नई दिल्ली। शारदीय नवरात्रि को दुर्गा पूजा भी कहते हैं। नवरात्रि के पहले दिन सबसे पहले कलश स्थापना की जाती है और उसके बाद माता के शैलपुत्री स्वरूप की पूजा होती है। घटस्थापना या कलश को दरअसल, भगवान गणेश का रूप माना जाता है। हिन्दू धर्म में सबसे पहले भगवान गणपति को ही पूजा जाता है। इसलिए नवरात्रि की पूजा करने से पहले कलश स्थापित की जाती है।
शैलपुत्री देवी के दाएं हाथ में त्रिशूल धारण है और बाएं हाथ में कमल सुशोभित है
बता दें कि हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण उनका नामकरण शैलपुत्री हुआ। इनका वाहन वृषभ है, इसलिए यह देवी वृषारूढ़ा के नाम से भी जानी जाती हैं। शैलपुत्री देवी के दाएं हाथ में त्रिशूल धारण है और बाएं हाथ में कमल सुशोभित है। यही देवी प्रथम दुर्गा हैं। ये ही सती के नाम से भी जानी जाती हैं।
नवरात्रि के पहले दिन का महत्व
नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा होगी। मां के इस स्वरूप को सौभाग्य और शांति का प्रतीक माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि मां शैलपुत्री की विधि पूर्वक पूजा करने से मन कभी अशांत नहीं रहता और घर में सौभाग्य का आगमन होता है। मां शैलपुत्री स्थायित्व और शक्तिमान का वरदान देती हैं।
कैसे करें मां शैलपुत्री की पूजा
1. कलश स्थापना के बाद उसी चौकी पर श्रीगणेश, वरुण, नवग्रह, षोडश मातृका (16 देवी), सप्त घृत मातृका(सात सिंदूर की बिंदी लगाये) की स्थापना भी करें।
2. इसके बाद मां के सामने हाथ जोड़कर व्रत और पूजन का संकल्प लें।
3. मां को 16 श्रृंगार की वस्तुएं, चंदन, रोली, हल्दी, बिल्वपत्र, फूल, दुर्वा, बिल्वपत्र, आभूषण, फूलों का हार, सुगंधित द्रव्य, धूप-दीप, नैवेद्य, फल, पान, दक्षिणा, आरती, प्रदक्षिणा आदि अर्पित करें।
इस मंत्र का जाप करें
वन्दे वांछित लाभाय चन्द्रार्द्वकृतशेखराम्।
वृषारूढ़ा शूलधरां यशस्विनीम्