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ज्यादा समय तक नहीं चलेगा पाकिस्तान का हाइड-ऐंड-सीक का खेल: आर्मी चीफ

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नई दिल्ली। पाकिस्तान ने भले ही बालाकोट में अपने आतंकी कैम्प को फिर से ऐक्टिव कर लिया हो, लेकिन आर्मी चीफ बिपिन रावत ने मीडिया से बातचीत में कहा कि भारत का रुख बिल्कुल स्पष्ट है कि वह पाकिस्तान को जम्मू-कश्मीर के माहौल का दुरुपयोग नहीं करने देगा। पढ़िए बातचीत का अंश बालाकोट में जैश-ए-मोहम्मद का कैम्प ऐक्टिव हो गया है। खुफिया जानकारी के मुताबिक, भारत में 250,300 या 500 आतंकी घुसपैठ की फिराक में हैं। अगर ऐसा होता है, तो फिर फरवरी के बालाकोट स्ट्राइक या सितंबर 2016 के सर्जिकल स्ट्राइक से क्या हासिल हुआ?

दोनों स्ट्राइक ने यह संदेश दिया कि एलओसी पार नहीं किया जाएगा, जब तक दूसरी तरफ शांति है और माहौल को बिगाड़ने की कोशिश नहीं होती। पाकिस्तान आतंकियों को नियंत्रित करता है, जो उसके प्रॉक्सी की तरह काम करते हैं। ज्यादा समय तक हाइड-ऐंड-सीक का खेल नहीं चलेगा, अगर हमें सीमा पार जाना पड़ा, चाहे वह हवाई मार्ग से या थल मार्ग से, हम जाएंगे। रेड लाइन बहुत स्पष्ट तरीके से खींची हुई है, जो कि आगे की कार्रवाई को तय करेगा।

यह जुड़ा हुआ है। भारत द्वारा काफी सबूत पेश करने के बाद भी वे कहते रहते हैं कि वे आतंकियों को सपॉर्ट नहीं करते । 5 अगस्त के बाद क्या उन्होंने खुले तौर पर कश्मीर में जिहाद की बात नहीं कही है? यह जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद को समर्थन करने की मौन स्वीकृति है। आप आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए रातोंरात ऐसी मशीनरी नहीं बना सकते। वह हमेशा से मौजूद था। पाकिस्तान में आतंकी शिविर रहे हैं, वे सिर्फ उसे एक जगह से दूसरी जगह शिफ्ट करते रहे हैं। भारत के खिलाफ छद्म युद्ध लड़ना पाकिस्तान की नीति रही है।

परमाणु हथियार निवारण का हथियार है। ये युद्ध में लड़ने वाले हथियार नहीं हैं। मुझे यह समझ नहीं आता जब कोई यह दावा करता है कि वह उसका इस्तेमाल पारंपरिक युद्ध में करेगा, या उस पर हमले की स्थिति में करेगा। क्या कभी विश्व समुदाय आपको इस तरह से परमाणु हथियार का इस्तेमाल करने देगा? पाकिस्तान का बयान रणनीतिक हथियारों के इस्तेमाल की अनुचित समझ को दर्शाता है।

5 अगस्त के बाद घुसपैठ की कोशिशें बढ़ी हैं। घाटी में आतंकी संगठनों में नेतृत्व का शून्य पैदा हो गया है। पाकिस्तान फिर से हिंसा पैदा करने की दिशा में युवाओं को भड़काने के लिए कुछ लोगों को सीमा पार भेजने को व्याकुल है। लेकिन हम यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि कोई भी आतंकी हमारी सीमा में नहीं घुस पाए और हम संदिग्ध गतिविधियों पर निशाना साध रहे हैं। हमारा मकसद घुसपैठ को रोककर कश्मीर की शांति सुनिश्चित करना है।

जम्मू-कश्मीर में व्यापक स्तर पर लोगों को यह समझने की जरूरत है कि जो हो रहा है, वह सही के लिए है। निश्चित रूप से एक धड़ा यह प्रॉपेगैंडा फैलाने में लगा हुआ है कि कश्मीरियों के अधिकार छीने जा रहे हैं। अगर लोग इसका सही से विश्लेषण करेंगे तो इसके गुण-दोष को समझ पाएंगे। वे यह समझेंगे कि उन्हें ज्यादा मिला है, और मुश्किल से ही कुछ खोना पड़ा है। वे अभी भी कश्मीरी हैं, वे अभी भी जम्मू-कश्मीर के निवासी हैं। वे देश के दूसरे हिस्से में आ सकते हैं और वह कर सकते हैं जो वे कर रहे हैं। कश्मीरी छात्र देश के दूसरे हिस्से में पढ़ रहे हैं। उन्हें घूमने की आजादी है। उसी तरह, देश के दूसरे हिस्से के लोगों को कश्मीर में ऐसी ही आजादी क्यों न मिले?

कश्मीर सिर्फ घाटी नहीं है। घाटी के बाहर भी लोग हैं। राज्य का बहुत छोटा हिस्सा प्रभावित हुआ है। जो उन्होंने पिछले 30 सालों से देखा है, उसके बाद उन्हें शांति को एक मौका देना चाहिए। लोग कहते हैं कि स्थिति बदतर हो गई है। क्या उन्हें लगता है कि पिछले 30 सालों में स्थिति अच्छी थी? मुझे लगता है कि पिछले 30 सालों में स्थिति बदतर थी और पिछले दो महीने अच्छे बीते हैं। प्रतिबंधों का क्या मतलब है? क्या किसी को उनके घरों में रहने को कहा गया है? क्या किसी बच्चे को स्कूल जाने से रोका गया है? क्या स्कूल बंद हैं? क्या सुरक्षाबल गोलियां बरसा रहे हैं? जैसा कि मैं कहता आया हूं, लोग बाहर आ रहे हैं और अपने बागानों में काम कर रहे हैं।

क्या सच में ऐसा है? धारा 144 का उल्लंघन करने वाले कुछ लोगों को हिरासत में लिया गया है। वे माहौल को बिगाड़ने की कोशिश कर रहे हैं और सरकार की कोशिश को बाधित करने में लगे हैं। वास्तव में, प्रतिबंध दूसरे तरफ से लागू की जा रही है, न कि सुरक्षा बलों द्वारा। सुरक्षा बल सिर्फ यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि लोग बाहर आकर आगजनी न करें, लूटपाट न करें और न हिंसा करें। हिरासत में लिए गए कई लोगों को पुलिस की पूछताछ के बाद छोड़ दिया गया है।

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