मेरठ। भारत को आजाद हुए आज 70 वर्ष बीत गए हैं, और इस आजादी में सबसे अहम भूमिका मेरठ की रही है। जीहां आपको बता दें आजादी की क्रांति में पहली चिंगारी मेरठ से ही भड़की थी। जिसने पूरे भारत को अपने आगोश में ले लिया था और फिर अंग्रेजो को लाचार होकर आखिर भारत छोड़ना पड़ा और जिससे देश को आजादी प्राप्त हुई।
सबसे पहले आपको बतातें हैं भारत की आजादी में क्रांतिधरा मेरठ की भूमिका के बारे में…
23 अप्रेल 1857 को अंग्रेजी हुकुमत द्वारा भारतीय सैनिकों को चर्बीयुक्त कारतूस प्रयोग करने का आदेश दिया गया और 24 अप्रैल 1857 को फोजीयों की एक परैड बुलाई गई थी, जिसमें अश्वरोही सेना को आदेश जारी किया गया था। जिसमें से 85 सैनिकों ने चर्बीयुक्त कारतूस को प्रयोग करने से मना कर दिया था, क्योंकि सेना में हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही समुदाय के लोग थे और करतुस में सूअर और गाय की चर्बी का इस्तेमाल किया जाता था तथा जिसको मुंह से खोलने के बाद ही बन्दूक में लोड किया जाता था। इसिलिए भारतीय सैनिकों ने इस आदेश को मानने से मना कर दिया था। जिसके बाद उनको अधिकारी के आदेशों की अवहेलना में दोषी करार दिया गया और फिर उनको गिरफ्तार कर उन पर जांच बैठा दी गई। 6,7 व 8 मई को लगातार उनका कोर्ट मार्शल किया गया। 9 मई को मेरठ में द्वारा पैरेड की गई, जिसमें उनको दण्डित किया गया और साथ ही उनकी वर्दियां उतरवाकर उनको बैड़ियां पहना दी गई तथा उसके बाद उनको विक्टोरिया पार्क स्थित जेल भी भेजा गया था। जिसकी चर्चा अगले दिन यानि 10 मई को पूरे जनपद मेरठ में आग की तराह फैल गई थी और उसके बाद जो हुआ और वो मेरठ से उठी चिंगारी जो भारत की आजादी के लिए एक ज्वाला बन गई थी।