5 जून को गुरु अर्जुन देव का शहीदी दिवस मनाया जाना था। लेकिन सेना गोल्डन टेंपल मुक्त कराना चाहती थी। सुबह लगभग चार बजे सेना ने अकाल तख्त के पास सिंधियों की धर्मशाला पर बम से हमला किया गया। शाम होते-होते दोनों तरफ से गोलियां चलने लगीं। परिसर में सिख लड़ाकुओं ने मोर्चाबंदी कर ली थी। उस वक्त मंदिर परिसर के साथ कई इमारतें जुड़ी हुई थीं। आसपास के सभी मकानों पर सेना के जवानों ने मोर्चा संभाला हुआ था। इन मकानों की छतों पर मशीनगनें लगाई गई थीं।
5 जून को दिन भर दोनों ओर से गोलीबारी होती रही। शाम होते ही कमांडिंग ऑफिसर मेजर जनरल कुलदीप सिंह बरार ने कमांडो दस्ते को स्वर्ण मंदिर में प्रवेश करने का आदेश दे दिया। लेकिन सिख लड़ाकुओं ने उन पर अंधाधुंध फायरिंग कर दी। इस जवाबी हमले में सेना के 20 से अधिक जवान शहीद हो गए। मजबूरी में सेना को टैंक और बख्तरबंद गाड़ियों का इस्तेमाल करना पड़ा। परिसर के बीच टैंक आ गए थे। रातभर भीषण गोलाबारी हुई थी।
6 जून को सेना पूरी तरह स्वर्ण मंदिर परिसर में दाख़िल हो गई थी। सेना ने एक-एक कमरे में बम फेंके और वहां मौजूद लोगों को बाहर निकालने की कोशिश की। कई लोग इस कार्रवाई में मारे गए और कई जगह आग लग गई। अकाल तख्त में जरनैल सिंह के साथ लगभग 40 लोग थे। बाकी सभी लोग अकाल तख्त से मौका मिलते ही बाहर चले गए थे। वहां मौजूद इन लोगों का सेना के साथ सीधा टकराव हुआ। इस टकराव में जरनैल सिंह भिंडरांवाले व जनरल सुबेग सिंह और उसके लगभग सभी साथी मारे गए। शाम पांच बजे तक गोलाबारी पूरी तरह बंद हो गई थी। ऑपरेशन कामयाब हो चुका था।
इस ऑपरेशन की अगुआई करनेवाले लेफ्टिनेंट जनरल कुलदीप सिंह बरार के कई सिख चरमपंथी जान के दुश्मन बन गए। एक बार तो हमलावरों ने उनका गला काटने तक की कोशिश की थी।
आगे जानें ऑपरेशन खत्म होने पर तत्कालिन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने क्या कहा था