प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज हैदराबाद में 11वीं सदी के भक्ति संत श्री रामानुजाचार्य की स्मृति में 216 फीट ऊंची ‘स्टैच्यू ऑफ इक्वैलिटी’ का उद्घाटन करने जाएंगे।
यह भी पढ़े
CHINA दौरे पर IMRAN KHAN के लिए शर्मनाक स्थिति, बीजिंग में रहकर करनी पड़ी वर्चुअल मीटिंग
प्रधानमंत्री ने ट्वीट कर दी जानकारी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज 11वीं सदी के भक्ति संत श्री रामानुजाचार्य की स्मृति में 216 फीट ऊंची ‘स्टैच्यू ऑफ इक्वैलिटी’ का उद्घाटन करने के लिए शनिवार को एक दिवसीय दौरे पर हैदराबाद जाएंगे। उसी की जानकारी देते हुए, प्रधानमंत्री ने अपने ट्वीट में लिखा कि वह लगभग 5 बजे प्रतिमा का उद्घाटन करेंगे। इस बीच, वह ICRISAT की 50वीं वर्षगांठ समारोह में भी भाग लेंगे।
At 5 PM, I will join the programme to inaugurate the ‘Statue of Equality.’ This is a fitting tribute to Sri Ramanujacharya, whose sacred thoughts and teachings inspire us. https://t.co/i6CyfsvYnw
— Narendra Modi (@narendramodi) February 5, 2022
स्टैच्यू ऑफ इक्वैलिटी क्यों है खास
आपको बता दें कि बैठी हुई मुद्रा में दुनिया की सबसे बड़ी प्रतिमा थाइलैंड स्थित बुद्ध की प्रतिमा है। बुद्ध की प्रतिमा की ऊंचाई 302 फीट है। दूसरी ओर संत श्री रामानुजाचार्य की प्रतिमा की स्थापना हैदराबाद के बाहरी इलाके शमशाबाद में 45 एकड़ के भव्य मंदिर परिसर में की गई है। इस भव्य मंदिर का निर्माण 2014 में शुरू हुआ था। प्रतिमा का निर्माण मिश्र धातु पंचलोहा से किया गया है।
इसमें सोना, चांदी, तांबा, पीतल और जस्ता जैसे पांच धातुओं का प्रयोग किया गया है। प्रतिमा को 64 फीट ऊंचे स्थान पर स्थापित किया गया है। इस स्थान को भद्र वेदी नाम दिया गया है। इस भद्र वेदी में डिजिटल लाइब्रेरी और रिसर्च सेंटर बनाया गया है। गौरतलब है कि प्राचीन भारतीय ग्रंथों एवं संत श्री रामानुजाचार्य के कार्यों की जानकारी देती गैलरी भी इस मंदिर में स्थापित होगी है।
जानें कौन है रामानुजाचार्य स्वामी
रामानुजाचार्य स्वामी का जन्म 1017 में तमिलनाडु के श्रीपेरंबुदूर में हुआ था। उनके माता का नाम कांतिमती और पिता का नाम केशवचार्युलु था। भक्तों का मानना है कि यह अवतार स्वयं भगवान आदिश ने लिया था। उन्होंने कांची अद्वैत पंडितों के अधीन वेदांत में शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने विशिष्टाद्वैत विचारधारा की व्याख्या की और मंदिरों को धर्म का केंद्र बनाया।
रामानुज को यमुनाचार्य द्वारा वैष्णव दीक्षा में दीक्षित किया गया था। उनके परदादा अलवंडारू श्रीरंगम वैष्णव मठ के पुजारी थे। ‘नांबी’ नारायण ने रामानुज को मंत्र दीक्षा का उपदेश दिया।
तिरुकोष्टियारु ने ‘द्वय मंत्र’ का महत्व समझाया और रामानुजम को मंत्र की गोपनीयता बकरार रखने के लिए कहा, लेकिन रामानुज ने महसूस किया कि ‘मोक्ष’ को कुछ लोगों तक सीमित नहीं रखा जाना चाहिए, इसलिए वह पुरुषों और महिलाओं को समान रूप से पवित्र मंत्र की घोषणा करने के लिए श्रीरंगम मंदिर गोपुरम पर चढ़ गए।