वह लगातार प्रयास कर रहे हैं और उनके संपर्क में हैं।
पर्रिकर ने कहा कि सेवानिवृत्त सैनिकों में से करीब 95 प्रतिशत को ओआरओपी का पूरा लाभ मिल रहा है, जबकि शेष बहुत पुराने पेंशनर हैं, जो 1962 से ही पेंशन प्राप्त कर रहे हैं और उनके रिकॉर्ड पेंशन विभाग के पास नहीं हैं।
उन्होंने कहा, “..1962 का युद्ध 54 साल पहले हुआ था। पाकिस्तान के साथ 1965 और 1971 में हुए युद्ध के पेंशनर भी हैं। उनके पुराने रिकॉर्ड पेंशन विभाग में नहीं हैं।”
रक्षा मंत्री ने कहा कि उनका मंत्रालय उन चार से पांच प्रतिशत पूर्व सैनिकों को भी वैकल्पिक प्रावधानों के तहत ओआरओपी का लाभ देने की कोशिश कर रहा है, जिन्हें अब तक इसका लाभ नहीं मिल पाया है। इसके लिए अन्य स्रोतों से उनके रिकॉर्ड जुटाए जा रहे हैं। उनसे सेवाकाल को लेकर शपथ-पत्र भी देने को कहा गया है। उन्हें अगले दो माह में ओआरओपी का लाभ मिल जाएगा।