लखनऊ। रविवार की प्रातः कालीन सत् प्रसंग में रामकृष्ण मठ, लखनऊ के अध्यक्ष स्वामी मुक्तिनाथानन्द जी ने बताया कि साधारण जीव के लिए ईश्वर आराधना करने हेतु वैधी भक्ति की प्रयोजनीयता है। भगवान श्री रामकृष्ण ने कहा है जीव दो प्रकार का होता है- ’जीव कोटि और ईश्वर कोटि’ जीव कोटि की भक्ति वैधी भक्ति है, इसमे कितने उपचार से पूजा की जाएगी और कितना जप किया जाएगा आदि शामिल है।
स्वामी जी ने कहा कि इस वैधी भक्ति के बाद है ज्ञान, इसके बाद है लय, इस लय के बाद फिर जीव नहीं लौटता अर्थात साधारण मनुष्य को ईश्वर भजन करने हेतु विधि-निषेध के साथ ईश्वर की आराधना करनी चाहिए।
जो उपासना पद्धति है जैसे भगवान की पूजा प्रभृति मे अनुराग, ईश्वर की कथा श्रवण और कीर्तन में रुचि एवं जिस आचरण को करने से भगवान के प्रति अनुराग उत्पन्न होता है वह विधि-निषेध पालन अथवा समस्त कर्म भगवत् चरण मे समर्पण करते हुए भगवान के प्रति परम् व्याकुलता इत्यादि।
उन्होंने कहा कि यह सब उपाय अवलम्बन करते हुए साधारण जीव के भीतर भक्ति उत्पन्न होती है एवं भक्ति परिपक्व होने से ईश्वर के प्रति जो ज्ञान है वह दृढ़ हो जाता है अर्थात ईश्वर है एवं ईश्वर हमारे अपने है, यह दृढ़ विश्वास हो जाता है।
स्वामी जी ने कहा कि इस ज्ञान के बाद धीरे-धीरे ईश्वर के साथ साधारण जीव की अभिन्नता हो जाती है, इसको लय कहा जाता है और इसके बाद वह परम् आनंद मे ईश्वर के साथ रह जाता है।