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जनकपुर में पीएम मोदी का संबोधन, भारत-नेपाल का रिश्ता राम-सीता की तरह

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जनकपुर। नेपाल के दो दिवसीय दौरे पर गए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जानकी मंदिर में पूजा-अर्चना  की और जनकपुर-अयोध्या बस सेवा को भी हरी झंडी दिखाई पीएम ने यहां एक जनसभा को संबोधित करते हुए भारत और नेपाल के संबंधों पर जोर दिया। पीएम ने जय सिया राम कहकर अपने भाषण की शुरुआत की। इस दौरान पीएम मोदी का स्वागत 121 किलो की फूलमाला पहनाकर किया गया।

पीएम मोदी ने रैली को संबोधित करते हुए कहा कि यहां आकर मैने पूजा करने से मेरी सालों की मनोकामनां पूरी हो गई। भारत और नेपाल दो देश हैं, लेकिन हमारी मित्रता आज की नहीं त्रेता युग की है। राजा जनक और राजा दशरथ ने सिर्फ जनकपुर और अयोध्या ही नहीं, भारत और नेपाल को भी मित्रता और साझेदारी के बंधन में बांध दिया था। पीएम ने कहा कि भारत-नेपाल का संबध ऐसा है जैसे राम का सीता से बुद्ध का महावीर से। ये बंधन नेपाले में रहने वालों को खींच कर पशुपतिनाथ ले आता है।

भारत नेपाल संबंध किसी परिभाषा से नहीं बल्कि भाषा से बंधे हैं। ये भाषा आस्था की है, ये भाषा अपनेपन की है, ये भाषा रोटी की है और ये भाषा बेटी की है। ये मां जानकी का धाम है, जिसके बिना अयोध्या अधूरी है। इतिहास साक्षी रहा है, जब-जब एक-दूसरे पर संकट आए, भारत और नेपाल दोनों मिलकर खड़े हुए हैं। हमने हर मुश्किल घड़ी में एक दूसरे का साथ दिया है।ये समय हमें मिलकर शांति, शिक्षा, सुरक्षा,समृद्धि और संस्कारों की पंचवटी की रक्षा करने का है। हमारा ये मानना है कि नेपाल के विकास में ही क्षेत्रीय विकास का सूत्र है।Dc5p MFW4AA oF8 जनकपुर में पीएम मोदी का संबोधन, भारत-नेपाल का रिश्ता राम-सीता की तरह

पीएम ने कहा कि विकास की पहली शर्त होती है लोकतंत्र। मुझे खुशी है कि लोकतांत्रिक प्रणाली को आप मजबूती दे रहे हैं। हाल में ही आपके यहां चुनाव हुए। आपने एक नई सरकार चुनी है। अपनी आशाओं आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए आपने जनादेश दिया है। लोकतांत्रिक मूल्य एक और कड़ी है जो भारत और नेपाल के प्राचीन संबंधों को मजबूती देती है। लोकतंत्र वो शक्ति है जो सामान्य से सामान्य जन को बेरोकटोक अपने सपने पूरे करने का अधिकार देता है।

मिथिला की संस्कृति और साहित्य, मिथिला की लोक कला, मिथिला का स्वागत सम्मान सब अद्भुत है। पूरी दुनिया में मिथिला संस्कृति का स्थान बहुत ऊपर है। जनक की नगरी, सीता माता के कारण स्त्री- चेतना की गंगोत्री बनी है। सीता माता यानि त्याग, तपस्या, समर्पण और संघर्ष की मूर्ति।  ये वो धरती है जिसने दिखाया कि बेटी को किस प्रकार सम्मान दिया जाता है। बेटियों के सम्मान की ये सीख आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है।  यहां की मिथिला चित्रकारी को ही लीजिए।

इस परंपरा को आगे बढ़ाने में अत्यधिक योगदान महिलाओं का ही रहा है। और मिथिला की यही कला, आज पूरे विश्व में प्रसिद्द हैं। इस कला में भी हमें प्रकृति की, पर्यावरण की चेतना देखने को मिलती है।राजा जनक  और जनकल्याण के इस संदेश को लेकर ही हम आगे बढ़ रहे हैं। आपके नेपाल और भारत के संबंध राजनीति, कूटनीति, समरनीति से परे देव-नीति से बंधे हैं। व्यक्ति और सरकारें आती-जाती रहेंगी, पर ये संबंध अजर, अमर हैं।ये समय हमें मिलकर शांति, शिक्षा,सुरक्षा, समृद्धि, और संस्कारों की पंचवटी की रक्षा करने का है।

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