हालांकि ऑपरेशन ब्लूस्टार के कुछ और भी पहलू हैं जो शायद जान लेना बेहद जरूरी है पहले इस अभियान का नाम यह ऑपरेशन सनडाउन असल में झपट्टा मारकर दबोचने की कार्रवाई थी। इसके तहत हेलिकॉप्टर में सवार कमांडो स्वर्ण मंदिर के पास गुरु नानक निवास गेस्ट हाउस में उतरते और भिंडरावाला को उठा लेते। लेकिन इंदिरा गांधी को जब इस ऑपरेशन में होने वाले आमजन से जुड़े नुकसान को लेकर कोई संतोषजनक उत्तर नहीं मिला तो यह ऑपरेशन ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।
रॉ ने मोसाद के साथ मिलकर इस ऑपरेशन की योजना बनाई थी और इसे गुप्त रखा गया था, क्योंकि उस समय इजराइल के साथ भारत के राजनयिक संबंध नहीं थे और वह अपने अरब मित्रों को नाराज नहीं करना चाहता था। तेलअवीव के पास स्थित इस अड्डे पर इन सैनिक अधिकारियों को सड़कों, इमारतों और गाड़ियों के बड़ी सावधानी से बनाए गए मॉडलों के बीच आतंक से लड़ने की 22 दिन तक ट्रेनिंग दी गई थी।
सनडाउन में ट्रेनिंग ले चुके कई कमांडो ने ब्लूस्टार के दौरान पूरी तरह किलाबंद अकाल तख्त पर आत्मघाती हमले की अगुआई की और तीन दिन बाद आखिरी उग्रवादी को स्वर्ण मंदिर से निकाले जाने तक वहां डटे रहे। बाद में सिख आतंकियों ने इस ऑपरेशन में हिस्सा लेने वाले अफसरों को निशाना बनाया। यही वजह है कि रिटायर होने के वर्षों बाद भी ये अधिकारी अपनी पहचान नहीं बताते।
ऑपरेशन खत्म होने के बाद इंदिरा गांधी की पहली प्रतिक्रिया के तौर पर उनके मुंह से ‘हे भगवान’ निकला था। दरअसल 6 जून, 1984 को सुबह छह बजे आर के धवन के दिल्ली स्थित गोल्फ लिंक निवास पर फोन की घंटी बजी। रक्षा राज्यमंत्री के पी सिंहदेव चाहते थे कि धवन तुरंत इंदिरा गांधी तक एक संदेश पहुंचा दें। ऑपरेशन कामयाब रहा, लेकिन बड़ी संख्या में सैनिक और असैनिक मारे गए हैं। खबर मिलते ही इंदिरा गांधी की पहली प्रतिक्रिया दुख भरी थी। उन्होंने धवन से कहा, ‘हे भगवान, इन लोगों ने तो मुझे बताया था कि कोई हताहत नहीं होगा।’
(गंगेश कुमार ठाकुर, वरिष्ठ पत्रकार)