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महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव:  उत्तर भारतीयों में अब विरोध कोई मुद्दा नहीं, 100 सीटों पर प्रभाव

fadnavis महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव:  उत्तर भारतीयों में अब विरोध कोई मुद्दा नहीं, 100 सीटों पर प्रभाव

नई दिल्ली। महाराष्ट्र विधानसभा के आगामी चुनाव में करीब दो दशक बाद उत्तर भारतीयों का विरोध कोई मुद्दा नहीं रह जाएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का प्रभाव पूरे देश में लोकसभा चुनाव में दिखा। अब विधानसभा चुनाव में भी भाजपा मोदी के नेतृत्व में कश्मीर से अनुच्छेद 370 और तीन तलाक खत्म करने को मुख्य मुद्दा बना रही है। महाराष्ट्र में पूरे विपक्ष के पास इनकी काट नहीं है। अब राज्य में मुद्दे बचे खेती-किसानी की समस्याएं और युवाओं को रोजगार।

बता दें कि विपक्ष को इन्हीं पर केंद्रित होना होगा। परंतु यहां भाजपा अपने कार्यकाल में हुए विकास की तस्वीर पेश कर रही है। ऐसे में न केवल कांग्रेस-एनसीपी बल्कि दशकों तक उत्तर भारतीय विरोध को अपने एजेंडे में रखने वाली शिवसेना तक चुनाव रणनीतियों और मुद्दों के लिए भाजपा के फैसले पर आश्रित है कि उसे कितनी सीटें लड़ने को मिलेंगी। 2014 में भी भाजपा ने शिवसेना को इंतजार के दांव में फंसाया था। शिवसेना ने उससे सबक नहीं सीखा। शिवसेना की तैयारी गांवों के किसानों को बीमा और बीज के मुद्दों पर अपनी तरफ मिलाने की है। शहरों में भाजपा का प्रभाव है। मुंबई में भीषण बरसात ने शिवसेना के प्रभुत्व वाले स्थानीय प्रशासन की पोल खोली है कि जितनी बात होती उतना काम नहीं होता।

कांग्रेस की धर्मनिरपेक्ष सियासत इतनी कारगर नहीं रही है कि उसे सत्ता तक पहुंचा दे। उसके यहां कुशल नेतृत्व का संकट महाराष्ट्र में भी है। शिवसेना और राज ठाकरे की मनसे की उत्तर भारतीय विरोधी राजनीति का लाभ कांग्रेस को वर्षों तक मिला। मगर अब उसके ज्यादातर वोट भाजपा के पास पहुंच चुके हैं। महाराष्ट्र में कांग्रेस के साथ खड़े अधिकतर उत्तर भारतीय नेता अब भाजपा में हैं। आखिरी झटका उसे दिग्गज कृपाशंकर सिंह के रूप में लगा।

जानकारों का मानना है कि मराठवाड़ा और विदर्भ को छोड़ें तो मुंबई और उसके आसपास के जिलों समेत अन्य कई जगहों पर कांग्रेस उत्तर भारतीय मूल के नेताओं को प्रमुखता देगी। उसे बस यही लाभ है कि भाजपा-शिवसेना उत्तर भारतीय नेताओं को टिकट देने में ज्यादा उत्साह नहीं दिखाते। इसके बावजूद कांग्रेस के लिए पारंपरिक उत्तर भारतीय वोट को विधानसभा चुनाव में बचाना बड़ी चुनौती है।

राज्य में मुंबई, नवी मुंबई, ठाणे, कल्याण, पुणे, नागपुर, कोल्हापुर, अकोला, औरंगाबाद में करीब 100 सीटें ऐसी हैं, जहां उत्तर भारतीयों के वोट नतीजों पर प्रभाव डालने वाली स्थिति में हैं। ये अधिकतर वे वोटर हैं जो रोजगार के लिए आए और शिवसेना, मनसे, बहुजन विकास अघाड़ी, एआईएमआईएम राष्ट्रीय समाज पक्ष जैसे दलों द्वारा उठाए जाने वाले स्थानीय मुद्दों की अपेक्षा केंद्र अथवा राज्य सरकार द्वारा पेश विकास की तस्वीर या योजनाओं से प्रभावित होते हैं।

महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री व महाराष्ट्र स्वाभिमान पक्ष के नेता नारायण राणे दो अक्तूबर को गांधी जयंती के दिन भाजपा में प्रवेश करेंगे। इस दौरान मुंबई में एक कार्यक्रम के दौरान महाराष्ट्र स्वाभिमान पक्ष का भी भाजपा में विलय होगा। पिछले महीने राणे को भाजपा में एंट्री लेनी थी, लेकिन शिवसेना के विरोध पर भाजपा ने प्रवेश स्थगित कर दिया। राणे ने तब कहा था कि मुझे भाजपा में बुलाने के साथ मंत्री पद का भी प्रस्ताव दिया गया। मगर शिवसेना ने अड़ंगा लगाया। उन्हें मुझसे डर लगता है। राणे शिवसेना से कांग्रेस में शामिल हुए थे। दो साल पहले उन्होंने कांग्रेस छोड़कर महाराष्ट्र स्वाभिमान पक्ष की स्थापना की थी। उन्होंने एनडीए को समर्थन दिया था। इसके बाद भाजपा ने उन्हें राज्यसभा भेजा था।

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